मेरी लड़ाई ध्रुवीकरण की राजनीति के खिलाफ है – कन्हैया कुमार
जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार कन्हैया कुमार भाजपा के नेता और केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के खिलाफ जाति की सीमा से परे कम्यूनिस्ट पार्टी के समर्थकों की बड़ी संख्या के कारण बिहार के लेनिनग्राड के नाम से प्रसिद्ध बेगूसराय में खड़े हैं। श्री कुमार और श्री सिंह प्रभावशाली ऊँची जाति भूमिहार समुदाय से हैं लेकिन उनकी राजनीति दो ध्रुवों की परिचायक है। बिहात मसलनपुर गाँव में कंक्रीट और छप्पर के उनके एक मंजिला घर के बाहर कई कप चाय पर बात करते हुए श्री कुमार ने इस लड़ाई को सत्य और झूठ के बीच की लड़ाई और संविधान तथा लोकतांत्रिक संस्थानों की रक्षा के संघर्ष के रूप में दिखाया। इस बातचीत का सारांश इस प्रकार है :
आप किसे अपना प्रतिस्पर्धी मानते हैं ॽ भाजपाई उम्मीदवार गिरिराज सिंह को या महागठबंधन के उम्मीदवार तनवीर हसन को ॽ
मैं दोनों में से किसी को अपना प्रतिस्पर्धी नहीं मानता। मेरी लड़ाई किसी व्यक्ति विशेष के विरुद्ध नहीं है। यह तो एक विचारधारा के खिलाफ है : उस विचारधारा के खिलाफ है जो ध्रुवीकरण की राजनीति की बात करती है, जो विभाजनकारी है, संविधान पर आक्रमण करने वाली है और लोकतांत्रिक संस्थानों पर हमला करने वाली है। यह लड़ाई है : हक और लूट के बीच की, सच और झूठ के बीच की।
चुनावी अभियान में विकास, देशभक्ति, पुलवामा हमला और बालाकोट हवाई हमले जैसे भाजपा के मुद्दों को आप कैसे देखते हैं ॽ
हम सब भाजपा की प्रचारात्मक राजनीति को जानते हैं। उसकी विभाजनकारी राजनीति को जानते हैं। चुनावी फसल काटने के लिए अगर वे इन चीजों को लेकर इतने आश्वस्त हैं तो उन्होंने शिवसेना और जद (यू) जैसे दलों की शर्तों पर उनके साथ गठबंधन क्यों किया ॽ देशभक्ति और हमारे सैनिकों की बहादुरी पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। इन्हें लेकर हमेंशा से हर भारतीय सलाम करता आया है। लेकिन इनका राजनीतिकरण मेरे मुताबिक निंदनीय होना चाहिए। ‘राष्ट्र विरोध’ और ‘फर्जी खबरों’ वाले भाजपा के निंदनीय अभियान का समर्थन सही सोच रखने वाला कोई भी भारतीय नहीं कर सकता। पुलवामा आतंकी हमले और बालाकोट हवाई हमले को उठाकर अपनी असफलताओं को छिपाने के लिए उन्होंने एक षड्यंत्र रचा … देश के लोगों के साथ उन्होंने पिछले चुनाव में जो वादे किये थे, उन्हें छिपाने के लिए।
लेकिन बेगूसराय के लोगों को क्यों आपको वोट देना चाहिए ॽ
कारण मैं इस मिट्टी का पुत्र हूँ, और भाजपाई उम्मीदवार के जैसे मुझे आयातित नहीं किया जा रहा है। आप अच्छे से समझ सकते हैं कि क्यों गिरिराज सिंह एक सप्ताह तक बेगुसराय से चुनाव लड़ने को अनिच्छुक थे … उन्हें खतरा महसूस हो रहा होगा। बेगूसराय के लोग मुझे वोट डालेंगे ताकि द्वेष की राजनीति, डाँट-डपट और दमन की राजनीति जैसी सभी प्रकार की राजनीतियों के खिलाफ दिल्ली में उनकी आवाज़ सुनी जाए; वे वोट डालेंगे भागीदारी वाले लोकतन्त्र, सामाजिक साहचर्य और समावेशीकरण के लिए।
पूर्व में राजद प्रमुख लालू प्रसाद और मुख्यमंत्री नीतिश कुमार, दोनों के द्वारा आपका भव्य स्वागत किये जाने के बावजूद आपको एक उम्मीदवार के रूप में खड़ा करने से महागठबंधन ने इनकार क्यों कर दिया ॽ
