- विनय कुमार सिंह
देश के लोकसभा चुनाव परिणाम के साथ ही बिहार के लोकसभा चुनाव के 40 सीटों का अप्रत्याशित परिणाम आ चुका है| अप्रत्याशित इस मायने में 40 में से 39 सीटों पर एनडीए प्रत्याशियों को जीत मिली है| सिर्फ़ एक सीट किशनगंज पर, जो परम्परागत रूप से कांग्रेस की मानी जाती है, महागठबन्धन के कांग्रेस के उम्मीदवार मो.जावेद अशरफ को जीत मिली है|
भाजपा के सभी 17 और लोजपा के सभी 6 सीटों के साथ ही जदयू के शेष सभी 16 प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है|
भाजपा ने अररिया, दरभंगा, उजियारपुर, सारण, बेगूसराय, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, प.चंपारण, पू. चंपारण, शिवहर, औरंगाबाद, महराजगंज, आरा, पाटलिपुत्र, पटना साहिब, बक्सर, सासाराम सीट पर; जदयू ने गया, कटिहार, पूर्णिया, बांका, भागलपुर, झंझारपुर, सुपौल, मधेपुरा, वाल्मीकिनगर, मुंगेर, सीतामढ़ी, गोपालगंज, सीवान, नालंदा, काराकाट, जहानाबाद सीट पर और लोजपा ने नवादा, जमुई, खगड़िया, समस्तीपुर, हाजीपुर, वैशाली पर जीत हासिल की|
चुनाव परिणाम के विश्लेषण के पूर्व जीत दर्ज करने वाले व्यक्तियों के दलगत और जातिगत स्थितियों के बारे में जानना आवश्यक होगा| एनडीए के जीत दर्ज करने वाले प्रत्याशियों में सवर्ण 13 (राजपूत-7,ब्राह्मण-2,कायस्थ-1,भूमिहार-3), दलित/महादलित 6 (पासवान-4,रविदास-1,मुसहर-1), पिछड़ा/ओबीसी 12 (यादव-5,कुशवाहा-3,वैश्य-3,कुर्मी-1), अतिपिछड़ा/ईबीसी:-07(धानुक-01,केवट-01,गंगेय-01,गोसाईं-01,निषाद-01,गंगोता-01,चन्द्रवंशी (कहार)-01)|
जदयू की ओर से 17 प्रत्याशियों में से एक मात्र अल्पसंख्यक प्रत्याशी थे सैयद महमूद अशरफ (शेरशाहवादी) जो अत्यन्त पिछड़ी जाति से आते हैं| वे किशनगंज से प्रत्याशी थे और काँग्रेस के मो. जावेद अशरफ से पराजित हुए| गौरतलब यह है कि खगड़िया से एक मात्र अल्पसंख्यक समुदाय के प्रत्याशी लोजपा के चौधरी महबूब अली कैसर भी अशरफ बिरादरी के हैं अर्थात एनडीए गठबन्धन से पसमांदा समुदाय (अत्यन्त पिछड़ी जाति) के न तो किसी व्यक्ति को टिकट दिया गया और न उस समुदाय से कोई जीत कर ही आए, ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है|
एनडीए ने तीन महिला क्रमशः रमा देवी (भाजपा), कविता सिंह (जदयू) और वीणा सिंह (लोजपा) से प्रत्याशी बनाया और तीनों ने जीत दर्ज की| रमा देवी वैश्य (कलवार), कविता सिंह और वीणा सिंह दोनों राजपूत जाति से आती हैं| रमा देवी तीसरी बार सांसद के रूप में निर्वाचित हुई हैं वहीं कविता सिंह और वीणा सिंह पहली बार सांसद के रूप में निर्वाचित हुई हैं| अत्यन्त पिछड़ा वर्ग, दलित/महादलित और अल्पसंख्यक समुदाय की किसी भी महिला को न तो टिकट दिया गया और न ही वे प्रतिनिधित्व के लिए सामने आ पायी|
महागठबन्धन के दिग्गज नेता जो चुनाव हार गए वे हैं – वैशाली से रघुवंश प्रसाद सिंह, सासाराम से मीरा कुमार, पटना साहिब से शत्रुघ्न सिन्हा, पाटलिपुत्रा से मीसा भारती, दरभंगा से अब्दुल बारी सिद्दीकी, कटिहार से तारिक अनवर, बेगूसराय से कन्हैया कुमार, मधेपुरा से शरद यादव/पप्पू यादव, बक्सर से जगदानन्द सिंह, सुपौल से रंजीत रंजन,खगड़िया से मुकेश सहनी (सन ऑफ मल्लाह), बांका से जयप्रकाश नारायण यादव, गया से जीतन राम माँझी, उजियारपुर और काराकाट से उपेंद्र कुशवाहा|
