क्या चीन ने कोरोना वायरस की बात दुनिया से छिपायी ?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ) को अमेरिका द्वारा मिलने वाली सहायता बन्द कर दी गयी है। डब्ल्यू.एच.ओ पर अमेरिका ने आरोप लगाया था कि कोविड-19 के वक्त उसने चीन के इशारे पर काम किया। अमेरिका अब डब्ल्यू.एच.ओ से बाहर भी हो चुका है। भारत को विश्व स्वास्थ्य संगठन में ऊँची पदवी मिली है। स्वास्थ्य मन्त्री डॉ. हर्षवर्धन इसके एक्जीक्यूटिव बोर्ड के चेयरमैन बन गये हैं। उन्होंने जापान के हिरोकी नकतानी की जगह ली है। चीन के बारे में अमेरिका ने ये आरोप लगाया था कि उसने कोरोना वायरस सम्बन्धी खबर जानबूझ कर छुपायी। विश्व स्वास्थ्य संगठन में अमेरिका की तरह सोचने वाले देशों ने इस पर जाँच भी बिठाने की माँग की है। डॉ. हर्षवर्द्धन भी उस समूह के हिस्सा है जो चीन में वायरस सम्बन्धी जाँच की माँग कर रहे हैं।
ज्योंहि अमेरिका ने जाँच की माँग की दुनिया भर में न्यूज चैनलों ने उसे दुहराना शुरू कर दिया। आखिर क्या हुआ चीन में और कैसे इस वायरस की पहचान हुई इस सम्बन्ध में बहुत कम जानकारी मिलती है। सिर्फ आरोप लगा दिये जाते हैं कि चीन ने बातों को छुपाया। एक उदाहरण ये भी दिया जाता है कि चीन ने उस व्हीसल ब्लोअर डॉक्टर को फटकार लगायी थी जिसने इस वायरस की खबर दुनिया तक पहुँचायी। आइए हम सिलसिलेवार ढ़ंग से उन सभी घटनाओं को जानने का प्रयास करते हैं कि कब कोरानावयरस पैदा हुआ और कैसे उसकी पहचान हुई। लेख थोड़ा लम्बा लिहाजा धैर्य की माँग करता है।
श्वास सम्बन्धी अन्य वायरसों की तरह कोरानावायरस नाक व गले में रहकर संक्रामक हो सकता है और यदि फेफड़े में चला जाए तो जानलेवा तक साबित हो सकता है। फेफड़े में रहते हुए इस रोग के लक्षण प्रकट तक नहीं होते हैं। यह वायरस दुनिया भर में फैल गया, अधिकांश देशों में लॉक डाउन लागू किए गये, लोगों को क्वारांइटाइन में रखा गया। इसका लोगों के सामाजिक-आर्थिक जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। सड़के लोगों से खाली हो गयीं। वैसे तो इस वायरल पर दुनिया के कई हिस्सों में काबू पा लिया गया है लेकिन अभी भी कई मुल्क इस महामारी से निपटने की कोशिश कर रहे हैं। दुनिया में 1832 में कॉलरा तथा 1918 में स्पैनिश फ्लू की तरह महामारी दुबारा लौट कर मनुष्य जाति पर हमला कर रही है।
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित पत्रिका ‘लांसेंट’ में चाओलिन हुआंग ने लिखा है ‘‘पहले मरीज की पहचान (वायरस से होने वाली बीमारी, कोविड-19) की तारीख 1 दिसम्बर 2019 है।’’ प्रारम्भ में वायरस की प्रकृति को लेकर काफी उलझन था कि क्या यह वायरस मानव से मानव में प्रसारित हो सकता है या नहीं? ऐसा माना गया कि यह वायरसों की उस श्रृंखला का वायरस है जो जानवरों से मनुष्य में ही फैलता है।
वुहान के डॉ. झांग जिक्सियान पहले डॉक्टर थे जिन्होंने इस वायरस से सम्बन्धित खतरे की घंटी बजायी। 