अंतरराष्ट्रीय

क्‍यूबा में नेतृत्व परिवर्तन

 

क्‍यूबा के बारे में जानने की मेरी उत्सुकता बहुत पुरानी है। जब मैं इंजीनियरिंग का छात्र था और स्टूडेंट फेडरेशन में शामिल हुआ था तब दिल्ली में मावलंकर हॉल में एक एजुकेशनल कांफ्रेंस हुई थी। उस कांफ्रेंस के बाद बहुत से छात्र चे गुयिवारा और फिदेल कास्त्रो के बारे में कुछ उसी क्रान्तिकारी रूमान के साथ बतिया रहे थे जैसे कि हम भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद या रामप्रसाद बिस्मिल जैसे क्रान्तिकारियों के बारे में बात कर रहे हों। तो चे और फिदेल हमारे आदर्श बने। उनके बारे में और अधिक जानने की उत्सुकता बढ़ी। तो कुछ किताबें छानीं।

लेकिन तब क्‍यूबा जाने की बात सोचना शेखचिल्ली के सपने से ज्यादा कुछ न होता इसलिए सोचा ही नहीं गया। हिन्दुस्तान में ही कश्मीर, शिमला और अंडमान देखना न पूरे होने वाले सपनों की तरह थे। फिर क्‍यूबा का तो इतिहास-भूगोल ही कुछ पता नहीं था। बहरहाल एक लम्बे अंतराल के बाद ही ये सभी जगहें देखने की इच्छा पूरी हो सकी। जनवरी 2019 में क्‍यूबा जाने का सपना भी साकार हुआ। क्‍यूबा पहुँच कर वहाँ का सामाजिक-सांस्कृतिक ताना-बाना समझने की कोशिश चलती रही तो वहाँ की राजनीति के बारे में जानने-समझने की इच्छा भी प्रबल रही।

लेकिन भाषा की समस्या बहुत आड़े आ रही थी। दुभाषिया महंगा सौदा था अतः गाईड और कैब ड्राईवर से काम चलाया। फिर जो अंग्रेजी बोलता दिख जाता दो चार बातें उससे हो जातीं। हवाना में केपिटल बिल्डिंग के सामने पहुँच कर मैने गाईड से पूछा कि अभी पॉलिटिकल सिचुएशन कैसी है? राऊल के बाद जो नये प्रेसीडेंट मिगेल डायस कानेल आए हैं उनका क्या हाल है? तो गाईड ने जवाब दिया कि बूढ़े लोगों का वही पुराना घिसा पिटा सोच होता है। राऊल कास्त्रो बहुत बूढ़े हो चुके हैं वो कुछ नया नहीं कर सकते। कुछ नया करने के लिए ऊर्जा चाहिए, क्रिएटिव मस्तिष्क चाहिए। कानेल युवा हैं उनमें एक नयी सोच भी है और एनर्जी भी है। तब मैने पूछा कि कम्युनिस्ट पार्टी पर अधिकार तो राऊल का ही है। वही फर्स्ट सेक्रेटरी यानि महासचिव हैं। गाईड बोला वो ठीक है पर चूंकि कानेल उन्हीं की मर्जी से प्रेसीडेंट बने हैं तो वह दखल नहीं देंगे। और उन्होंने 2021 में महासचिव का पद छोड़ने की बात भी कही है। इससे ज्यादा बात नहीं हो सकी।

बाद में मुझे पता चला कि राऊल ही कानेल के मेंटर (मार्गदर्शक) हैं और वे वाईस प्रेसीडेंट से प्रेसीडेंट उनकी मर्जी से ही बने हैं। राऊल ने उनके लिए ही प्रेसीडेंट का पद छोड़ दिया है। अब 19 अप्रैल को कानेल राष्ट्रपति के साथ-साथ क्‍यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखिया यानि फर्स्ट सेक्रेटरी भी बन गये। जैसाकि विगत में फिदेल कास्त्रो और राऊल कास्त्रो थे। यह क्‍यूबन कम्युनिस्ट पार्टी का शीर्ष स्थान है। कानेल से क्‍यूबा के लोगों की अलग अपेक्षाएं हैं। पहली अपेक्षा बेरोजगारी कम करना, आर्थिक सुधार और सामाजिक सुरक्षा तथा संतुलन बनाए रखने की है।कोरोना वायरस का संक्रमण 195 देशों में फैल चुका है. संक्रमित मामलों की संख्या पौने चार लाख के आस पास पहुंच रही है.

