अदिति महाविद्यालय में ‘कलरफुल ड्रीम्स’
पिछले एक दशक में अदिति महाविद्यालय ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कैम्पस थियेटर में अपनी खासी पहचान बना ली है| पिछले दिनों महाविद्यालय की स्थापना के रजत-जयन्ती वर्ष के विभिन्न कार्यक्रमों की कड़ी में एक नाट्य-प्रस्तुति भी हुई, जिसका नाम था ‘कलरफुल ड्रीम्स’| यह प्रस्तुति कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की सुप्रसिद्ध कहानी ‘बड़े भाई साहब’ पर आधारित थी| नाट्य-रूपांतरण और निर्देशन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से डिज़ाइन व थियेटर तकनीक की विशेषज्ञता में स्नातक स्वीटी रूहेल का रहा| मुंशी प्रेमचंद ने ‘बड़े भाई साहब’ कहानी में इतिहास, गणित जैसे विषयों के माध्यम से रटन्तू और उबाऊ शिक्षा पद्धति की पोल खोलते हुए अध्यापन और परीक्षण की खूब खबर ली है| बरबस खेल की ओर आकर्षित होने वाले बाल-सुलभ स्वभाव को शिक्षा का रौब कैसे दबाये रखता है, उसे दिखाते हुए प्रेमचंद बड़ी खूबसूरती से सन्देश दे जाते हैं कि मानसिक और शारीरिक व्यक्तित्व के विकास के लिए पढना और खेलना-कूदना दोनों ही जरूरी हैं|
‘कलरफुल ड्रीम्स’ में निर्देशिका ने उर्वर कल्पनाशीलता का परिचय देते हुए मूल कहानी में मौजूद गंभीर स्वभाव के बड़े भाई की जगह बड़ी बहनिया ‘अक्का’ और चंचल भाई के स्थान पर नटखट और चुलबुली छुटकी बहन ‘अमौली’ को तो लिया ही, साथ ही एक और चरित्र भी जोड़ दिया – उनके घरेलू काम करने वाली किशोर-वय ‘अन्नी’| दोनों बहनों को अपने परिवार के साथ किसी दूर-दराज के गाँव से आकर दिल्ली में रहते हुए अभी छह महीने ही गुजरे हैं| उनकी ज़बान पर अभी देसी अंदाज़ शेष है|
बड़ी बहन दिन-रात किताब हाथ में लिए, आँखों पर मोटा चश्मा लगाए, सलीके से पढ़ती ही रहती है| और अक्का! उसे आते ही शहरी हवा का तेज झोंका लग गया है – खुले मैदान में सहेलियों के साथ बिंदास और घर में अन्नी के संग खेलने के साथ ही फेसबुक और व्हाट्सअप का| वह नित-नयी पोस्ट डालने, डीपी बदलने, लाइक्स और स्माइली गिनने में ही व्यस्त रहती है| बड़ी बहनिया का खौफ लगातार उसके सिर पर बना रहता है इसलिए परीक्षा के दिनों में पढ़ भी लेती है| नतीजा वही जो प्रेमचंद की कहानी में है – अमौली, अन्नी और तमाम सहेलियाँ पास हो जाती हैं और बड़ी बहनिया साल-दर-साल फेल होते हुए अमौली के बराबर आ जाती हैं – कक्षा में भी और अंततः मन से, खुलकर खेलने में भी|
इस कहानी के साथ निर्देशिका ने आज की जीवन-शैली में अवांछित घुसपैठ करते सोशल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर भी रोचक ढंग से व्यंग्य कसा है जो निहायत झूठी और गैर-जरूरी खबरों को अतिशयोक्तिपूर्ण तरीके से जबरदस्ती थोपता ही रहता है| साथ ही, विकास का प्रतीक कहे जाने वाले शहरों में घरेलू बाल-श्रम कितना अधिक और धड़ल्ले से होता है और मीडिया में उसे कोई स्थान नहीं मिलता – इस बात की खबर भी निर्देशिका ने चुटीले और तीखे अंदाज़ में ली है|
‘कलरफुल ड्रीम्स’ में छात्राओं का अभिनय सराहनीय रहा| बड़ी बहन की ओढी हुई गंभीरता को गुलिस्तां प्रवीन और उसकी प्रतिछाया को रिया राय ने पूरी संजीदगी से मंच पर उतारा| चंचल अमौली और नटखट किन्तु समझदार अन्नी की भूमिका में क्रमशः ज्योति और कुसुम ने रोचकता को बरकरार रखा| इसके साथ ही सूत्रधार, मीडिया रिपोर्टर, शिक्षिका, कोरस की भूमिकाओं में भी छात्राओं का अभिनय काबिले-तारीफ रहा|
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक श्याम कुमार साहनी और संगीता श्रीवास्तव ने कल्पनाशील किन्तु सादगी-भरी मंच-सज्जा और प्रकाश-परिकल्पना के माध्यम से प्रस्तुति की गंभीरता और रोचकता – दोनों को एक साथ साधा| आतिफ़ खान द्वारा ध्वनि और संगीत संयोजन भी बढ़िया रहा| नाटकीय कथ्य को सघन बनाने में दो गीतों और उन गीतों के अनुरूप साधारण-से, मस्ती-भरे नृत्य की भूमिका भी काफी सहयोगी रही| प्राचार्या डॉ. ममता शर्मा के सानिध्य और नाट्य-समिति की ओर से डॉ. नीनू कुमार और उनकी टीम के संयोजन में महीने-भर चली थियेटर वर्कशॉप में तैयार इस नाटक को दर्शकों ने खूब पसंद किया|
.