
आजाद भारत के असली सितारे – 18
श्वेत क्रान्ति के जनक : वर्गीज कुरियन
श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन (26.11.1921-9.9.2012) के उद्योग का ही फल है कि कभी दूध की कमी से जूझने वाला हमारा यह देश दुनिया के दुग्ध उत्पादक देशों में सबसे ऊंचे पायदान पर पहुँच गया है। इनके जन्मदिन 26 नवम्बर को हम ‘नेशनल मिल्क डे’ के रूप में मनाते हैं। वे दुनिया में सबसे बड़े डेयरी विकास कार्यक्रम ‘ऑपरेशन फ्लड’ के वास्तुकार थे।
डॉ. वर्गीज कुरियन का जन्म 26 नवम्बर 1921 को केरल के कोझिकोड में एक ईसाई परिवार में हुआ था। उनके पिता पुत्थेनपारक्कल कुरियन पेशे से डॉक्टर थे और उनकी माँ एक सुशिक्षित गृहिणी। उन्होंने चेन्नई के लोयला कॉलेज से 1940 में विज्ञान में स्नातक किया और चेन्नई के ही जी.सी. इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री ली। जब वे 22 साल के थे तो उनके पिता का निधन हो गया।
इसके बाद उनका परिवार उनके पिता के बड़े भाई के पास त्रिसूर चला गया। डिग्री पूरी करने के बाद कुछ समय तक उन्होंने जमशेदपुर स्थित टिस्को में नौकरी की, किन्तु इस दौरान भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। इसी बीच उन्हें डेयरी इंजीनियरिंग में अध्ययन करने के लिए भारत सरकार की ओर से छात्रवृत्ति मिल गयी और इसे लेकर उन्होंने बैंगलुरु के इंपीरियल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल हसबेंड्री एंड डेयरी में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिएवे अमेरिका चले गये और वहाँ के मिशीगन स्टेट यूनिवर्सिटी से 1948 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में मास्टर की डिग्री हासिल की, जिसमें डेयरी इंजीनियरिंग भी एक विषय था।
वर्गीज कुरियन वर्ष 1948 में अमेरिका से अपनी पढ़ाई पूरी करके वापस भारत आए और सरकार के डेयरी विभाग में नौकरी करने लगे। 13 मई 1949 को वे गुजरात के आनंद में सरकारी अनुसंधान क्रीमरी (मक्खन घी आदि बनाने का कारखाना) में डेयरी इंजीनियर के रूप में कार्यभार ग्रहण किया। आरंभ में उन्हें बहुत दिक्कतें हुईं। ईसाई समुदाय से होने और मांसाहारी होने के चलते उन्हें यहाँ किसी ने अपना घर भी किराए पर नहीं दिया। उन्हें खेड़ा के डेयरी डिवीजन में पाँच साल तक ऑफिसर के रूप में काम करना था जिसके लिए सरकार की तरफ से स्कॉलरशिप स्वीकृत थी। आनंद में काम के दौरान उन्हें यह पता चला कि दूध वितरकों द्वारा किसानों का बुरी तरह शोषण किया जा रहा है। उन्होंने देखा कि पूरे इलाके के दुग्ध व्यापार को पेस्टनजी एडुलजी नाम के एक चालाक व्यापारी द्वारा नियंत्रित किया जा रहा था। यह बात वर्गीज कुरियन को बहुत बुरी लगी।
उन्होंने देखा कि वहाँ त्रिभुवनदास पटेल नाम के एक नेता इन किसानों को एकजुट कर उनके शोषण के खिलाफ सहकारी आन्दोलन चलाने की तैयारी कर रहे थे। त्रिभुवनदास की ईमानदारी और परिश्रम से प्रभावित होकर वर्गीज कुरियन ने अपनी नौकरी छोड़ दी और उनके साथ हो गये। उन्होंने त्रिभुवनदास पटेल के एक छोटे से गैराज में अपने जीवन के कई साल गुजारे। इसके बाद उन दोनों ने खेड़ा डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स यूनियन लिमिटेड (KDCMPUL) का गठन किया। यही आगे चलकर अमूल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। किन्तु इसके पहले 1952-53 में सरकार से स्कॉलरशिप प्राप्त कर वे डेयरी टेक्नॉलॉजी के बारे में और अध्ययन के लिए न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया भी गये। वर्ष 1973 में, डॉ कुरियन ने डेरियों द्वारा निर्मित उत्पादों को बाजार में बेचने के लिए जीसीएमएमएफ (गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन) की स्थापना की और 2006 तक वे इसके अध्यक्ष रहे। यह संस्था अमूल ब्रांड के दुग्ध उत्पादों की बिक्री करने लगी। इस संघ के द्वारा उन्होंने हजारो गांवों के दूध उत्पादकों के लिए बाजार की व्यवस्था की। कुछ ही वर्षों में उनके सहकारी माडल की कामयाबी देश भर में चर्चा का विषय बन गयी।
वर्गीज कुरियन के नेतृत्व में को-ऑपरेटिव की दिन दूना, रात चौगुना प्रगति होने लगी। गांव-गांव में केडीसीएमपीयूएल की को-ऑपरेटिव सोसाइटियां बनने लगीं। बाद में अलग-अलग दुग्ध संघों को गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ (जीसीएमएमएफ) के बैनर के नीचे एक जगह लाया गया। कुरियन ने सहकारिता के माध्यम से भारतीय किसानों को सशक्त बनाने की दिशा में अभूतपूर्व कार्य किया। उनका मानना था कि लोगों के हाथों में विकास के उपकरण उपलब्ध करा कर ही मानव का विकास किया जा सकता है। वे कहते थे कि इस देश की सबसे बड़ी सम्पत्ति इस देश के लोग हैं। उनके प्रयास से धीरे- धीरे इतना दूध इकट्ठा होने लगा कि उनकी आपूर्ति मुश्किल होने लगी। इस समस्या को हल करने के लिए मिल्क प्रॉसेसिंग प्लांट लगाने का फैसला हुआ ताकि दूध को संरक्षित किया जा सके। देखते-देखते आनंद के पड़ोसी जिलों में भी को-ऑपरेटिव का प्रसार होने लगा। डॉक्टर कुरियन केडीसीएमपीयूएल को कोई सरल और आसान उच्चारण वाला नाम देना चाहते थे। कर्मचारियों ने ‘अमूल्य’ नाम सुझाया, जिसका मतलब अनमोल होता है। बाद में ‘अमूल’ नाम चुना गया जो संस्कृत के ‘अमूल्य‘ से निर्मित है।
डॉ. कुरियन दुनिया के पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने भैंस के दूध से पाउडर का निर्माण किया। इससे पहले गाय के दूध से पाउडर का निर्माण किया जाता था। 1955 में दुनिया में पहली बार भैंस के दूध का पाउडर बनाने की तकनीक विकसित हुई। उनके इस ऐतिहासिक काम में उनके बैचमेट रहे एच.एम.दलाया ने मुख्य भूमिका निभाई। डॉ. कुरियन ने जिस समय भैंस के दूध से स्किम दूध पाउडर और कंडेंस्ड मिल्क बनाने की शुरुआत की थी उस समय तक दुनिया भर के डेयरी एक्सपर्ट इसे असंभव मानते थे। खेड़ा डेयरी में अक्टूबर 1955 में यह प्लांट लगाया गया। अमूल की सफलता के पीछे यह एक महत्वपूर्ण कारण है क्योंकि इसी तकनीक के कारण वे नेस्ले जैसे प्रतिद्वंदी का मुकाबला कर सके। नेस्ले अभी तक गाय के दूध से ही पॉउडर बनाता था क्योंकि यूरोप में गाय के दूध का पैदावार ज्यादा है। अमूल की इस सफलता का ही फल था कि साठ के दशक में भारत में दूध की खपत जहाँ दो करोड़ टन थी वहीं 2017-18 में 17.6 करोड़ टन तक पहुंच गयी।
