वैज्ञानिकों की चेतावनी की अनदेखी की गयी
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमन्त्री बनने के बाद कोविड- 19 का कहर सरकार के सामने देश का सबसे बड़ा मानवीय संकट है जिसमें दो लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। बहुत से वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत में दूसरी लहर का कहर ज्यादा इसलिए भी है क्योंकि कोरोना वायरस का नया वैरियंट ज्यादा खतरनाक है। इस नये वैरियंट के खतरे के बारे में इंडियन सार्स कोव-2 जेनेटिक्स कन्सॉर्टियम (इंसाकॉग) नामक एक समिति ने मार्च में ही एक केबिनेट सचिव राजीव गाबा को इसके बारे में चेतावनी दी थी जो सीधे भारत के प्रधानमन्त्री के साथ काम करते हैं। इंसाकॉग को भारत सरकार ने पिछले साल दिसम्बर में स्थापित किया था।
इस समिति का मकसद कोरोना वायरस के ऐसे वैरियंट्स का पता लगाना था जो लोगों की सेहत के लिए खतरनाक हो सकते हैं। इस समिति में दस राष्ट्रीय प्रयोगशालाएं शामिल हैं जो वायरस पर अध्ययन में सक्षम हैं। इंसाकॉग के एक सदस्य और इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ लाइफ साइंसेज के निदेशक अजय पारिदा के मुताबिक शोधकर्ताओं ने सबसे पहले फरवरी में इस नये वैरियंट का पता लगाया जिसे अब बी.1.617 कहा जाता है।
इंसाकॉग ने अपने शोध के नतीजे स्वास्थ्य मन्त्रालय के नेशनल सेंटर ऑफ डिजीज कंट्रोल के साथ 10 मार्च से पहले ही साझा कर दिये थे। एक वैज्ञानिक ने बताया कि इस शोध में चेतावनी दी गयी थी कि कोरोना वायरस की दूसरी लहर जल्द ही भारत के विभिन्न हिस्सों को अपनी चपेट में ले सकती है। यह शोध और चेतावनी स्वास्थ्य मन्त्रालय को भी भेजी गयीं थी। लेकिन स्वास्थ्य मन्त्रालय ने इस बारे में पूछे गये सवालों का जवाब नहीं दिये हैं। वैज्ञानिकों की इस समिति के पाँच वैज्ञानिकों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि उनकी चेतावनी को सरकार ने नजरअंदाज किया। चार वैज्ञानिकों ने कहा कि चेतावनी के बावजूद सरकार ने वायरस को फैलने से रोकने के लिए कड़ी पाबंदियाँ लगाने में कोई रुचि नहीं दिखाई।
लाखों लोग बेरोक-टोक राजनीतिक रैलियाँ और धार्मिक आयोजनों में शामिल होते रहे। नतीजा यह निकला कि भारत इस वक्त कोरोनो वायरस की सबसे बुरी मार से गुजर रहा है। देश में नये मामलों और मरने वालों की संख्या रोज नये रिकॉर्ड बना रही है। इंसाकॉग ने इस बारे में एक प्रेस रिलीज भी तैयार की थी जिसमें स्पष्ट कहा गया था कि नया वैरियंट बेहद खतरनाक है और इसके नतीजे बहुत ज्यादा चिन्ताजनक हो सकते हैं।
मन्त्रालय ने यह बयान दो हफ्ते बाद 24 मार्च को जारी किया लेकिन ‘बहुत ज्यादा चिन्ताजनक’ शब्द उसमें से हटा दिये गये। मन्त्रालय के बयान में सिर्फ इतना कहा गया कि नया वैरियंट पहले से ज्यादा समस्याप्रद है और टेस्टिंग बढ़ाने वाले क्वारंटीन करने जैसे कदम उठाए जाने की जरूरत है। अब प्रश्न यह है कि सरकार ने इस शोध के नतीजों पर ज्यादा मजबूत कदम क्यों नहीं उठाए? इस सवाल के जवाब में इंसाकॉग के प्रमुख शाहिद जमील ने कहा हैं कि उन्हें लगता है कि अधिकारी इन सबूतों की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे थे।
जमील कहते हैं, “नीति को साक्ष्य आधारित होना चाहिए ना कि साक्ष्यों को नीति आधारित। मुझे आशंका है कि नीति बनाते वक्त वैज्ञानिक तथ्यों को ज्यादा गम्भीरता से नहीं लिया गया। लेकिन मुझे पता है कि मेरा काम कहाँ तक है। वैज्ञानिक होने के नाते हम साक्ष्य उपलब्ध कराते हैं. नीतियाँ बनाना सरकार का काम है।” पर यह स्पष्ट है कि सरकार ने कोई कड़े कदम नहीं उठाए। उसके बाद भी प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी और उनके मुख्य सिपहसालार और विपक्षी नेता राजनीतिक रैलियाँ करते रहे।
यह भी पढ़ें – महामारियां बनाम मनमानियाँ
सरकार ने कई हफ्ते चलने वाले कुंभ मेले को भी होने दिया जिसमें लाखों लोगों ने हिस्सा लिया। स्वास्थ्य मन्त्रालय के आधीन काम करने वाले एनसीडीसी के निदेशक सुजीत कुमार सिंह ने हाल ही में एक निजी ऑनलाइन मीटिंग में कहा था कि अप्रैल की शुरुआत में ही कड़े कदम उठाए जाने की जरूरत थी। 19 अप्रैल को हुई इस मीटिंग में सिंह ने कहा था कि 15 दिन पहले ही लॉकडाउन लग जाना चाहिए था। हालाँकि सिंह ने यह नहीं बताया कि उन्होंने सरकार को चेताया था या नहीं लेकिन उन्होंने यह जरूर कहा कि मामले की गम्भीरता के बारे में उन्होंने सरकार को जानकारी दे दी थी।
18 अप्रैल को हुई के मीटिंग का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “यह बहुत-बहुत स्पष्टता के साथ बताया गया था कि अगर एकदम कड़े कदम नहीं उठाए गये तो लोगों की मौतों को रोकना बहुत मुश्किल हो जाएगा।” सिंह ने यह भी बताया कि इस मीटिंग में कुछ अधिकारियों ने छोटे शहरों में मेडिकल सप्लाई की कमी के कारण कानून-व्यवस्था बिगड़ने का डर भी जताया था। ऐसा कई शहरों में देखा जा चुका है। सुजीत कुमार सिंह ने सवालों के जवाब नहीं दिये।
जिस 18 अप्रैल की मीटिंग की बात सिंह कर रहे थे, उसके दो दिन बाद 20 अप्रैल को प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम सम्बोधन में कहा कि देश को लॉकडाउन से बचाना है। मैं राज्यों से भी अनुरोध करूंगा कि लॉकडाउन को आखिरी विकल्प रखें। हमें लॉकडाउन से बचने की पूरी कोशिश करनी है और छोटे-छोटे इलाकों को बंद करने पर काम करना है।” इस बयान से पाँच दिन पहले 15 अप्रैल को 21 विशेषज्ञों और सरकारी अधिकारियों के एक ग्रुप ‘नेशनल टास्क फोर्स फॉर कोविड-19′ में विचार-विमर्श के बाद इस बात पर सहमति बनी थी कि ‘हालात गम्भीर हैं और हमें लॉकडाउन लगाने से नहीं झिझकना चाहिए।’
.