कुछ तथ्य जानना दिलचस्प होगा| रंजीत रंजन (सुपौल) महागठबन्धन की कांग्रेस प्रत्याशी और उनके पति पप्पू यादव उर्फ राजेश रंजन (मधेपुरा) से जनाधिकार पार्टी (जाप) चुनाव हार गए| पिछली बार (2014) में दोनों एक ही गठबन्धन में शामिल थे| उस वक़्त बिहार में राजद, कांग्रेस और एनसीपी का गठबन्धन था| पिछले चुनाव (2014) में महागठबन्धन की ओर से सात प्रत्याशी निर्वाचित होकर संसद पहुँचे थे| राजद की ओर से उस वक़्त चार, कांग्रेस की ओर से दो और एनसीपी से एक प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी| कटिहार से निर्वाचित तारिक अनवर इस बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और हार गए|
शत्रुघ्न सिन्हा पटना साहिब से पहली बार चुनाव हार गए, पूर्व में वे एनडीए के घटक दल भाजपा से लड़ते थे, इस बार वे महागठबन्धन के घटक दल कांग्रेस से चुनाव लड़े और हार गए| शत्रुघ्न सिन्हा और उनकी पत्नी पूनम सिन्हा ने अलग-अलग गठबन्धन से चुनाव लड़ा था| पूनम सिन्हा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सपा की टिकट पर चुनाव लड़ीं और हार गयीं, दोनों पूर्व मुख्यमन्त्री दारोगा प्रसाद राय के पुत्र और पूर्व मुख्यमन्त्री क्रमशः लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के समधी और तेजप्रताप यादव के ससुर चंद्रिका प्रसाद राय पहली बार लोकसभा का चुनाव (सारण) लड़े और पराजित हुए|
पूर्व मुख्यमन्त्री केदार पाण्डेय के पौत्र शाश्वत केदार पाण्डेय वाल्मीकि नगर से पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़े और हार गए|
पूर्व केन्द्रीय कृषि मन्त्री अखिलेश प्रसाद सिंह के पुत्र आकाश कुमार सिंह पूर्वी चंपारण से रालोसपा के टिकट पर चुनाव लड़े और हार गए|
वर्ष 1977-2014 तक का बांका और जहानाबाद संसदीय क्षेत्र का इतिहास रहा है कि वहाँ से चुनाव जीतने वाले और द्वितीय स्थान पर रहने वाले सवर्ण (राजपूत और भूमिहार) ही रहा करते थे| यह पहली बार हुआ है कि बांका से चुनाव जीतने वाले गिरधारी यादव और दूसरे स्थान पर रहने वाले जयप्रकाश नारायण यादव दोनों एक ही जाति (पिछड़ा वर्ग) से हैं| ठीक उसी तरह जहानाबाद से पहली बार चन्द्रेश्वर प्रसाद चन्द्रवंशी (कहार, अत्यन्त पिछड़ी जाति) ने जीत दर्ज की, वहीं दूसरे स्थान पर पिछड़ी जाति के ही सुरेंद्र यादव रहे|
विगत 30 वर्षों का यह रिकॉर्ड है कि जो भी व्यक्ति लोकसभा के अध्यक्ष पद पर रहे वे पुनः निर्वाचित होकर लोकसभा में नहीं जा सके हैं| यह रिकॉर्ड इस बार भी यथावत रहा| सासाराम से चुनाव लड़ रही कांग्रेस की प्रत्याशी व पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार चुनाव हार गयी हैं|
इस चुनाव में सर्वाधिक नुकसान यदि किसी दल का हुआ तो वह राजद का|
सर्वाधिक चिन्तन करने की जरूरत वामपन्थी पार्टियों को है| इस बार उन्हें बेगूसराय से कन्हैया कुमार, आरा से राजू यादव, काराकाट से राजाराम सिंह और सीवान से अमरनाथ यादव से उम्मीद थी| राजू यादव और कन्हैया कुमार भले ही दूसरे स्थान पर रहे हों लेकिन राजाराम सिंह, अमरनाथ यादव और कुंती देवी वैसा प्रदर्शन नहीं कर पायी, जैसी इन लोगों से उम्मीद थी| एक बात तय हो गयी है कि इस पूँजीवादी व्यवस्था में बिना पूँजी के संसदीय चुनाव में पूँजीवादी पार्टियों को शिकस्त देना मुश्किल ही नहीं असंभव भी दिखाई देने लगा है| आगे कम्युनिस्ट पार्टी का क्या दृष्टिकोण होगा यह देखने वाली बात होगी| कुल मिलाकर यह चुनाव परिणाम वामपन्थियों के लिए निराशाजनक ही माना जायेगा|
लेखक पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं|
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