26 दिसम्बर को डॉ. झांग जिक्सियान ने एक वृद्ध जोड़े को देखा जिन्हें तेज बुखार और खांसी की शिकायत थी। ये लक्षण एक फ्लू की ओर इशारा करते थे। आगे की जाँचों से पता चला कि जानी पहचानी बीमारियों-इंफ्लूएंजा ए और बी, माइकोप्लाज्मा, एडोनो वायरस, सार्स- से भिन्न इन्हें कोई दूसरी बीमारी है। इस वृद्ध जोड़े के पुत्र के सिटी स्कैन से पता चला कि उसके फेफड़े के भीतरी भाग के एक हिस्से में कोई चीज भर सी गयी है। उसी दिन समुद्री भोज्य पदार्थों के एक विक्रेता में भी ऐसे ही लक्षण नजर आए। डॉ. झांग ने ऐसे लक्षणों वाल चार मरीजों की सूचना, वुहान के जियानघान जिले के ‘चाइना सेंटर फॉर डिजीज कन्ट्रोल एंड प्रिवेन्शन’ को दी। अगले दो दिनों में डॉ. झांग और उनके सहयोगियों ने तीन अन्य मरीजों में ठीक ऐसे ही लक्षण देखे। ये तीनों भी समुद्री भोजन वाले बाजार (सी फूड मार्केट) भी गये थे। 29 दिसम्बर को ‘हुवेई प्रोविंसियल सेंटर फॉर डिजीज कन्ट्रोल एंड प्रिवेन्शन’ ने इन सात मरीजों की जाँच के लिए विशेषज्ञों की एक टीम भेजी। छह फरवरी को हुवेई प्रान्त ने डॉ. झांग जिक्सियान और टीम द्वारा इस वायरस से संघर्ष में की दिशा में इसकी पहचान उजागर करने में योगदान को स्वीकार किया। उनके जाँच को दबाने या छुपाने की केाई कोशिश नहीं की गयी।
वुहान के प्रान्तीय प्रशासन को इस नये वायरस के सम्बन्ध 29 दिसम्बर तक जानकारी हो गयी थी। अगले दिन इन लोगों ने ‘चाइना सेंटर फॉर डिजीज कन्ट्रोल’ को सूचित किया। इसके ठीक अगले दिन यानी 31 दिसम्बर को चीन से ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ को सूचना दे दी। वुहान में वायरस के पहली दफे प्रकट होने के ठीक एक महीने पश्चात विश्व स्वास्थ्य संगठन को खबर दे दी गयी थी। 3 जनवरी तक इस वायरस की पहचान कर ली गयी। और इसके अगले सप्ताह चीन ने दुनिया से इस वायरस के ‘जेनेटिक सिक्वेंस’ को साझा दिया। इन लोगों ने डाटाबेस को अपलोड कर विश्व स्वास्थ्य संगठन को इत्तला दे दी। चूँकि चीन ने ‘जेनेटिक सिक्वेंस’ को साझा कर दिया लिहाजा इस वायरस को लेकर पूरी दुनिया में वैज्ञानिक जाँच-परख की शुरूआत हो गयी। जर्मनी में दवाओं की अग्रणी संस्था ‘ चैरिटे यूनिवर्सिटासमेडिजीन बर्लिन’ ने इस जीनोम सिक्वेंस का प्रयोग कर चीन के बाहर पहला जाँच किट बनाया। इस जाँच किट को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी अपनाया और बाकी सभी देशों के लिए उपलब्ध करा दिया। बर्लिन में 17 जनवरी को उसका प्रोटोकॉल प्रकाशित कर दिया गया। इसके साथ ही वैक्सीन की संभावित खोज भी शुरू हो गयी है। कई जगहों पर ट्रायल प्रगति के चरणों में है। कुछ जगहों पर तो ट्रायल को अन्तिम चरणों में बताया जा रहा है।
दो अन्य डॉक्टर, डॉ. ली वेनलियाँग (वुहान सेन्ट्रल हॉस्पिटल में आँखों के डॉक्टर) और डॉ. ऐ फेन (वुहान सेन्ट्रल हॉस्पिटल में इमरजेंसी ट्रीटमेंट डिपार्टमेंट के प्रमुख) ने रिपोर्ट करने के स्थापित चैनल के बाहर जाकर इन सूचनाओं की खबर की। प्रारम्भिक दिनों में जब वायरस का लेकर चीजें धुंधली सी थी, एक किस्म की स्पष्टता थी तब 3 जनवरी को डॉ. ली सहित सात अन्य डॉक्टरों के को फटकार लगायी गयी। लगभग एक महीने बाद डॉ. ली की 7 फरवरी को मौत हो गयी। चीन के प्रमुख स्वास्थ्य संस्थान द नेशनल हेल्थ मिशन, द हेल्थ कमीशन ऑफ़ हुवेई प्रोविन्स, द चाइनीज मेडिकल डॉक्टर एसोसिएशन, और वुहान सरकार सबों ने उनकी मौत पर पर परिवार के प्रति सार्वजनिक रूप से श्रद्धांजलि प्रकट किया। 19 मार्च को वुहान पब्लिक सेक्यूरिटी ब्यूरो ने इस बात को स्वीकार किया कि डॉ. ली को फटकार लगाना गलत था। जिस डॉ. ऐ फेन को 2 जनवरी को फटकार लगाई थी फरवरी में उनके पास माफीनामा प्रस्तुत किया गया और बाद में वुहान ‘ब्राडकास्टिंग एंड टेलीविजन स्टेशन’ द्वारा उनका सार्वजनिक अभिनंदन भी किया गया।