मुझे इसके बारे में बिल्कुल भी पता नहीं है। किन्तु किसी के खिलाफ द्वेष नहीं है। मुझे खुले दिमाग और और साफ मुद्दे पर चुनाव लड़ना है। बेगुसराय के लोग राजनीतिक रूप से इतने परिपक्व हैं कि वे हर चीज जानते और समझते हैं। वे इस चुनाव में सभी मिथकों को तोड़ने के लिए तैयार हैं : जाति, कैमिस्ट्री, जोड़-तोड़ और प्रचार से जुड़े सारे मिथक तोड़ने को तैयार हैं। बेगूसराय कभी भाजपा का गढ़ नहीं रहा है … सिर्फ 2014 में भाजपा के उम्मीदवार ने यह सीट जीती थी। किन्तु कम्यूनिस्टों और वाम विचारधाराओं का यह गढ़ रहा है। वाम विचारधारा के बावजूद कभी वैसे जातीय नर संहार यहाँ नहीं हुये हैं जैसे कि केन्द्रीय बिहार के जिलों में पहले होते रहे थे।
क्यों ॽ क्योंकि यहाँ लोग अच्छे से जागरुक हैं और राजनीतिक रूप से शिक्षित हैं … बेगूसराय में ऐसा नहीं है कि सिर्फ नीची जातियों के लोग ही वाम समर्थक हों, अपितु उनमें से अधिकांश ऊँची जाति वाले भूमिहार समुदाय से आते हैं।
क्या आप मानते हैं कि भूमिहार समुदाय से आना चुनाव में आपकी सहायता करेगा ॽ
वास्तव में नहीं, सिर्फ भूमिहार जाति को अलग से चिन्हित क्यों किया जाये ॽ मुझे हर एक का, हर जाति का और हर समुदाय का समर्थन मिल रहा है। यह मेरा चुनाव क्षेत्र है, वे सब मेरे लोग हैं, चाहे मुसलमान हों या हिंदू हों। किन्तु इस सामाजिक सच्चाई को मैं कैसे छोड़ सकता हूँ कि मैं एक भूमिहार परिवार में जन्मा हूँ।
जेएनयू छात्र संघ का चुनाव लड़ने से यह कैसे अलग है ॽ
जेएनयू एक अकादमिक संस्था से परे है। यह आपको सामाजिक आंदोलनों से, चेतना से और यहाँ तक कि आपके अपने जीवन से मुक्त रूप से सीखने का अवकाश प्रदान करता है। वहीं पर मेरी आंदोलनधर्मिता फली-फूली और इसने मेरे जीवन की महत्वाकांक्षा बदल दी। जब मैं छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव लड़ रहा था तो मुझे कोई अहसास नहीं था कि ऐसा अभूतपूर्व समर्थन मुझे मिलेगा और चुनाव जीत जाऊँगा। लोकसभा चुनाव लड़ना भी इससे बहुत अलग नहीं है … मैं यहाँ हर रोज लोगों से मिल रहा हूँ और इस चुनाव को भी उसी प्रकार से जीतने के लिए अभूतपूर्व समर्थन प्राप्ति की आशा करता हूँ।
जीतने पर आपकी प्राथमिकताएँ क्या होंगी ॽ
द्वेष और भय की राजनीति के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाना मैं जारी रखूँगा; अमीर और ताकतवर लोगों की जेब से राजनीति को बाहर निकालना और इसे उन आम लोगों तक ले जाना मेरी प्राथमिकता होगी जो कर अदा करते हैं ताकि सरकार चल सके। लोगों को मालिक होना चाहिए … हमें सार्वजनिक समानता, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आधारभूत संसाधनों पर बोलना चाहिए। हमें जबावदेह और पारदर्शी वैकल्पिक राजनीति के लिए आश्वासन देना चाहिए।
जन सहयोग के माध्यम से कितना पैसा आपने एकत्रित कर लिया है ॽ
तीन दिनों में इस पहल ने 30 लाख से ऊपर एकत्रित कर लिये थे किन्तु अचानक एक साइबर हमला हो गया और वेबसाइट खुलना बंद हो गया … चुनाव आयोग के दिशा निर्देश अनुसार 70 लाख जुटाने का लक्ष्य है।
अमरनाथ तिवारी द्वारा लिया गया यह साक्षात्कार 2 अप्रैल 2019 के ”द हिंदू’ में छपा है|
अनुवाद – प्रमोद मीणा
लेखक महात्मा गाँधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के मानविकी और भाषा संकाय में सहआचार्य हैं|
सम्पर्क – pramod.pu.raj@gmail.com, +917320920958
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