आस्था के अद्भुत व्यापारी: स्वामी रामदेव
“पहला सुख निरोगी काया।” अगर शरीर नीरोग है तो आनंद ही आनंद है और अगर शरीर रोगी है तो करोड़ों की संपत्ति और सुख के सारे साधन व्यर्थ हैं। इसलिए हमारा पहला दायित्व है कि हम अपने शरीर को स्वस्थ रखें। हम इसके लिए सबसे ज्यादा चिन्तित भी रहते हैं फिर भी बीमार लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है।
आचार्य विनोबा भावे ने कहा है कि सुख के साधनों का बढ़ जाना दुख का सबसे बड़ा कारण है। कहना न होगा, सुख के साधन दिन- प्रतिदिन बढ़ रहे हैं। दुनिया के सभी प्राणियों की तरहमनुष्य भी एक प्राकृतिक प्राणी है। इसलिए, मनुष्य को भी प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाकर रहना चाहिए किन्तु वह अपने विकसित मस्तिष्क का सहारा लेकर प्रकृति पर लगातार विजय प्राप्त करताजा रहा है और अपने लिए सुख के साधनों का नित नया आविष्कार और विस्तार करता जा रहा है। प्रकृति के विरुद्ध आचरण करने से नये-नये रोग बढ़ते जारहे हैं और हम डॉक्टरों तथा दवाओं पर अधिक से अधिक निर्भर होते जा रहे हैं।
स्वामी रामदेव (जन्म-25.12.1965) ने मनुष्य के इस सबसे कमजोर नस को छुआ। उन्होंने हमारा ध्यान स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं की ओर आकृष्ट किया और समाधान भी बताया। वे योग और प्राणायाम लेकर जनता के बीच आए और अपने प्रभावशाली वक्तव्यों तथा अपनी योगक्रिया के प्रदर्शनों से लोगों के भीतर विश्वास पैदा किया। उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए बताया कि रोगों का समाधान तो हमारे अपने हाथ में है।
हिन्दू समाज संतों से खाली कभी नहीं रहा। किन्तु अबतक के ‘संत’ और ‘स्वामी’ अध्यात्म के हथियार से लोगों को बश में करते थे और उनकी आस्था का दोहन करते थे। पहली बार एक ऐसा संत हिन्दू समाज को मिला जिसने आस्था का दोहन तो किया, किन्तु अंधविश्वास फैलाकर नहीं। वह पूजा-पाठ में विश्वास नहीं करता था, वह कथावाचक नहीं था, वह कर्मकांडी भी नहीं था, वह भविष्यवाणी भी नहीं करता था, वह कोई ज्योतिषी या चमत्कारी बाबा भी नहीं था। उसने हमारी ही समृद्ध विरासत की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया और बताया कि योग और प्राणायाम के सहारे हमारे ऋषि- मुनि निरोग बने रहते थे और हम आज भी उनके दिखाए पथ पर चल कर रोगमुक्त हो सकते है।
भारतीय मानस की अपनी संस्कृति में जो गहरी आस्था है उसे स्वामी रामदेव ने भली भांति पहचाना। उन्होंने महर्षि पतंजलि के योग दर्शन तथा चरक और शूश्रुत प्रवर्तित हमारे आयुर्वेद में सारे रोगों का निदान बताया। योग और प्राणायाम की विरासत हमारी अपनी है और सदियों से आजमायी हुई है। जनता का इसपर सहज विश्वास होना स्वाभाविक है यदि विश्वास दिलाने वाला स्वयं सबके सामने अपने ऊपर प्रयोग करके दिखाए। स्वामी रामदेव ने सबके सामने योग के सभी आसन और प्राणायाम करके दिखाए। उन्होंने अपने संगठन का नाम भी महर्षि पतंजलि के नाम पर रखा। इसके साथ स्वामी रामदेव ने स्वदेशी का नारा दिया। इसका बहुत सकारात्मक और दूरगामी प्रभाव पड़ा और देखते ही देखते उनके योग और प्राणायाम का प्रसार विश्वव्यापी हो गया।
स्वामी रामदेव के जीवन के जीवन, परिवार और शिक्षा के सम्बन्ध में प्रामाणिक रूप से कुछ कह पाना कठिन है। फिर भी विभिन्न स्रोतों से जो सूचनाएं उपलब्ध हैं उनके अनुसार स्वामी रामदेव का जन्म हरियाणा राज्य के महेन्द्र गढ़ जिले में स्थित अली सैयदपुर नामक गांव के एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम गुलाबो देवी और पिता का नाम रामनिवास यादव है।
स्वामी रामदेव के बचपन का नाम रामकृष्ण यादव था। समीपवर्ती गाँव सबाजपुर के सरकारी स्कूल से उन्होंने आठवीं कक्षा तक की शिक्षा ली है। 8 साल की उम्र में स्कूल से लौटते वक्त रामकृष्ण लड़खड़ाते हुए जमीन पर गिर गये थे। वे लकवा के शिकार हो गये थे। उन्हें कहीं से पता चला कि योग से तन-मन दोनों पर काबू पाया जा सकता है और तब उन्होंने योग करना शुरू किया। योग से उन्हें लाभ होता दिखाई दिया और इस तरह योग के प्रति उनके भीतर आकर्षण बढ़ा।