चीन के नेशनल हेल्थ मिशन ने चाइनीज सेंटर फॉर डिजीज कन्ट्रोल एंड प्रिवेन्शन, द चाइनीज एकेडमी ऑफ़ मेडिकल साइंसेस के विशेषज्ञों को जुटाकर वायरसों के नमूनों पर प्रयोग कर जाँच किया। 8 जनवरी को उनलोगों ने इस बात को सुनिश्चित किया कि इस महामारी का स्रोत ये कोरोना वायरस ही है। इस वायरस से पहली मौत 11 जनवरी को होती है। 14 जनवरी को वुहान म्युनिसिपल हेल्थ कमीशन ने कहा कि यद्यपि उनके पास मानव से मानव के संक्रमण के ठोस साक्ष्य नहीं हैं लेकिन वे यह भी भरोसे के साथ नहीं कह सकते कि मानव से मानव संक्रमण सम्भव नहीं है।
इस बात के एक सप्ताह बाद डॉ. झांग नानषन ने कहा कि इस वायरस से मानव से मानव संक्रमण हो सकता है। डॉ. झांग श्वास रोग के विशेषज्ञ होने के साथ-साथ चीन में सार्स के खिलाफ संघर्ष के अग्रणी योद्धा भी रहे हैं। डॉ. झांग चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के भी सदस्य हैं। कई स्वास्थ्यकर्मी भी कोरोना वायरस से संक्रमित हो गये थे। उसी दिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और स्टेट काउंसिल के प्रधानमन्त्री ली किक्वांग ने सरकार के सभी स्तरों को वायरस के प्रति सचेत रहने को कहा। ‘नेशनल हेल्थ मिशन’ और अन्य आधिकारिक समितियों को आपातकालीन तैयारियाँ करने के लिए कहा गया। मानव से मानव में संक्रमण की बात स्थापित होने के तीन दिनों बाद वुहान शहर में लॉकडाउन कर दिया गया। इसके ठीक अगले दिन हुवेई प्रान्त में एलर्ट लेवल-1 को सक्रिय कर दिया गया। प्रधानमन्त्री ली किक्वांग ने एक समन्वय समिति का गठन किया और दो दिनों बाद खुद हुवेई प्रान्त का दौरा किया। हुवई की स्थानीय सरकार के कुछ पदाधिकारियों को उनके पद से ष्षीघ्र ही हटा दिया गया। इन लोगों ने जनवरी में पहल सप्ताहों में इस वायरस के कुछ पहलुओं के खतरों का आकलन कम करके आंका था। चीन की सरकार और वहाँ के समाज दोनों ने हर स्तर पर तत्परता दिखाई।
यह बात अब तक स्पष्ट है कि यदि चीन की जगह कोई दूसरा देष होता तो इस अभूतपूर्व संकट से कैसे निपटता ? विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम ने 16 से 24 जनवरी के मध्य चीन का दौरा किया और उसने अपनी रिपोर्ट में वायरस को नियंत्रण में लाने के लिए चीन की सरकार और वहाँ के समाज द्वारा उठाए जा रहे उपायों की प्रषंसा की। हजारों डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी वुहान पहुंच गये। कोराना संक्रमितों के लिए दो नये अस्पताल बना लिए गये। नागरिक निकायों ने लॉकडाउन में फंसे परिवारों की सहायता के लिए हर सम्भव उपाय करने शुरू कर दिए। चीनी अधिकारियों ने कोरोना संक्रमण रोकने के लिए जो कदम उठाए उसमें संक्रमित लोगों को अस्पताल में रखना, इन संक्रमितों के संपर्क में आए लोगों को चिन्हित कर उन्हें क्वरांटाइन में डाल उनकी नजदीक से निगरानी करना शामिल है। सिर्फ लॉकडाउन ही काफी नहीं था। इस प्रक्रिया से संक्रमण की श्रृंखला की पहचान कर उसे तोड़ पाने में सफल हुई।
