
पुस्तक : पढ़ो और पढ़ाओ
विश्व पुस्तक दिवस के उपलक्ष्य में ..
- डॉ. शेख अब्दुल वहाब
संस्कृत के एक सुभाषितम् के अनुसार “हस्तस्य भूषणं दानं सत्यं कण्ठस्य भूषणम्” अर्थात् हाथ का भूषण दान है और कण्ठ का भूषण सत्य है। इस कोटि में पुस्तक भी रखें तो इसे ‘हस्त भूषणम्’ कहा जा सकता है। अर्थात् पुस्तक हाथ का गहना होती है। यह जिसके हाथ के होता है उसकी शोभा बढ़ाती है। विशेषकर विद्यार्थी को विद्या प्राप्त करने का साधन है। इसके अतिरिक्त उसे विद्यार्थी होने का अर्थ सिद्ध कराती है। यह व्यक्ति के पढ़ा लिखा होने का प्रमाण देती है।
मनुष्य सामाजिक प्राणी है। पुस्तक मनुष्य के इस सामाजिक होने के लिए अपेक्षित ज्ञान उपलब्ध कराती है। यह हमारा मित्र है जो कठिनाई के अवसर पर सहारा देती है। यह हमें बुरे कर्म करने से और बुरे मार्ग पर चलने से रोकती है। अर्थात यह हमारा मार्गदर्शन करती है। जो ज्ञान के लिए पुस्तक का सहारा लेता है, वह निश्चित पथ पर अग्रसर होता है। इसके लिए मनुष्य को साक्षर होने की आवश्यकता है। साक्षर व्यक्ति ही पुस्तक की महत्ता को समझ सकता है। हर पढ़े-लिखे व्यक्ति में पुस्तकें पढने की रूचि होनी चाहिए और विशेषकर विद्यार्थी को हाथ के आभूषण की तरह इसे अपनाने की आवश्यकता है। अब सवाल यह है कि क्या सभी पुस्तकें पढ़ने योग्य हैं? जवाब होगा… नहीं।
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इसके सम्बन्ध में 19वीं शताब्दी के अमेरीकी लेखक मार्क ट्वेन का एक कथन है – ‘Good friends, good books and s।eepy conscience: this is idea।।ife.’ अर्थात् अच्छे मित्र, अच्छी पुस्तकें और शान्त (सुप्त) विवेकशीलता … यही आदर्श जीवन है। वह अन्तःकरण (विवेकशीलता) जिसमें हिताहित का यानि अच्छे–बुरे में अन्तर कर सकने की क्षमता होती है। यहॉ मित्र और पुस्तक को एक स्तर पर रखा और आंका गया है। पुस्तक हमारी मित्र है जो हमें ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् अँधेरे से निकालकर प्रकाश की ओर ले चलती है। जीवन को आदर्शमय बनाने में इसका महत्वपूर्ण योगदान है। अच्छी पुस्तक हमें भटकने से बचाती है तो उद्देश्यहीन पुस्तकें (अश्लील साहित्य आदि) सदाचार की राह पर चलने से वंचित करती है। इसलिए हमें अच्छी पुस्तकें चुनने और पढ़ने में सावधान रहना चाहिए। अच्छी किताबें हमारा भविष्य बना सकती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं।
आज बाजार पुस्तकों से भरा पड़ा है। अच्छी किताबें प्रकाशित हो रही हैं। किन्तु उन्हें खरीदकर पढ़नेवालों की संख्या आज कम होती जा रही है। इसका कारण भूमण्डलीकरण से प्रभावित मनुष्य के विचार हैं। भूमण्डलीकरण के इस दौर में जहॉ आदमी अपने और अपने परिवार को लेकर अधिक सोचने लगा है। समाज से उसका लगाव केवल धनार्जन से या फिर आर्थिक रूप से स्वस्थ होने की अस्वस्थ भावना से है। जिस साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है। उस दर्पण में अपने आपको देखने और परखने का समय उसके पास नहीं है। क्योंकि समय की तेज गति को वह पकड़ना चाहता है। ऐसे में व्यक्ति को समय का मूल्य समझाने और सम्बन्धों के महत्व को रेखांकित करने में पुस्तकें हमारी सहायता करती हैं। इसलिए पुस्तकें पढ़ना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी हैं।
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पुस्तक पठन को प्रोत्साहन देने और पुस्तक की बिक्री को बढ़ावा देने के लिए समय समय पर देश के महानगरों में प्रकाशकों द्वारा पुस्तक मेले आयोजित किये जाते हैं। प्रकाशक पुस्तकों के किफायती संस्करण भी छात्रों और आम पाठकों को ध्यान में रखकर प्रकाशित करते हैं। सुधी पाठकों को चाहिए कि वे पुस्तक पठन की आभिरूचि को बनाए रखें। साथ ही अपने मित्रों को भी पुस्तकें पढने को कहें। उनकी अभिरुचि का प्रोत्साहन करें। जब पुस्तक विश्व भर में पढ़ी जा रही हो और लोगों में यह आभिरूचि बराबर मन में बनी रहे तो प्रकाशन व्यवसाय फले फूलेगा। साथ ही स्वस्थ समाज का निर्माण भी होगा। राष्ट्र कवि दिनकर ने ‘नेता नहीं नागरिक चाहिए’ लेख में देश को योग्य नागरिकों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है। (नेता नहीं नागरिक चाहिए – लेख, दिनकर – गद्य विविधा)।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के जीवन से जुडी उनके बचपन की एक घटना है। गरीबी के कारण वे पुस्तकें खरीदकर नहीं पढ़ सकते थे। इसलिए वे अपने पड़ोसी से ‘जार्ज वाशिंगटन का जीवन चरित्र’ पुस्तक माँगकर लाये थे। किन्तु वर्षा में पुस्तक के भीग जाने के कारण, उस पड़ोसी के यहाँ मजदूरी करके उस पुस्तक के दाम चुकाए थे। (इन घटनाओं से हम कुछ सीखें, अखण्ड ज्योति, मासिकी, वर्ष 1961) अच्छी पुस्तकें हमें नैतिक मूल्यों की शिक्षा देती हैं। इन्हें पढ़कर मनुष्य कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बन सकता है। देश के सच्चे व बहुमुखी विकास में पुस्तक का महत्वपूर्ण योगदान है। इसमें कोई संदेह नहीं। आइए, आज विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर हम सब मिलकर पुस्तकें पढ़ने का प्रण लें और कहें ‘पुस्तक : पढ़ो और पढ़ाओ’।
लेखक समीक्षक और तमिलनाडु के महाविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं|
सम्पर्क- +918072361911, yadikiwahab@gmail.com
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