अमूल की सफलता से अभिभूत होकर 1965 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने डॉ. कुरियन के नेतृत्व में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की स्थापना की थी। दरअसल 1964 में लाल बहादुर शास्त्री अमूल की कैटल फीड फैक्ट्री का उद्घाटन करने आनंद आए थे। वहाँ उन्होंने वर्गीज कुरियन से अमूल की सफलता के बारे में पूछा और उनसे बहुत प्रभावित हुए। फिर उन्होंने‘ नेशनल डेयरी डवलपमेंट बोर्ड’ (एनडीडीबी) का गठन किया। डॉ. कुरियन को इसका अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद पूरे देश ने अमूल मॉडल को समझा और अपनाया। उस समय सबसे बड़ी समस्या धन की थी। इसके लिए डॉ कुरियन ने वर्ल्ड बैंक को राज़ी करने की कोशिश की और बिना किसी शर्त के उधार पाना चाहा। जब वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष 1969 में भारत दर्शन पर आए थे तो डॉ कुरियन ने उनसे अपनी योजना बताई और आर्थिक सहयोग के लिए आग्रह किया।
कुछ दिन बाद, वर्ल्ड बैंक ने उनके लिए ऋण की स्वीकृति दे दी। इसी मदद से भारत में बहुचर्चित ‘ऑपरेशन फ्लड’ संभव हुआ। उल्लेखनीय है कि डॉ. कुरियन 1965 से 1998 तक लगातार एनडीडीबी के अध्यक्ष रहे। उनके द्वारा 1970 में डेयरी डवलपमेंट प्रोग्राम शुरू किया गया, जिसे ‘ऑपरेशन फ्लड’ के नाम से जाना जाता है और जिससे भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बन गया। दुग्ध उत्पादन और वितरण के अलावाडॉ कुरियन ने और भी कई कदम उठाए जैसे कई अन्य प्रकार के डेयरी उत्पाद तैयार करना, मवेशियों के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना, टीके तैयार करना आदि। ‘ऑपरेशन फ्लड’ तीन चरणों में पूरा किया गया। ‘ऑपरेशन फ्लड’ विश्व के विशालतम विकास कार्यक्रम के रूप में प्रसिद्ध है। इस योजना की सफलता के कारण ही इसे ‘श्वेत क्रान्ति’ कहा गया।
डॉ. कुरियन के नये-नये विचार तथा नेतृत्व से न केवल डेरी विकास के कार्यों में मदद मिली बल्कि अन्य क्षेत्रों जैसे-खाद्य तेलों, फलों एवं सब्जियों के क्षेत्रों में भी मदद मिली। भारत सरकार के अनुरोध पर उन्होंने 90 के दशक में दिल्ली में फलों एवं सब्जियों की प्राप्ति एवं विपणन के लिए एक पॉयलट परियोजना शुरू की थी। यह परियोजना विभिन्न राज्यों के फल एवं सब्जी के उत्पादकों तथा दिल्ली के उपभोक्ताओं के मध्य सीधा सम्बन्ध उपलब्ध कराने पर केंद्रित थी।
इसके अलावा डॉ. कुरियन ने 1979 में ‘धारा’ लांच करके खाद्य तेलों के व्यवसाय में भी क्रांति ला दी। तिलहन उत्पादकों की सहकारी परियोजना से उत्पादकों एवं तेलों के उपभोक्ताओं के बीच एक सीधा सम्पर्क स्थापित हुआ जिससे तेल व्यापारियों और तेल सर्राफा की भूमिका घटी। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य तेल की कीमतों में स्थिरता लाना, खाद्य आयातों पर भारत की निर्भरता कम करना तथा उत्पादन में वृद्धि के लिए तिलहन उत्पादकों को प्रोत्साहित करना था।