चीन में हो रहे इन घटनाक्रमों को भारत में साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले राज्य केरल की स्वास्थ्य मन्त्री के.के षैलजा चीन के वुहान शहर में कोराना की बढ़ती प्रक्रिया का गौर से देख रही थी। षैलजा ने इंतजार नहीं किया और अपने राज्य में कोराना को रोकने की तैयारी शुरू कर दी। ठीक इसी तरह वियतनाम के प्रधानमन्त्री न्गूएन जुआन फुक ने भी अपने देष में कोराना संक्रमण के फैलने का इंतजार किए बिना शीघ्रतापूर्वक उपाय किए जिससे संक्रमण को रोकने में सफलता प्राप्त हुई। चीन के नक़्शेकदम पर चलते हुए केरल की स्वास्थ्य मन्त्री और वियतनाम के प्रधानमन्त्री वायरस को नियन्त्रित करने में सफल हो पाए।
संयुक्त राज्य अमेरिका को इस समस्या की गम्भीरता के सम्बन्ध में काफी पहले ही सूचना दे दी गयी थी। नये साल के दिन चाइनीज सेंटर फॉर डिजीज कन्ट्रोल (सी.डी.सी) पदाधिकारियों ने यू.एस. सेंटर फॉर डिजीज कन्ट्रोल एंड प्रिवेन्शन के प्रमुख डॉ. रॉबर्ट रेडफील्ड को सूचित किया। उस वक्त डॉ. रॉबर्ट रेडफील्ड छुट्टियों पर थे। न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार ‘‘ जो उन्होंने सुना उसने उन्हें विचलित कर दिया।’’ कुछ दिनों बाद सी.डी.सी के प्रमुख डॉ. जार्ज एफ गाओ ने रेडफील्ड को पुनः फोन किया और खबर को बताते हुए वे रो पड़े थे। लेकिन अमेरिका ने इस चेतावनी को गम्भीरता से नहीं लिया। इसके एक महीने पश्चात अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कोरोना संकट के प्रति लापरवाही बरतते हुए कहा ‘‘ मैं आपको भरोसा दिला सकता हूँ कि अन्ततः इससे हम फायदे में ही रहेंगे।’’ डोनाल्ड ट्रम्प ने 13 मार्च के पहले अमेरिका में आपातकाल घोषित नहीं किया लेकिन तब तक कोरानावायरस अमेरिका के काफी अन्दर तक फैल चुका था।
दुनिया के दूसरे देशों के प्रमुखों का नजरिया भी ऐसे ही उदासीनता से भरा था। इन देशों के प्रमुखों को जैसा कि 1832 में फ्रांसीसियों को लगता था कि ‘एशियाटिक कॉलरा’ की तरह उन तक नहीं पहुँचेगा। कॉलरा सिर्फ गरीब व गन्दे लोगों को ये रोग होता है। ‘चीनी वायरस’ जैसी कोई चीज नहीं होती ये वायरस सिर्फ सार्स-कोविड-2 के नाम से जाना जाता है। लेकिन अमेरिका ने इसका नामकरण ‘चीनी वायरस’ के नाम पर करने का असफल प्रयास किया। ये चीन ही है जिसने हमें वायरस से लड़ने का तरीका सिखाया। चीन ने ये तरीका प्रयोग कर खुद सीखा, ‘ट्रायल एंड एरर’ मेथड से। जिसमें पारम्परिक तौर-तरीके (हाथ धोना, मास्क लगाना, सैनिटाइजर का उपयोग, फिजिकल डिस्टेंसिंग) और आधुनिक तकनीक (5 जी का इस्तेमाल कर संक्रमित लोगों को ट्रेस करना) दोनों का सम्मिश्रण किया। चीन के जिन डॉ.क्टरों ने वायरस से लड़ने का तरीका इजाद किया वे ईरान, इटली, वेनेजुएला सरीखी कई देशों में गये। चीन ने अन्तर्राष्ट्रीयतावाद सहयोग का इस प्रकार एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। लेकिन चीन के इन पक्षों को कभी भी न तो वैश्विक मीडिया नहीं दिखाता भारतीय मीडिया से तो इसकी उम्मीद भी बेकार है।
4 मार्च को ‘न्यूयार्क टाइम्स’ ने डॉ. ब्रुस इलवार्ड का साक्षात्कार किया। डॉ. ब्रुस इलवार्ड ने चीन जाने वाली विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम का नेतृत्व किया था। न्यूयार्क टाइम्स के संवाददाता ने डॉ. ब्रुस इलवार्ड से कोराना वायरस से निपटने में चीन की भूमिका के सम्बन्ध में पूछा। उनका जवाब था ‘‘ चीनी लोगों ने इस वायरस के प्रति युद्ध की तरह निपटने की तैयारी की थी। ये वायरस का भय था जिसने चीनियों को गोलबन्द किया। चीनी लोगों ने खुद को अग्रिम पंक्ति में पाया ताकि चीन के बाकी हिस्सों और दुनिया को बचाया जा सके। ’’
