
मेरिटल रेप: वैवाहिक जीवन की पवित्रता पर कलंक
कुछ दिनों पहले ट्विटर पर एक ट्रेंड चल रहा था #marriagestrike। इस ट्रेंड के लिए जिम्मेदार था केरल हाईकोर्ट का फैसला। केरल हाईकोर्ट ने एक बहुचर्चित मामले में ‘मेरिटल रेप’ यानी क्या? यह बताते हुए कहा कि अगर कोई पति अपनी पत्नी के साथ उसकी मर्जी के खिलाफ जबरदस्ती शारीरिक सम्बन्ध बनाता है तो उसे बलात्कार माना जाएगा। कोर्ट द्वारा की गई इस व्याख्या के अनुसार पत्नी के शरीर को अपनी सम्पत्ति मान कर उसकी इच्छा के खिलाफ यौन सम्बन्ध बनाया जाए तो उसे मेरिटल रेप यानी कि वैवाहिक दुष्कर्म माना जाएगा।
केरल हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद सोशल मीडिया में फिर एक बार ‘मेरिटल रेप’ का मुद्दा चर्चा में आ गया है और अनेक युवक यह आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि अगर मेरिटल रेप को ले कर कोई कानून बनाया जाता है तो उसके दुरुपयोग की संभावना बढ़ सकती है और एक पुरुष विरोधी हथियार बन सकता है। इस कारण से युवकों ने #marriagestrike हेशटेग को सपोर्ट कर के विवाह न करने की इच्छा व्यक्त की है। अब जब मेरिटल रेप का मुद्दा इतना चर्चा में आया है तो हकीकत में यह क्या है, यह समझना भी जरूरी हो गया है।
कानून में कन्फ्यूजन
मेरिटल रेप का मुद्दा ऐसा है कि इसके बारे में कोई स्पष्ट कानून नहीं है, जिसके कारण तरह-तरह का कन्फ्यूजन होता रहता है। एक समय छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कुछ दिनों पहले ही एक फैसले में कहा था कि पत्नी के साथ जबरदस्ती शारीरिक सम्बन्ध बनाने को बलात्कार की कैटेगरी में नहीं माना जा सकता। पर अभी कुछ समय पहले ही केरल हाईकोर्ट ने एकदम अलग ही फैसला देते हुए कहा है कि मेरिटल रेप डिवोर्स लेने का एक मजबूत आधार हो सकता है। आखिर इन दोनों फैसलों के पीछे की दलीलें क्या हैं, ये भी जानना जरूरी है। जबकि कानून में मेरिटल रेप के बारे में कोई निश्चित स्पष्टता नहीं की गई है।
रेप और मेरिटल रेप के बीच अंतर
इस समय पूरे देश में मेरिटल रेप की ले कर खूब चर्चा हो रही है और इसे क्राइम माना जाए या नहीं, इस बारे में अनेक माध्यमों द्वारा तरह-तरह की दलीलें सामने आ रही हैं। इन संयोगों में रेप और मेरिटल रेप के बीच के अंतर को समझना जरूरी है।
कानून की दृष्टि में रेप
भारतीय दण्ड संहिता के अनुसार अगर कोई व्यक्ति किसी महिला के साथ उसकी मर्जी के खिलाफ जबरदस्ती शारीरिक सम्बन्ध बनाता है तो इसे रेप यानी बलात्कार माना जाता है। यही शारीरिक सम्बन्ध अगर महिला की सहमति से बनाया जाए, पर इस सहमति के पीछे किसी तरह का डर या धमकी जिम्मेदार हो तो इसे बलात्कार माना जाएगा। अगर महिला को विवाह का लालच दे कर शारीरिक सम्बन्ध बनाया जाए तो यह भी बलात्कार माना जाएगा। अगर सहमति प्रकट करते समय महिला की मानसिक स्थिति ठीक न हो अथवा वह नशे में हो तो बनाया गया यौन सम्बन्ध रेप माना जाएगा। अगर युवती की उम्र 18 साल से कम है तो उसकी सहमति अथवा असहमति किसी भी स्थिति में उसके साथ बनाया गया यौन सम्बन्ध बलात्कार माना जाएगा। जबकि पति अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती शारीरिक सम्बन्ध बनाता है तो इसे बलात्कार नहीं माना जाता।
कानून की दृष्टि में मेरिटल रेप
भारतीय दण्ड संहिता में बलात्कार क्या है, इसकी तो व्याख्या की गई है, पर मेरिटल रेप यानी कि वैवाहिक बलात्कार के बारे में कोई स्पष्टता नहीं की गई है। भारतीय दण्ड संहिता की एक धारा में मेरिटल रेप के लिए सजा की व्यवस्था है, पर उसके लिए शर्त यह है कि पत्नी की उम्र 12 साल से कम होनी चाहिए।
इस धारा में कहा गया है कि पति अगर 12 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ बलात्कार करता है तो उसे दण्ड अथवा 2 साल की सजा हो सकती है। इस बात का सीधा मतलब यह होता है कि अगर पत्नी की उम्र 12 साल से अधिक है और पति उसके साथ जबरदस्ती शारीरिक सम्बन्ध बनाता है तो उसे शिकायत करने अथवा न्याय पाने का कोई हक नहीं है।
ईगो का मुद्दा
लेखिका काजल ओझा वैद्य ने अपने एक लेख में लिखा है कि ‘हम ग्लोबल इंडियन बनने की बातें तो जरूर करते हैं, पर अभी ‘मर्जी’ या ‘इच्छा’ नामक शब्द के साथ भारतीय महिला का सम्बन्ध किसी अजनबी की तरह ही रहा है। एक जानीमानी अंग्रेजी पत्रिका द्वारा कराए गए सर्वे में महिलाओं के जवाब पढ़ें तो शहर की पढ़ी-लिखी महिलाओं को आघात लगे, इस तरह के आंकड़े देखने को मिले हैं। ‘सुहागरात’ में कितनी बार शारीरिक सम्बन्ध बना, इस बात से पौरुष और मर्दानगी तय करने वाले पिछड़ी मानसिकता वाले पुरुषों को अब तक यह पता नहीं है कि ‘संभोग’ का अर्थ होता है ‘सम-भोग’। बराबर हिस्सेदारी के साथ बराबर आनंद और बराबर संतुष्टि। यही वैवाहिक जीवन की जरूरत है। पर ज्यादातर युगलों में पुरुष के लिए शारीरिक सम्बन्ध मात्र उसकी अपनी इच्छा, मर्जी और पौरुष प्रस्थापित करने का एक विचित्र अधिकार बना हुआ है।