15 वर्षों में भी नही खरी उतर पाई प्लानिंग, इम्प्लीमेंटेशन और मॉनिटरिंग में न्यू पेंशन स्कीम
वर्ष जनवरी 2020 में आई द्वितीय नेशनल जुडिशनल पे कमिशन की रिपोर्ट में जुडिशरी सर्विसेज के लिए एनपीएस के स्थान पर 1972 सिविल सर्विसेज एक्ट के अंतर्गत पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने की संस्तुति करने के बाद अब भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की 23 सितम्बर 2020 को प्रकाशित रिपोर्ट में भी एनपीएस के इम्प्लीमेंटेशन एवम नियमों की अस्पष्टता पर चिंता जाहिर की गयी है। 01 जनवरी 2004 से सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए लागू नेशनल पेंशन सिस्टम आज देश के तकरीबन 70 लाख कर्मचारियों के लिए चिंता का कारण बनी हुई है और इसका विरोध तमाम कर्मचारी संगठन अलग-अलग तरीकों से कर रहे हैं।
एनपीएस के भारी विरोध के कारण न केवल पंजाब, आंध्र प्रदेश, केरल जैसे राज्यों में राज्य सरकारों द्वारा कमेटियों का गठन करना पड़ा बल्कि दिल्ली जैसे राज्य को अपनी विधानसभा में एनपीएस के स्थान पर पुरानी पेंशन बहाली का प्रस्ताव भी पास कर केंद्र को भेजना पड़ा। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि 15 साल बीत जाने के बावजूद अभी तक एनपीएस की प्लानिंग, इंप्लीमेंटेशन एवम मॉनिटरिंग में भारी दोष पाये गये हैं।
यहाँ तक कि कुल 66 से 68 विभागों में मॉनिटरिंग कमेटियों का गठन भी नही किया जा सका है, न ही अद्यतन मिनिमम एश्योर्ड रिटर्न गारंटी स्कीम को ही अमल में लाया जा सका है। कैग ने सरकार से संस्तुति की है कि सब्सक्राइबर को डिलेज पेमेंट के लिए पेनॉल्टी दी जाए और कैग ने यह भी साफ किया है कि पीएफआरडीए स्वयम ट्रस्टी बैंक को लीगेसी अमाउंट ट्रांसफर करने के लिए अवेयर नहीं था। हाई लेवल एक्सपर्ट ग्रुप द्वारा संस्तुत द्विवार्षिक एक्चुरियल फण्ड इवैल्यूएशन के कोई संकेत न होने के कारण पर एनपीएस फण्ड वायबिलिटी पर कैग ऑडिट एश्योरेंस नहीं कर सका।
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पुरानी पेंशन बहाली के लिये गठित केंद्रीय स्तर पर संगठन एनएमओपीएस के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनजीत सिंह पटेल का कहना है कि एनपीएस में पीएफआरडीए द्वारा कुल फण्ड का 85% सरकारी प्रतिभूतियों में और 15% शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करने की बात की गयी थी लेकिन आज लगभग 16 साल बीत जाने पर भी कर्मचारी काकुल फण्ड अलग-अलग ना तो प्रदर्शित किया जाता है और ना ही दोनों पर अलग-अलग रिटर्न की सुविधा प्राप्त हुई है जिसके कारण पूरा कार्पस आज मार्केट के जोखिम का शिकार हो रहा है और आए दिन लोगों का पैसा डूब रहा है। गत वर्ष पीएफआरडीए स्वयं पेंशन फण्ड के 1620 करोड रुपए डूबने की पुष्टि कर चुका है।
इसलिए हम सरकार से निश्चित सेवा के बदले निश्चित पेंशन की मांग करते हैं जो अन्तिम बेसिक सैलरी और महंगाई भत्ते के आधार पर दी जाती है। यही नहीं पुरानी पेंशन स्कीम के तहत 10 वर्षों की सरकारी सेवा के पश्चात रिटायर होने वाले कर्मचारियों के लिए भी मिनिमम पेंशन का प्रावधान किया गया था जो कि अन्तिम बेसिक सैलरी का 33 प्रतिशत एवं महंगाई भत्ते के साथ दे होता था,और यह नौ हजार रुपये से कम नहीं हो सकती थी। जबकि आज 10 से लेकर 15 वर्षों की सेवा के बाद भी सेवानिवृत्त होने वाले अभी नहीं थोड़ी देर में सलाल अच्छा कर्मचारियों को तीन सौ से लेकर बारह सौ रुपए तक की पेंशन प्राप्त हो रही है जो कि वृद्धावस्था पेंशन से भी काफी कम है।
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यही नहीं इन सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों की नियमित एवं गैर नियमित मिलाकर कुल सेवा 20 वर्ष से अधिक हो रही है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के अनुसार किसी भी कर्मचारी की सेवा अवधि में नियमित एवं गैर नियमित दोनों को अनिवार्य रूप से जोड़ा जाता है। यही नहीं ईपीएफओ के केस में सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय देते हुए स्पष्ट किया था कि किसी भी कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के पश्चात पेंशन उसकी अन्तिम सैलरी के अनुपात में दी जाएगी न कि बाजार के अनुसार।
परंतु फिर भी अद्यतन एनपीएस व्यवस्था कर्मचारी को सेवानिवृत्त पश्चात ओल्ड एज सोशल इकोनॉमिकल सिक्योरिटी दे पाने में असफल साबित हो रही है बावजूद इसके सरकार इसके दुष्परिणामों से बेखबर कर्मचारियों पर इसको थोप रही है। इस नयी व्यवस्था मे कर्मचारी की सेवाकाल में मृत्यु होने पर फैमिली पेंशन का जो प्रावधान किया गया है वह भी अत्यंत शोषणकारी है। मृतक कर्मचारी की फैमिली को केवल उसी परिस्थिति में फैमिली पेंशन दी जाती है जब मृतक कर्मचारी के एनपीएस खाते का समस्त फण्ड सरकार वापस ले लेगी जबकि उस खाते में कर्मचारी एवं नियोक्ता दोनों का अंशदान जमा किया जाता है जो कि अन्तिम बेसिक सैलरी एवं महंगाई भत्ते का क्रमशः 10% एवं 14% होता है।
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