11 मार्च को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वैश्विक महामारी घोषित किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर जेनरल डॉ. टेड्रोस अधानोम घेब्रेएसेस ने उसी दिन संवाददाता सम्मेलन में कहा ‘‘ कोरोना वायरस से होने वाली यह पहली महामारी है। पिछले दो सप्ताहों में कोविड-19 से जुड़े मामलों की संख्या चीन के बाहर 13 गुणा एवं प्रभावित देशों की संख्या तीन गुणी हो गयी है।’’ 11 मार्च के पश्चात यह स्पष्ट हो गया था कि यह बेहद खतरनाक व जानलेवा बीमारी है। इसमें मानव सभ्यता को भी नष्ट कर देने की क्षमता है। हालांकि पहले इसका अंदाजा नहीं लग सका था।
17 मार्च को संयुक्त राज्य अमेरिका के स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के क्रिस्टियन एंडरसन और उनकी टीम ने ये बताया यह नया कोरोना वायरस ‘सार्स-कोविड-2’ की जीन में परिवर्तन आता रहता है जिसे पॉली बेसिक क्लिवेज साइट के नाम से जाना जाता है। यह वायरस चमगादड़ या छिपकिली में जैसा, कि समझा जाता था, नहीं देखा गया है। ज्यादा संभावना है कि यह वायरस मनुष्यों में कई सालों पहले आया होगा और ये जरूरी नहीं कि वुहान में ही आया हो। ‘गुआंगदोंग इंस्टीट्यूट ऑफ़ अप्लायड बायोलॉजिकल रिसोर्सेज’ के डॉ. चेन जिनपिंग और उनके साथियो ने 20 फरवरी को एक षोध प्रकाशित किया जिसमें बताया कि आँकड़े इस बात का समर्थन नहीं करते कि ये वायरस मनुष्यों में छिपकिली या चमगादड़ से गया हो। एक चर्चित महामारीविद् झांग नानशन ने भी बताया ‘‘ कोविड-19 भले वुहान में पहली दफे प्रकट हुआ हो लेकिन यह जरूरी नहीं कि इसकी उत्पत्ति यहीं हुई हो।’
पश्चिमी देशों की मीडिया ने वायरस की उत्पत्ति के सम्बन्ध में वैज्ञानिक रूप से निराधार दावे किए। यहाँ तक कि खुद पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों द्वारा सावधानी बरतने की चेतावनी भी इन लोगों ने नहीं मानी। वुहान और चीन के डॉक्टरों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की बात मानने का तो सवाल ही नहीं उठता था।
वुहान के डॉक्टरों ने दिसम्बर में जब रोगियों को देखा तो उन्हें लगा कि यह मात्र न्यूमानिया है लेकिन फेफड़े क्षतिग्रस्त सा था और जो दवाइयाँ दी जा रही थी उसका कोई प्रभाव मरीज पर नहीं पड़ रहा था। डॉक्टर लोग इस बात से चिन्तित तो हुए लेकिन उन्हें इस बात का कतई अंदाजा न था कि ये बीमारी एक वैश्विक महामारी में बदल जाएगी।
वुहान के डॉक्टरों व पदधिकारियों को जब ये लगा कि ये कोई अनजाना सा वायरस है तो उन्होंने इसकी सूचना चीन के राष्ट्रीय सेंटर फॉर डिजीज कन्ट्रोल (सी.डी.सी) को दी गयी तथा उसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन को सूचना हो गयी।
लेकिन इन बातों को यदि सिर्फ पश्चिमी देशों के अखबारों या विशेषकर ‘न्यूयार्क टाइम्स’ की रपटों पर यकीन करें तो हम सच कभी नहीं जान पायेंगे। इन रपटों में बताया गया कि चीन ने जानबूझ कर इन खबरों को दबाया तथा चीन की चेतावनी की व्यवस्था देने वाली स्वास्थ्य व्यवस्था ठीक से काम नहीं करती है।
लेकिन यदि तथ्यों को सिलसिलेवार देखा जाए तो ये बातें सही नहीं प्रतीत होती है। हमारे समय की सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि सच हम तक नहीं पहुँचता।
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