ईरान के नये राष्ट्रपति: नयी बोतल पुरानी शराब
उन्नीस मई को हुई हेलीकॉप्टर दुर्घटना में भूतपूर्व राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मृत्यु के बाद ईरान में नये राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो गई है और सुधारवादी नेता मसूद पेजिश्कियान को निर्वाचित घोषित कर दिया गया है। इन्होंने चुनाव के दूसरे दौर में अपने प्रतिद्वंद्वी और इस्लामी कट्टरपन्थी नेता सईद जलीली को पराजित किया।
कहने को तो ईरान में राष्ट्रपति का चुनाव नागरिकों के सीधे मतदान से होता है लेकिन जब हम चुनाव की प्रक्रिया पर ध्यान देंगे तो पाएँगे कि इस चुनाव में देश के सर्वोच्च धार्मिक नेता की अहम भूमिका होती है।
चुनाव के लिए नामांकन आमन्त्रित किये जाने के बाद सभी उम्मीदवारों के नाम पहले एक अभिभावक परिषद नाम की संस्था को भेजे जाते हैं। अभिभावक परिषद असलियत में ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता की इच्छानुसार ही काम करती है। इसके बारह सदस्यों में छः तो इस्लामी धर्मगुरु होते हैं जिनका चयन सर्वोच्च धार्मिक नेता स्वयं करते हैं। शेष छः सदस्य कानून के विशेषज्ञ होते हैं जो देश के मुख्य न्यायधीश द्वारा नामित किये जाते हैं। चूंकि स्वयं मुख्य न्यायधीश की नियुक्ति भी सर्वोच्च, धार्मिक नेता द्वारा की जाती है अतः परोक्ष रूप से बाकी के छः सदस्य भी सर्वोच्च धार्मिक नेता की इच्छा के अनुरूप ही होते हैं। फिलहाल देश के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह अली खमेनेई हैं।
इस बार के राष्ट्रपति चुनाव के लिए अस्सी लोगों ने अपनी उम्मीदवारी दाखिल की थी जिनमें 74 लोगों की उम्मीदवारी को खारिज करते हुए केवल छः लोगों को चुनाव में हिस्सा लेने की अनुमति दी गई। यह स्पष्ट है कि उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया कहीं से भी लोकतांत्रिक नहीं है और उम्मीदवारों की अंतिम सूची सर्वोच्च धार्मिक नेता की ही इच्छा पर है। अंतिम सूची में स्थान पाने वाले वैसे लोग होते हैं जिनकी शिया इस्लाम के सिद्धांतों में दृढ़ आस्था होती है और जो ईरान के क्रांतिकारी इस्लामी गणतंत्र के मूल्यों में पूरा विश्वास रखते हैं। सर्वोच्च धार्मिक नेता की व्यक्तिगत पसंदगी या नापसंदगी तो अपनी भूमिका निभाती ही है। वैसे तो कानूनन महिला उम्मीदवारों द्वारा चुनाव लड़ने पर कोई रोक नहीं है लेकिन इनकी उम्मीदवारी को अभी तक किसी भी चुनाव में अभिभावक परिषद की स्वीकृति नहीं मिल पायी है। इस बार भी चार महिला उम्मीदवारों ने अपनी उम्मीदवारी दाखिल की थी मगर इन चारों नामों को खारिज कर दिया गया।
चुनाव के नियमों के अनुसार राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के लिए सफल उम्मीदवार के लिए कुल डाले गये मतों के पचास प्रतिशत से अधिक मत प्राप्त करना आवश्यक है। यदि पहले दौर में कोई भी उम्मीदवार जीत के लिए निर्धारित न्यूनतम मत हासिल नहीं कर पाता है तो सबसे अधिक मत पाने वाले दो उम्मीदवारों के बीच दूसरे दौर का मतदान कराना होता है। इस बार अंतिम सूची में स्थान पाने वाले छः उम्मीदवारों में से दो ने पहले दौर के मतदान के पूर्व ही अपना नाम वापस ले लिया। शेष चार उम्मीदवारों में से किसी को भी जीत के लिए आवश्यक न्यूनतम मत प्राप्त नहीं हो पाये। पहले स्थान परपेजिश्कियान और दूसरे स्थान पर जलीली रहे।