बचपन से ही रामकृष्ण का झुकाव सन्यास की ओर था। एक दिन अपने घर वालों को सूचित किए बिना ही वे कानपुर चले गये और वहाँ के एक गुरुकुल में प्रवेश ले लिया। वहीं पर 1990 में उनकी मुलाकात बालकृष्ण से हुई जो धीरे- धीरे दोस्ती में बदल गई। बालकृष्ण की रुचि जड़ी बूटी में अधिक थी। कुछ दिन बाद उस आश्रम को छोड़कर रामकृष्ण जींद जिले के कलवा आश्रम में आ गये जहाँ पर वह आचार्य बलदेव से मिले। आचार्य बलदेव ने ही रामकृष्ण की जगह रामदेव नाम अपनाने का सुझाव दिया। कुछ समय बाद रामदेव हिमालय की गंगोत्री में चले गये। वर्ष 1993 में जब वे हिमालय से उतरे तो हरिद्वार में रहकर लोगों को योग सिखाने लगे।
हरिद्वार के कृपालु आश्रम में 10 नवम्बर 1994 को बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण ने एक चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की। यहाँ वे योग शिविर लगाने लगे और आयुर्वेदिक पद्धति से लोगों का मुफ्त इलाज भी करने लगे।
रामदेव ने सन 1995 में ‘दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट’ की स्थापना की। अब टेलीविजन के आस्था चैनल पर उनके योग के कार्यक्रम रोज सुबह 5 बजे प्रसारित होने लगे। इस तरह उनके योग का प्रसार देश और विदेश में भी होने लगा। प्राणायाम में वे भस्त्रिका, अनुलोम-विलोम और कपालभाति पर सबसे ज्यादा जोर देते हैं। उनका दावा है कि प्राणायाम और योगाभ्यास से मधुमेह, उच्च रक्तचाप, गठिया, थायरायड, चर्मरोग, हृदयरोग और कैंसर तक ठीक हो जाते हैं। स्वामी रामदेव देश के विभिन्न शहरों में योग शिविर लगाने लगे। उन्होंने अपना प्रचार-तंत्र मजबूत किया। उनकी मांग बढ़ने लगी। उनके शिविरों में भाग लेने वालों के लिए मँहगें टिकट लगने लगे। अपने ट्रस्ट के काम को समाज सेवा बताते हुए वे दान ग्रहण करने लगे। स्वामी रामदेव ने अपने योग का प्रसार इंग्लैंड और अमेरिका जैसे देशो में भी जाकर किया। उन्होंने पाँच लाख लोगों के साथ योग करने का विश्व रिकार्ड कायम किया है।
स्वामी रामदेव के ट्रस्ट का मुख्यालय हरिद्वार में दिल्ली-हरिद्वार राष्ट्रीय राजमार्गपर स्थित है। स्वामी रामदेव ज्यादातर योग की शिक्षा अपने आश्रम से देते है। उनके अथक प्रयासों से ही भारत के कोने-कोने में योग प्रचलित हुआ और उन्ही के प्रयास के फलस्वरूप भारत के प्रधान मन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्वीकार किया और 21 जून 2015 से सारी दुनिया में ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ मनाया जाने लगा।
सन 2006 में स्वामी रामदेव ने हरिद्वार में भारत के महान योगी महर्षि पतंजलि के नाम पर ‘पतंजलि योगपीठ’ की स्थापना की। यह संस्थान भारत का सबसे बड़ा योग संस्थान है और यहाँ पर पतंजलि यूनिवर्सिटी भी है। पतंजलि संस्थान में आयुर्वेद और अन्य देशी पद्धति से इलाज की बेहतरीन व्यवस्था है। आज इसकी शाखाएं नेपाल, कनाडा, अमेरिका इत्यादि देशों में भी है।
क्वौरा पोर्टल पर 13 सितम्बर 2019 को उपलब्ध सूचनाओं से पता चलता है कि पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण हैं जिनका उसमें शेयर 93.7 प्रतिशत है, दूसरे और तीसरे निदेशक सरवन पोद्दार एवं सुनीता पोद्दार हैं जिनकी हिस्सेदारी क्रमश: 3.016 प्रतिशत है, वे स्कॉटलैंड के निवासी हैं। चौथे रजत प्रकाश की हिस्सेदारी 0.121 प्रतिशत है और पाचवें है स्वामी रामदेव के भाई राम भरत, जिनका शेयर 0.015 है और अन्तिम हैं मुक्तानंद जो 0.002 प्रतिशत के शेयर होल्डर हैं। इसमें स्वामी रामदेव का कहीं नाम नहीं है। वे केवल उसके ब्रांड प्रोमोटर हैं। (hi.quora.com/ पतंजलि का मालिक कौन है?)
