नेताओं की बेलगाम बयानबाजी
- गौतम एस.आर.
चुनाव के आते ही नारों का सिलसिला भी शुरू हो जाता है। नारो के सहारे ही राजनीतिक दल वोट साधने की कोशिश करते है और कई न कई यही नारे पाट्री की पहचान भी बन जाते है। आज कल राजनीतिक पाट्रीयों के नारों के अलावा उनके प्रतिनिधियों के नारों की गूंज हर जगह गूंजती रहती है। जैसे हाल ही में संपन्न हुऐ दिल्ली विधानसभा चुनाव में अनुराग ठाकुर के द्वारा बोला गया ‘‘देश के गद्दारों को गोली मारों सालों को‘‘ इस नारे ने पाट्री के नारे को फिका कर दिया! और तो और बीजेपी का दिल्ली मेें सुपड़ा साफ कर दिया! सोशल मीडिया के दौर में वीडियों के वायरल होने में समय भी कहा ज्यादा लगता है यहां तो वीडियों की रफ्तार बुलेट ट्रेन से भी तेज होती है। वीडियों एक व्यक्ति से सैकड़ों व्यक्ति तक कब पहुंच जाता है पता ही नहीं चलता है। विरोधी दल तो आस लिये बैठा ही रहता है जैसे ही पता चला, दल का आईटी सेल चैकन्ना हो जाता है और तुरन्त वीडियों को वाट्सएप, इंस्टाग्राम और फेसबुक यूनिवर्सिटी पर पोस्ट कर देता है कि फला फला ने देश, धर्म के विरूध्द ऐसा कहा….
वैसे भारत में नारों का इतिहास बहुत पुराना है। कहते हैै कि एक अच्छा नारा धर्म, क्षेत्र, जाति और भाषा के आधार पर बंटे हुए लोगों को साथ ला सकता है लेकिन वहीं खराब नारा राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पलीता लगा सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का ‘‘गरीबी हठाओं‘‘ का नारा तो सभी को याद ही होगा। इसी नारे ने वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत में चार चांद लगा दिये थे। उनके बाद आए भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने आजादी के बाद से देश का सबसे लोकप्रिय नारा दिया ‘‘जय जवान, जय किसान‘‘इस नारे ने न सिर्फ देश का मनोबल ऊंचा किया बल्कि चुनावों में कांग्रेस को जीत भी दिलाई। फिर वर्ष 1998 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी का ‘‘सबकों देखा बारी-बारी, अबकी बार अटल बिहारी‘‘इस नारे ने भाजपा का फिर से सत्ता में पहुंचाया। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त मोदी लहर की शुरूआत हुई भाजपा ने प्रधानमंत्री के चहरे के रूप में नरेन्द्र मोदी को उतारा और देश में गूंजा ‘‘हर-हर मोदी, घर-घर मोदी‘‘ का नारा। लहर ऐसी थी कि विरोधीयों के पसीने छुटा दिये। इसी नारे ने मोदी को वन मैन आरमी बना दिया। इसके बाद मोदी लहर पार्ट टू में ‘‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास‘‘ जैसे नारों ने भाजपा को वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत दिलाने मेें कोई कसर नहीं छोड़ी। कई मरतबा राजनीतिक पाट्रीयों के नेताओं के द्वारा ऐसी बयानबाजी या नारों को बोल दिया जाता है जो पाट्री की साख को तो नुकसान पहुंचाते ही है साथ ही चुनाव में भी पाट्री को उसका खामियाजा उठाना पड़ता है। खैर नेताजी तो नेताजी होते है वो अपने बड़ बोले और ठाठ दिखाने के अन्दाज को तोड़ी छोड़ेगें! वो तो ऐसे ही अपनी पाट्री की नैय्या को डुबुते रहेंगे! कभी पौऐ को लेकर तो कभी गोली मारो को लेकर तो कभी आतंकी को लेकर! जरूरी है कि राजनीतिक पाट्रीयां अपने नेताओं के असभ्य नारों, भाषाण और बयान देने पर खड़ी कारवाई करें।
लेखक स्वतन्त्र लेखन करते हैं|
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