पहले दौर के मतदान में मतदाताओं के बीच उत्साह का अभाव था। केवल 39 प्रतिशत लोगों ने अपने वोट डाले जो कम मतदान का अपने आप में रिकॉर्ड था। समीक्षक इसका कारण ईरानी जनता के मन में मौजूदा सत्ताधारियों को लेकर घनघोर निराशा मानते हैं। राष्ट्रपति के पद के लिए उम्मीदवारों की अंतिम सूची जिस प्रकार बनती है उसे देखते हुए आम लोगों के मन में किसी बड़े बदलाव की आशा का अभाव था। दूसरे दौर के चुनाव में नियमानुसार केवल दो उम्मीदवार मैदान में थे- सुधारवादी पेजिश्कियान और कट्टरपन्थी जलीली। सर्वोच्च धार्मिक नेता खमनेई ने भी लोगों से भारी संख्या में मतदान की अपील की। एक वजह और थी। दोनों उम्मीदवारों के बीच में पेज़िश्कियान से लोगों को अधिक उम्मीदें थीं। उनकी विजय को सुनिश्चित करने के लिए उनके समर्थक दूसरे दौर में अधिक संख्या में आये और कुल पचास प्रतिशत लोगों ने मतदान किया।
निर्वाचित उम्मीदवार पेजिश्कियान के लिए राष्ट्रपति का पद काँटों का ताज भी बन सकता है। उनके कार्यकाल के आनेवाले चार साल अनेक चुनौतियों से भरे हैं। ये चुनौतियाँ आंतरिक भी हैं और बाहरी भी। सबसे बड़ी चुनौती तो अर्थव्यवस्था को लेकर है। अमरीका, ब्रिटेन और योरोपीय संघ सहित विभिन्न देशों ने ईरान के विरुद्ध अनेक आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए हैं जिनके कारण उसके तेल निर्यात व्यापार पर प्रतिकूल असर पड़ा है। तेल निर्यात ईरानी अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख आधार स्तंभ है और निर्मात पर प्रतिबन्ध के कारण ईरान को विभिन्न आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जहाँ 2016 में मुद्रास्फीति की दर 10 प्रतिशत थी वहीं पिछले साल यानि 2023 में वह 40 प्रतिशत को पार कर गयी। ऐसी आशंका प्रकट की जा रही है कि अगले साल यह 67 प्रतिशत तक पहुँच सकती है। मुद्रास्फीति के कारण देश में मँहगाई तो बढ़ती जा रही है लेकिन उस हिसाब से लोगों की आमदनी में बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है। ऐसे में आम जनता में असन्तोष, निराशा और क्रोध स्वाभाविक है।
देश की चिन्ताजनक अर्थव्यवस्था के साथ-साथ सरकार की इस्लामी कट्टरपन्थी नीतियों को लेकर भी असन्तोष है। इस असन्तोष की सार्वजनिक अभिव्यक्ति देश की महिलाओं द्वारा हिजाब पहनने के कानून के विरोध के रूप में हुई। 1979 में देश में इस्लामी गणराज्य की स्थापना के बाद महिलाओं के लिए हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया। अगर किसी महिला ने सार्वजनिक स्थल पर हिजाब नहीं पहना है या सही तरीके से नहीं पहना है तो उसे जेल जाना तो पड़ ही सकता है, 74 कोड़ों की मार भी झेलनी पड़ सकती है। सितम्बर 2022 में एक 22 वर्षीया कुर्द स्त्री महसा अमीनी को हिजाब उचित तरीके से नहीं पहनने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया था और हिरासत में ही उनकी मौत हो