‘द वायर’ (18 फरवरी 2019) के अनुसार स्वामी रामदेव के सहयोगी और पतंजलि के सीईओ आचार्य बालकृष्ण की 2017 में कुल संपत्ति 70 हजार करोड़ रूपए थी। इस साल उनकी संपत्ति में 173 प्रतिशत का इजाफा हुआथा। कहा जाता है कि जीएसटी और नोटबन्दी से उनकी संपत्ति के बढ़ने में मदद मिली थी। बीबीसी की 28 सितम्बर 2017 की रिपोर्ट के अनुसार वेउस वक्त भारत के आठवें सबसे अमीर आदमी बन चुके थे। दिव्य फार्मेसी, पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड, पतंजलि फूड एवं हर्बल पार्क लिमिटेड, पतंजलि विश्वविद्यालय आदि उनकी आय के बड़े स्रोत हैं।
किन्तु स्वामी रामदेव के पास भी संपत्ति है। ‘द हिन्दी न्यूज वेबसाइट पत्रिका’ के 21 जून 2018 की पोस्ट के अनुसार स्वामी रामदेव के पास ‘ऑडी’ और ‘रेंज रोवर’ जैसी गाड़ियां हैं जिनकी कीमत एक करोड़ से ज्यादा है। मुंबई में इनका चार करोड़ का मकान है जिसे उन्होंने वर्ष 2006 में खरीदा था। उनके पास 1600 करोड़ की संपत्ति है। मौजूदा समय में किसी भी योगगुरू के पास इतनी संपत्ति नहीं है। स्वामी रामदेव को ट्रस्ट से दो करोड़ सालाना सैलरी मिलती है। (www.patrika.com)
‘जनसत्ता’ 23 अगस्त 2020 के अनुसार, “द ब्रांड ट्रस्ट रिपोर्ट के मुताबिक पतंजलि 2018 तक भारत के सबसे भरोसेमंद ब्रांडों की सूची में 13वें स्थान और एफएमसीजी श्रेणी में पहले स्थान पर था। साल 2018-19 में पतंजलि आयुर्वेद ने अकेले 8329 करोड़ रूपए के राजस्व की रिपोर्ट के बारे में बताया था। बाबा रामदेव का व्यापार इतना बड़ा हो गया है कि पतंजलि भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा मध्य पूर्व में भी अपना कारोबार फैला चुकी है, जिससे करीब 8000 करोड़ रूपए का सालाना कारोबार होता है। हालांकि, कंपनी ने कभी अपना शुद्ध लाभ नहीं बताया।” विदेशों में व्यापक रूप से अपना व्यापार फैलाने वाले स्वामी रामदेव स्वदेशी पर सबसे ज्यादा जोर देते हैं और इस तरह यहाँ भी जनता की आस्था का दोहन करते हैं।
पतंजलि की वेबसाइट पर आज भी आर्थिक सहयोग की अपील की जा रही हैं। वहाँ लिखा गया है, “पतंजलि ने हजारों करोड़ रूपए की चैरिटी कर करोड़ों लोगों की सेवा कर लाभ पहुँचाया है। देश व दुनिया में बसे धर्मनिष्ठ, राष्ट्रनिष्ठ, सात्विक, आध्यात्मिक आत्माओं से हम आह्वान करते हैं कि शिक्षा, स्वास्थ्य एवं संस्कृति के इस सेवा यज्ञ में सहयोग करें।
पतंजलि योगपीठ की आगामी योजनाओं, प्रत्येक जिले व तहसील में आचार्यकुलम्, 1500 एकड़ में वृहद् विश्वविद्यालय, योग, आयुर्वेद पर अनुसंधान, गुरुकुलों की स्थापना व संचालन इत्यादि अनेकों राष्ट्र सेवाओं में जो किसी भी रूप में अपना योगदान करना चाहते हैं, वह सम्पर्क करें।”
स्वामी रामदेव ने 2010 में ‘भारत स्वाभिमान ट्रस्ट’ नाम का एक संगठन भी बनाया था। संभवत: उनका इरादा राजनीति में आने का था, किन्तु कुछ समय बाद ही उन्होंने घोषणा कर दी कि उनकी दिलचस्पी सीधे राजनीति में आने की नहीं है। बाद में वे भारतीय जनता पार्टी के प्रचार अभियान से जुड़ गये और श्री नरेन्द्र मोदी को प्रधान मन्त्री की कुर्सी तक पहुँचाने में उन्होंने भरपूर सहयोग किया।