लेकिन पिछले वर्ष में कोरोना के चलते बाकी दुनिया की तरह वहाँ की आर्थिक स्थिति को भी बड़ा झटका लगा है। अर्थव्यवस्था में 11 प्रतिशत की गिरावट हुई है। यह इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि क्‍यूबा एक गरीब देश है। और अमेरिका तथा यूरोपियन यूनियन के प्रतिबंध यथावत हैं। ऐसी स्थिति में क्‍यूबा में स्थिरता और शांति बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। अमेरिका समर्थक असंतुष्ट भी काफी हैं। देखना यह है कि इस चुनौती से कानेल किस तरह निपटते हैं। क्या वह वर्तमान नीतियों में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन करेंगे?

अपने पूर्ववर्ती शीर्ष नेताओं की आर्थिक नीतियों और विदेश नीति में आगे सुविचारित सुधारात्मक कदम उठाएंगे, यह सावधानी रखते हुए कि देश का सामाजिक ढ़ाचा भी न गड़बड़ाए। अमेरिका से। बिना दवाब झेले कूटनीतिक सम्बन्ध कैसे बेहतर हों यह भी बहुत कठिन काम है। अब कानेल की भविष्य नीति और दक्षता का पूर्वानुमान दो बातों से लगाया जा सकता है। पहला यह कि विगत वर्षों में कानेल की कार्यप्रणाली क्या रही है। और क्‍यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी तथा सरकार में उनकी भूमिका और प्रशिक्षण कैसा रहा है। कानेल के कैरियर की अगर बात की जाए तो 1982 में उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की। उसके बाद तीन वर्षों तक क्‍यूबा की सेना में सेवाएं दीं जो कि हर क्यूबाई युवा के लिए आवश्यक है। कुछ और जिम्मेदारियाँ संभालते हुए 1993 में कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने।

यह वह समय था जब सोवियत संघ का विघटन हो चुका था। वहाँ साम्यवादी व्यवस्था खत्म हो चुकी थी। सोवियत संघ से मिलने वाली सहायता और सब्सिडी बंद हो गयी थी। पेट्रोल, खाद्यान्न और दवाईयों की भारी कमी थी। यह समय क्यूबा के लिए बहुत परेशानी का समय था। इसे ‘स्पेशल पीरियड इन पीस टाईम’ कहा गया। तब वेनेजुएला ने तेल दिया और बोलीविया ने सहयोग किया। ह्यूगो शावेज फिदेल के बहुत निकट थे। इस समय पर्यटन पर फिर जोर दिया गया। इस कठिन समय में कानेल की कार्यक्षमता के दम पर 2003 में उन्हें पोलित ब्यूरो का सदस्य बनने का अवसर मिला। यहाँ से उनकी जिम्मेदारियाँ बढ़ गयीं, साथ ही चुनौतियाँ और कार्यनिष्पादन की अपेक्षाएं भी।

2006 में फिदेल कास्त्रो गंभीर रूप से बीमार हो गये और सार्वजनिक जीवन से अलग हो गये। तब राऊल कास्त्रो कार्यकारी राष्ट्राध्यक्ष नियुक्त हुए। 2008 में फिदेल कास्त्रो ने त्यागपत्र दे दिया और राऊल कास्त्रो क्‍यूबा के राष्ट्रपति और क्‍यूबन कम्युनिस्ट पार्टी के फर्स्ट सेक्रेटरी बन गये। राऊल कास्त्रो के साथ कानेल की अच्‍छी समझदारी थी। 2008 से ही क्‍यूबा में कृषि सुधार लागू हुए। एक वर्ष बाद ही 2009 में कानेल को उच्च शिक्षा का मंत्री तथा प्रारंभिक उपराष्ट्रपति बना दिया गया। 2010 से कुछ और सुधार शुरू हुए। नागरिकों को छोटे निजी व्यवसाय की छूट दी गयी। 2011 में क्‍यूबा के नागरिकों को व्यक्तिगत तौर पर घर खरीदने-बेचने का संवैधानिक अधिकार दे दिया गया।

अगस्त 2012 में क्यूबन एनर्जी नामक सार्वजनिक कंपनी ने पहला सोलर संयंत्र स्थापित किया। यह कंपनी क्यूबन सोलर ग्रुप की सदस्य थी। 2013 में दस और सोलर प्लांट लगाए गये। जिनसे अनेक भागों में विद्युत आपूर्ति संभव हो सकी। इसी वर्ष कानेल को फर्स्ट वाईस प्रेसीडेंट चुना गया। क्‍यूबा पर तमाम आर्थिक पाबंदियों के चलते वहाँ बड़ा आर्थिक संकट था। समुद्री तूफानों के कारण भी परेशानियाँ बढ़ गयी थीं। आय के स्रोत सीमित थे। शकर, तंबाकू, सिगार, मछली, कॉफी, चावल, आलू और पशुओं के निर्यात पर अर्थव्यवस्था टिकी हुई थी। पर्यटन कम हो गया था। ऐसे में क्‍यूबा के सामाजिक ढांचे को छिन्नभिन्न होने से बचाना और अमेरिका समर्थक असंतुष्टों से निपटना बहुत कठिन कार्य था।