गयी थी। इस घटना के बाद देश में लगातार प्रदर्शन हुए थे जिन्हें कठोरता से दबा दिया गया। लेकिन विद्रोह महिलाओं के मन में अंदर ही अंदर उबल रहा है। वे हिजाब के कानून को शिया मुस्लिम समाज में महिलाओं की कमतर स्थिति और अपने नैसर्गिक अधिकारों के हनन के रूप में देखती हैं। पेजिश्कियान को देश की बिगड़ी अर्थव्यवस्था और सामाजिक तथा राजनीतिक असन्तोष से तो जूझना ही पड़ेगा, अपनी सुधारवादी छवि के कारण उन्हें अपने कट्टरपन्थी साथियों के विरोध का भी सामना करना पड़ेगा।
जहाँ तक बाहरी चुनौतियों का सवाल है, इनमे सबसे प्रमुख है 2015 में सम्पन्न हुए परमाणु समझौते में अमेरिका को दुबारा वापस जोड़ना। 2015 में ईरान तथा छः अन्य महत्त्वपूर्ण देशों- अमेरिका , ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस और चीन के बीच एक परमाणु समझौता हुआ था जिसमें यह तय हुआ था कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रमों पर प्रतिबन्ध लगाएगा और इसके बदले में उस पर लगाए गये विभिन्त प्रतिबन्धों में छूट दी जाएगी। ऐसा माना जाता है कि ईरान ने समझौते की शर्तों को पूरी ईमानदारी से पूरा किया और इसके बदले में उसे बहुत सारी रियायतें भी मिलीं। लेकिन 2018 में अमेरिका ने तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल के दौरान यह कहते हुए स्वयं को समझौते से अलग कर लिया कि ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखा है। अमेरिका को इस समझौते का पुनः हिस्सा बनाना ईरान के लिए आवश्यक है क्योंकि बिना अमेरिकी भागीदारी के यह समझौता निरर्थक है।
मगर क्या पेजिश्कियान ईरान की घरेलू और बाहरी समस्याओं का समाधान हासिल कर पाएँगे? अपने चुनाव प्रचार के दौरान, उन्होंने पश्चिमी देशों के साथ संबन्ध सुधारने और हिजाब संबंधी कानून में अत्यधिक सख्ती न बरतने की बात कही थी। मगर क्या उन्हें अपने विचारों को कार्यान्वित करने में सफलता मिल पाएगी?
यहाँ यह बात समझ लेनी चाहिए कि पेजिश्कियान ईरानी मानदण्डों के हिसाब से भले ही सुधारवादी हो मगर लोकतांत्रिक देशों के मानदण्डों के रूप में उन्हें कट्टरपन्थी ही माना जाएगा। अगर ऐसा नहीं होता तो उनकी उम्मीदवारी को अभिभावक परिषद और सर्वोच्च नेता की स्वीकृति कभी नहीं मिलती। हाल ही में उन्होंने ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता और इस्लामी गणराज्य के प्रति अपनी वफादारी की घोषणा तो की ही, इजराइल के प्रति आक्रामक रुख जारी रखने और हिजबुल्लाह और हूती विद्रोहियों के साथ-साथ हमास को अपना समर्थन देते रहने की भी घोषणा की। ऐसी स्थिति में अमेरिका के साथ सम्बन्धों में सुधार की गुंजाइश नहीं लगती। वैसे भी विदेशी मामलों में कट्टरपन्थी सर्वोच्च धार्मिक नेता का निर्णय अंतिम होता है। एक और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि यदि अमेरिका में ट्रंप की वापसी हुई तो सम्बन्धों में सुधार की रही सही सम्भावना भी समाप्त हो जा सकती है। कुल मिलाकर यही लगता है कि पेजिश्कियान नयी बोतल में पुरानी शराब की तरह हैं और ईरान की यथा स्थिति में किसी खास बदलाव की आशा नहीं की जा सकती।