पुष्पेंद्र पाल सिंह: एक अपराजित योद्धा
“हो न सका किसी को उसके कद का अंदाजा। वह आसमान था लेकिन सर झुकाए फिरता था।” प्रो. पुष्पेंद्र पाल सिंह जो शिक्षा जगत में पीपी सर के नाम से प्रसिद्ध, एक बेमिसाल शख्सियत थे। वे जहां भी रहें, उन्होंने अपनी एक अमिट छाप छोड़ी। 7 मार्च 2023 की सुबह लगभग 9 बजे की बात थी। एक साथी का फ़ोन आया। मैंने जैसे ही फ़ोन उठाया उसने कहा पुष्पेंद्र पाल सर के बारे में कुछ पता चला? मैंने पूछा नहीं, क्यों? क्या हो गया? थोडी देर बाद उसने कहा, शायद सर अब नहीं रहे। यह खबर सुनते ही मैंने कहा आपका दिमाग खराब है क्या? ऐसा कैसे हो सकता है? उसने कहा कि आप एक बार कन्फर्म करें कि ये खबर सही है या नहीं? कुछ देर तक तो मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि मैं क्या करूं? शरीर और दिमाग जैसे शून्य की अवस्था में चला गया हो। किसी तरीके से मैंने हिम्मत जुटाकर फेसबुक खोला, तब यह खबर पक्की हुई। ना जाने कितने लोग सर को श्रद्धांजलि दे रहे थे। उन पर पहले भी बहुत लोग लिखते रहे हैं, लेकिन उनके बारे में इस रूप में भी पढ़ने को मिलेगा, वह भी इतनी जल्दी, ऐसा कभी सपने में भी मैंने नहीं सोचा था।
सर से मेरा परिचय वर्धा के छात्र जीवन से ही था। घटना संभवत: 2010 की है, जब सर मेरे 2 सीनियर की पीएच.डी. पूर्व मौखिकी लेने आए थे। ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी बाहरी विशेषज्ञ ने पीएच.डी. ये कहकर अनुमोदित करने से मना कर दिया था कि इसमें अभी बहुत काम करने की जरूरत है और इसमें गुणवत्ता की भी बेहद कमी है। आमतौर पर जो भी एक्सपर्ट होते हैं, वे कभी भी ऐसा कदम नहीं उठाते हैं, ताकि उनके आने-जाने का रास्ता खुला रह सके।
उस समय से सर को लेकर मेरे मन में एक डर पैदा हो गया था, लेकिन मैं इस बात से खुश भी थी कि कोई तो है, जो सही को सही और गलत को गलत बोल सकता है। इसके बाद सर से फिर मेरी न तो कभी कोई मुलाकात हुई और न ही बातचीत। जब मैंने अपनी पीएच.डी. जमा की तो पता चला कि मेरे भी पीएच.डी. विशेषज्ञ पुष्पेंद्र पाल सर ही हैं। यह बात सुनते ही मेरे होश उड़ गये थे। यह सोचकर मैं बुरी तरह से डर गई थी कि कहीं मेरी पीएच.डी. भी खतरे में न पड़ जाए। पीएच.डी. जमा होने के बाद से मैं रोज़ सोचती थी कि कोई मुझे पीएच.डी. रिपोर्ट की जानकारी दे दे। लेकिन यह गोपनीयता का हिस्सा होता है, जिसका पता लगाना बेहद मुश्किल था। व्यस्तता के कारण पीपी सर ने काफी लंबा समय रिपोर्ट भेजने में लगा दिया था। लेकिन अंततः वह दिन भी आ गया जब मुझे खबर मिली कि मेरी मौखिकी आयोजित होने वाली है। मेरे लिए यह बेहद अच्छी खबर थी, लेकिन काफी डर भी लग रहा था कि पता नहीं सर को मेरा शोध कार्य पसंद आयेगा कि नहीं। जब मेरी मौखिकी शुरू हुई तो जिस प्रकार से सर ने सहयोग किया और उनका जो व्यवहार था, उसके कारण मैंने सफलतापूर्वक अपनी मौखिकी पूर्ण की। अंत में मुझे सर ने यह भी कहा कि तुमने बहुत अच्छा काम किया है।