राऊल कास्त्रो

राऊल कास्त्रो क्‍यूबा की आजादी के लिए सशस्त्र विद्रोह तथा अमेरिकी साजिशों निपटने तथा क्‍यूबा के लोगों को बुनियादी जरूरतों की आपूर्ति, उनकी हौसला अफजाई तथा तथा असंतुष्टों से निपटने के कौशल में फिदेल कास्त्रो के कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे थे। अब उन्हें एक समर्थ उत्तराधिकारी की तलाश थी। जिसे उन्होंने कानेल के रूप में पहचाना और विकसित किया। ऐक बात यह थी कि कानेल ने न तो क्‍यूबा की मुक्ति की लड़ाई देखी थी न लगातार युद्ध और भयानक साजिशों से निपटने का उनका अनुभव था पर नीति निर्धारण और उनके कार्यान्वयन में वे पारंगत थे। इसीलिए राऊल कास्त्रो के विश्वासपात्र थे।

इसका सुफल यह मिला कि 2018 में वह क्‍यूबा की राज्य समिति के अध्यक्ष नामित हुए और 2019 में क्‍यूबा के राष्ट्रपति। इसी वर्ष नया संविधान बना। खाद्य सामग्री की राशनिंग की। राऊल कास्त्रो ने राष्ट्रपति पद छोड़ दिया। अब वे सिर्फ कम्युनिस्ट पार्टी के फर्स्ट सेक्रेटरी थे। जो वहाँ की राजसत्ता में सर्वोच्च स्थान है। 19 अप्रैल 2021 को उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया और मिगेल डायस कानेल को वहाँ की नेशनल असेंबली द्वारा चुने जाने के बाद राष्ट्र की बागडोर सौंप दी। यह करीब-करीब तय था क्योंकि राऊल कास्त्रो ने 2021 में कमान छोड़ने की बात पहले ही बता दी थी।

दुनियाभर ने इसे कास्त्रो परिवार के अंत के रूप में देखा। अब कानेल की भविष्य की क्या नीति होगी इसे उनके कांग्रेस मे दिए गये वक्तव्य के संदर्भ में भी समझा जा सकता है। उन्होंने तीन महत्वपूर्ण बातें कहीं। हम अपने विचारों पर दृढ़ हैं। इतिहास (अतीत) को समझते हैं। भविष्य पर विचार किया है। मतलब विचारों पर दृढ़ हैं तो विचारधारा अपरिवर्तित रहेगी। इतिहास से जो समझा है, सबक लिए हैं भविष्य उनके आलोक में समझा जाएगा और हर स्थिति पर विचार करने के बाद ही आगे बढ़ा जाएगा।

दरअसल कानेल एक अनुशासित व्यक्ति हैं, प्रशासनिक दक्षता रखते हैं, अपने देश के साथ-साथ दुनिया की नब्ज भी समझते हैं। उनमें लचीलापन भी है। विगत दो वर्षों में तमाम उद्योगों और सेवा क्षेत्र में निजी भागीदारी को प्रोत्साहन दिया है। पर्यटन और निर्यात को बढ़ाया है। हाल ही में इंटरनेट को सरकारी जकड़ से मुक्त किया है। दक्षिण अमेरिकी और कैरीबियन पड़ोसी देशों से सम्बन्ध सुदृढ़ किये हैं। लेकिन अगर हम अन्य साम्यवादी देशों में अपने उत्तराधिकारियों का इतिहास देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि वहाँ बाद के शासक पूंजीवादी उदारीकरण और व्यापार के प्रभाव में फंसते चले गये। एकदलीय शासन बना रहा पर समाजवादी समाज निर्माण का लक्ष्य अधूरा ही रहा।

चीन का उदाहरण सामने है। क्‍यूबा के बाद मैं वियतनाम भी गया। वहाँ भी यह देखा कि व्यापार प्रमुख है। उनके चीन और अमेरिका दोनों से अच्‍छे सम्बन्ध हैं। व्यापारी धनी हैं, जनता खाने कमाने लायक। गरीबी भी कायम है। कानून व्यवस्था बेहतर है। क्‍यूबा के संदर्भ में अभी पक्के तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन कानेल की अब तक की कार्यशैली से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वह कोई भी जरूरी कदम सावधानी और संतुलन के साथ ही उठाएंगे। लेकिन आर्थिक सुधारों को गति अवश्य देंगे। आखिर उत्तरजीविता उर्फ सर्वाईवल का सवाल तो है ही।

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शैलेन्द्र चौहान

लेखक स्वतन्त्र पत्रकार हैं। सम्पर्क +917838897877, shailendrachauhan@hotmail.com
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