सत्ता में आने से पहले भारतीय जनता पार्टी ने भ्रष्टाचार पर नियंत्रण और स्विस बैंकों में जमा लाखों करोड़ रुपये के “काले धन” को स्वदेश वापस लाने की माँग की थी। स्वामी रामदेव ने उस मांग का समर्थन करते हुए पूरे भारत की लगभग एक लाख किलोमीटर की यात्रा की थी।
27 फरवरी 2011 को दिल्ली के रामलीला मैदान में स्वामी रामदेव ने विशाल जनसभा की थी जिसमें अन्ना हजारे और स्वामी अग्निवेश भी पहुंचे थे। इसके बाद स्वामी रामदेव ने 4 जून 2011 से रामलीला मैदान में अनशन के साथ सत्याग्रह की घोषणा कर दी। 4 जून 2011 को प्रात: 7 बजे सत्याग्रह आरंभ हुआ। रात को स्वामी रामदेव पंडाल में ही अपने सहयोगियों के साथ सो रहे थे कि अचानक रात में चारो ओर चीख-पुकार सुनकर वे मंच से कूद कर कहीं गायब हो गये। 5 जून 2011 तक रामदेव को लेकर अफवाहों का बाजार गर्म रहा और तबतक चलता रहा जबतक उन्होंने हरिद्वार में पहुंचकर पतंजलि योगपीठ से प्रेस वार्ता करके अपनी जान का खतरा बताने और बचकर निकलने की कहानी नहीं सुना दी।
भारतीय जनता पार्टी की सरकार के सत्ता में आने के बाद से स्वामी रामदेव स्विस बैंकों से काला धन वापस लाने के मुद्दे पर पूरी तरह चुप हैं। उनके ऊपर चल रहे अनेक मुकदमे भी अब परिधि में चले गये हैं और स्वामी रामदेव निर्द्वंद्व होकर अपना व्यापार फैला रहे हैं।
स्वामी रामदेव 2002 में टीवी पर अपने पेट को घुमाने वाले व्यायाम के लिए खूब चर्चित हुए। आज भी, जब उन्हें अवसर मिलता है वे उसका प्रदर्शन जरूर करते हैं।
स्वामी रामदेव, महर्षि दयानंद सरस्वती और उनके आर्य समाज की विचारधारा से गहरे प्रभावित हैं। यद्यपि मैंने कभी उनके मुख से महर्षि दयानंद सरस्वती का नाम लेते नहीं सुना है। अप्रैल 2018 में मैं दस दिन के लिए उनके हरिद्वार स्थित योगग्राम में ठहरा और देखा कि वहाँ के विशाल क्षेत्र में किसी देवी या देवता का कोई मंदिर नहीं है। हाँ, उस परिसर में एक यज्ञ मंडप जरूर है। जहाँ हवन करने के सबूत मुझे दिखाई दिये। महर्षि दयानंद सरस्वती की तरह स्वामी रामदेव भी मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करते। उनकी आस्था वेदों और उपनिषदों में है। महर्षि दयानंद सरस्वती की ही तरह वे भी गेरुआ वस्त्र धारण करते हैं। इतना ही नहीं, वेदों में आस्था रहने के बावजूद महर्षि दयानंद की ही तरह वे भी वर्ण और जाति-व्यवस्था में विश्वास नहीं करते। मैने व्याख्यानों में उनके मुख से जाति-पाँति की चर्चा कभी नहीं सुनी।
एक दौर में स्वामी दयानंद सरस्वती के आर्य समाज का देश में बड़ा प्रभाव था। देश भर में डीएवी विद्यालयों तथा आर्य समाज मंदिरों का जाल बिछ गया था। पंजाब और हरियाणा के क्षेत्र में आर्य समाज का ज्यादा असर था। किन्तु आज की दशा यह है कि आर्य समाज से जुड़े ज्यादातर संगठनों पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कब्जा हो चुका है और आर्य समाज में आस्था रखने वाले लोग भारतीय जनता पार्टी के समर्थक हो चुके हैं। कम से कम मेरे परिचित आर्यसमाजियों की परिणति इसी रूप में हुई है। स्वामी रामदेव की स्थिति इससे कुछ अलग नहीं है।
