कोरोना नही करोंदा की कहानी
आज अपने करौंदा के ख़ूबसूरत सफेद फूलों के बीच बैठने पर पूरानी बातें याद आने लगीं। लड़कपन में करौंदा का फल नमक के साथ हम लोग ख़ूब चटखारे लेकर खाया करते थे। खट्टे पन और कसैले पन के चलते जब जीभ को तालू में चिपका कर नीचे खींचते तो ” ट्टा – ट्टा ” की आवाज़ें आतीं जिससे मनमोहक सुर ताल पैदा होता।
पिछले चार-पाँच साल पहले बेगम को यूटीआई (यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन) ने परेशान कर रखा था। एलोपैथी ईलाज से आराम होता फिर हो जाता। फिर हमारे भतीजे डाक्टर इम्तियाज अहमदने बताया कि क्रैनबेरी जूस लगतार कुछ दिनों तक पिलाएं। सचमुच उससे बहुत फ़ायदा हुआ। हमारे शहर बगहा में क्रैनबेरी जूस नहीं मिला तो दिल्ली से बेटों ने 6 बोतलें ख़रीद कर भेज दिया।
चूंकि मेरी अंग्रेज़ी कमज़ोर है इसलिए यहां आने पर पता चला कि क्रैनबेरी जूस दर असल करौंदा का रस है। बहरहाल मैंने करौंदा का पौधा लाकर अपने खेत में ही लगा दिया जो हर साल जुलाई से सितम्बर के बीच फलता है। इसका इस्तेमाल हमारे यहां अचार, चटनी और सब्ज़ी में किया जाता है।
करोंदा या करौंदा (क्रैनबेरी) एक झाड़ी नुमा पौधा होता है। इसका वैज्ञानिक नाम कैरिसा कैरेंडस है। उपचार के आधार से इसमें साइट्रिक एसिड और विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होते हैं। इसमें कई सामान्य बीमारियों को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता है। करौंदे के कच्चे फल की सब्ज़ी खाने से कब्ज़ियत दूर होती है। बुख़ार होने पर करौंदे के पत्ते का क्वाथ पिलाना लाभदायक होता है।
सूखी खांसी में एक चम्मच करौंदे के पत्ते का रस और एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से फ़ायदा होता है। इसके कच्चे फल की चटनी खाने से मसूड़ों की सूजन और दांतों की तकलीफ़ में आराम मिलता है। करौंदे के बीजों का तेल मलने से हाथ-पैर की बिवाई फटने में लाभ होता है।
गर्मियों में रोज़ाना इसके मुरब्बे का सेवन करने से दिल के रोगों से बचाव होता है। इसको खाने से प्यास मिटती है और इसके पके फल रोज़ाना खाने से पेट की गैस की समस्या दूर होती है। करौंदे में आयरन की मात्रा होने के कारण शरीर में रक्त की कमी भी दूर होती है। जानवरों के कीड़े युक्त घावों में करौंदे की जड़ को पीसकर भर देने से कीड़े नष्ट होकर घाव जल्दी भर जाते हैं। इसकी पत्तियों का क्वाथ सिर में लगाने से जूएं भी नष्ट हो जाती हैं।
यूटीआई (मूत्र संक्रमण) में तो इसका रस रामबाण की तरह काम करता है। इज़राइल के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार, करौंदे में प्रोंथोसाइनाइडिंस नामक द्रव्य होता है, जो ई-कोलाई जीवाणु को मूत्राशय में चिपकने नहीं देता, जिसकी वजह से मूत्र संबंधी बीमारियां नहीं होतीं।
छत्तीसगढ राज्य में वैद्यों द्वारा करौंदा से विभिन्न प्रकार के कैंसर का उपचार किया जाता है। यह एक अच्छा एपिटाइसस भी है जो कि भूख बढाने हेतु प्रयोग किया जाता है। करौंदा ठंडा तथा एसिडिक होने के कारण गले में खराश, मुंह के अल्सर तथा त्वचा रोग में भी प्रयुक्त किया जाता है। वर्ष 2009 में ट्रोपिकल जर्नल ऑफ फार्मास्यूटिकल रिसर्च में प्रकाशित एक शोध के अनुसार करौंदे की जड़ में मौजूद एथेनोलिक एक्सट्रेक्ट को अच्छा एंटी कन्वल्सेंट (झटका विरोधी) बताया गया है। इसके अलावा विभिन्न शोध पत्रों में इसे अच्छा एंटी माइक्रोबियल तथा एंटी बैक्टीरियल भी बताया गया है।