पुष्पेंद्र पाल सर सभी पार्टियों, धर्मों, समुदायों से बराबर का सरोकार रखते थे। एक बार इस बारे में मैंने सर को टोका भी और कहा कि सर आप कभी संघ के कार्यक्रम में दिखते हैं तो कभी कांग्रेस के तो कभी किसी और के। आपके कारण हमलोगों को भी ताने सुनने पड़ते हैं। इस पर सर ने मुझे समझाते हुए कहा कि “अमिता अपने तो सब दोस्त-यार हैं, कौन किस पार्टी से जुड़ा है, उससे मुझे क्या लेना-देना है। मेरा काम तो बस अपने विद्यार्थियों का भला करना है।”
पीआरएसआई का कांफ्रेंस जिसका आयोजन 26-27 दिसंबर 2022 को भोपाल में हुआ था , उसका आमंत्रण सर ने मुझे बहुत पहले भेज दिया था। इसके लिए मैंने शोध पत्र भी भेजा था, लेकिन वहां जाने की मेरी कोई योजना नहीं थी। 23 दिसंबर को सर का फ़ोन आया और उन्होंने पूछा कि तुम कब आ रही हो, तुम्हारे लिए गेस्ट हाउस बुक कर दिया गया है। मैंने सर से कहा कि मेरी आने की कोई योजना नहीं है सर। अब तो टिकट भी नहीं मिलेगी। सर ने तुरंत कहा कि “तुम टिकट करवा कर मुझे भेजो, मैं कंफर्म करवाता हूँ।” अंतत: सर की जिद्द और आदेश की वजह से मुझे भोपाल जाना ही पड़ा। यही मेरी सर से आखिरी मुलाकात थी। शायद सर से मिलना था, इसीलिए मुझे जाना पड़ा। इस कार्यक्रम में बेहद व्यस्तता के बावजूद सर मुझसे लगातार संपर्क बनाए हुए थे। गाड़ी भेजने से लेकर, खाना खाने और सेमिनार किट तक का उन्होंने पूरा ध्यान रखा था।
सबकी बड़ी-छोटी समस्याओं में साथ खड़े रहने वाले पीपी सर के जाने के बाद आज बहुत कुछ बदला हुआ प्रतीत हो रहा है। दिन-रात उनकी भक्ति करने वाले लोग, उनका महिमामंडन करने वाले विद्यार्थी भी बदले हुए तेवर में दिखने लगे हैं। दिन भर जो रौनक सर के आस-पास बनी रहती थी, वे उदासीनता का रूप बहुत जल्दी लेने लगा है। जिन लोगों को लगता है कि व्यवस्था की चमचागिरी करके ही सबकुछ हासिल किया जा सकता है, उनके लिए सर सदैव एक मिसाल के तौर पर इतिहास के पन्नों में दर्ज रहेंगे। पत्रकारिता के शिक्षकों और विद्यार्थियों के साथ-साथ व्यवस्था के विद्रोही आवाज के स्वर को सर का व्यक्तित्व हमेशा बुलंद करता रहेगा। सर का जीवन इस बात को साबित करता है कि यदि आप व्यवस्था के खिलाफ जायेंगे तो कठिनाईयां तो बहुत होंगी, लेकिन उन कठिनाईयों के बीच आप जो इतिहास रचेंगे, उसे कोई नहीं मिटा सकता है।
यह लेख ऐसे ही जुझारू, निर्भीक योद्धा का दस्तावेजीकरण है जो आगामी पीढ़ी को हमेशा सीख देती रहेगी और समाज में गलत-सही के फासले को बनाये रखने में लोगों का मार्गदर्शन करेगी। सर की संघर्षशीलता और हर परिस्थिति में उनकी दृढ़ता का ही परिणाम है कि इस दुनिया में न होकर भी वे इस दुनिया के लिए अविस्मरणीय हो गये। तमाम साजिशों और रंजिशों के बावजूद उनके अस्तित्व को कोई नहीं मिटा सका, बल्कि उनकी लोकप्रियता और कद बढ़ता ही रहा। सबकी मदद के लिए तत्पर रहने वाले पीपी सर एक अलग दुनिया की यात्रा पर निकल पड़े, जहां शायद उन्हें समझने वाले, उनके जैसी सोच रखने वाले लोग ज्यादा हो। सर के जीवन के उद्देश्यों और मार्ग पर हम थोड़ा भी अमल कर सकें तो सर के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।