जनकल्याण की बात करने वाले स्वामी रामदेव के यहाँ देश के सत्तर प्रतिशत किसानों, मजदूरों, दलितों आदि के लिए कोई योजना नहीं है। उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर कोई उल्लेखनीय कार्यक्रम नहीं है। उनके सारे कार्यक्रम मध्यवर्ग और ऊससे ऊपर के लोगों के लिए ही हैं। उनके हरिद्वार स्थित योग-ग्राम में आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोगों के लिए कोई जगह नहीं है, जबकि पांच सितारा होटल की सुविधा वाले कॉटेज और कमरे बड़ी मात्रा में सुलभ हैं। पतंजलि के उत्पादों के मूल्य भी बाजार के अनुकूल ही होते हैं। उन्हें भी सस्ता नहीं कहा जा सकता, जबकि अपने व्यापार के लिये पूंजी का बड़ा हिस्सा उन्होंने अपने संत का बाना और जनता की आस्था का लाभ उठाते हुए, ट्रस्ट के लिए दान के रूप में प्राप्त किया है। वैसे भी स्वामी रामदेव द्वारा प्रचारित योग और प्राणायाम का सम्बन्ध मध्यवर्ग और उसके ऊपर के लोगों से ही है। मजदूरों और किसानों की मुख्य समस्या तो कुपोषण की है, बेरोजगारी की है। किसानों और मजदूरों में मधुमेह और ब्लडप्रेशर, मध्यवर्ग की तुलना में बहुत कम होता है।
कोरोना काल में जब देश भर के प्रवासी मजदूरों की हर तरह से सहायता की जरूरत थी, स्वामी रामदेव की संस्थाओं की ओर से व्यापक पैमाने पर की जाने वाली किसी तरह की उल्लेखनीय सहायता की खबर नहीं सुनी गई। हाँ, उन्होंने अवसर का लाभ उठाते हुए अपने उत्पाद ‘कोरोनिल’ को कारगर बताते हुए सबसे पहले लांच कर दिया जो बाद में विवादों के घेरे में आ गया। किन्तु कोरोनिल की बिक्री होती रही।
बहरहाल, एकाधिक विश्वविद्यालय़ों की ओर से स्वामी रामदेव को डॉक्टोरेट की मानद उपाधियाँ मिल चुकी हैं। इसके अलावा भी कई संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया है।
स्वामी रामदेव ने देश की गरीब और शोषित जनता के लिए कुछ भी उल्लेखनीय नहीं किया है किन्तु वे अंधविश्वास नहीं फैलाते। अपने भक्तों को जड़ नहीं बनाते। उनकी दृष्टि तार्किक और वैज्ञानिक है। उन्होंने योग और आयुर्वेद को जन-जन तक पहुँचाने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है और इस तरह समाज को स्वस्थ और नीरोग बनाने के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान किया है। इसीलिए व्यापार की सफलता के लिए जनता की आस्था का दोहन करने के बावजूद मैंने उन्हें ‘आजाद भारत के असली सितारे’ की श्रेणी में शामिल किया है।
हम स्वामी रामदेव को उनके जन्मदिन पर हार्दिक बधाई देते हैं और उनके सुस्वास्थ्य व सतत सक्रियता की कामना करते हैं।
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अमरनाथ
लेखक कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और हिन्दी विभागाध्यक्ष हैं। +919433009898, amarnath.cu@gmail.com
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