डॉ. कुरियन एक दूरदर्शी व्यक्ति थे। वे संस्थान निर्माता के रूप में विख्यात हुए। पूरे देश में स्थापित होने वाली सहकारिताओं को प्रबन्धन- प्रशिक्षण एवं अनुसंधान सहायता उपलब्ध कराने के लिए उन्होंने 1979 में आनंद में ‘इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट’ (इरमा) की स्थापना की और 2006 तक इसके अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएं दीं। इसी तरह देश की राज्य सहकारी डेयरी महासंघों के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की संस्था उपलब्ध कराने के लिए उन्होंने 1988 में ‘भारतीय राष्ट्रीय सहकारी डेयरी महासंघ’ के पुनर्गठन के लिए भी काम किया। आनंद के विभिन्न संस्थानों में काम करने वाले कर्मचारियों के बच्चों को गुणवत्तायुक्त स्कूली शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए उन्होंने ‘आनंदालय शिक्षा समिति’ की स्थापना की। 1994 में, उन्होंने ‘विद्या डेयरी’ स्थापित करने में मदद की ताकि डेयरी प्रौद्योगिकी में स्नातक होने वाले विद्यार्थियों को डेयरी संयंत्र प्रबन्धन का व्यावहारिक अनुभव प्रदान किया जा सके। वे 1973 से 2006 तक ‘गुजरात सहकारी दूध विपणन महासंघ’ के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में भी कार्य करते रहे। उन्होंने सोवियत संघ, पाकिस्तान तथा श्रीलंका में भी अमूल के तर्ज पर को-आपरेटिव स्थापित करने में सहयोग किया।
ऊपर से अमूल सिर्फ एक ब्रांड लग सकता है किन्तु अमूल ने जाति-पांति का भेद खत्म किया। सभी धर्म और जाति के किसान अमूल से जुड़े और एक साथ लाईन में लगकर को-ऑपरेटिव को अपना दूध दिया। आर्थिक दृष्टि से कमजोर किसानों के जीवन में अमूल खुशियाँ लेकर आया, जिससे उनका जीवन स्तर और स्वास्थ्य में सुधार आया। अमूल की सफलता ने सिर्फ गुजरात ही नहीं, संपूर्ण भारत तथा विदेशों के किसानों के जीवन को भी बेहतर बनाया। पशुओं के लिए तो अमूल एक वरदान साबित हुआ। अच्छे दूध उत्पादन के लिए किसान उनका ख्याल रखने लगे और उन्हें अच्छा चारा उपलब्ध कराने लगे।
लाखों किसानों के जीवन को बदल देने वाले डॉ. वर्गीज कुरियन किसी ईश्वर अथवा देवी-देवता में विश्वास नहीं करते थे। वे नास्तिक थे। उनके निधन के बाद भाजपा के एक मंत्री दिलीप संघानी ने जब उनके ऊपर ईसाई मिशनरियों को धर्मान्तरण के लिए आर्थिक सहयोग देने का आरोप लगाया तो उनकी बेटी निर्मला कुरियन ने इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया और बताया कि किसी भी तरह की धार्मिक मान्यताओं में उनके पिता की कोई आस्था नहीं थी। वे आजीवन अपने को ‘किसानों का नौकर’ मानते थे और जीवनभर किसानों की सामाजिक–आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए समर्पित रहे।
उनके जीवन से जुड़ी एक रोचक और दिलचस्प बात यह भी है कि भारत में ‘श्वेत क्रांति के जनक’ और ‘मिल्कमैन ऑफ इंडिया’ के नाम से मशहूर डॉ. कुरियन खुद दूध नहीं पीते थे क्योंकि उन्हें दूध पसंद नहीं था।
डॉ॰ वर्गीज़ कुरियन ने सुसैन मॉली पीटर से शादी की थी और उन दोनों की एक बेटी हुई जिनका नाम निर्मला कुरियन है और उनका एक पोता भी हैं जिनका नाम सिद्धार्थ है। डॉ॰ कुरियन का निधन 9 सितम्बर 2012 को खेड़ा जिले के मुख्यालय नडियाद के मूलजी भाई पटेल यूरोलॉजिकल हॉस्पिटल में हुआ। उस समय वे नब्बे साल के थे। अन्तिम दिनों में वे गुर्दे की बीमारी से पीड़ित थे। कुछ महीने बाद अर्थात 14 दिसम्बर 2012 को उनकी पत्नी का भी निधन मुंबई में हो गया।
मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल ने डॉ कुरियन के सहकारिता आंदोलन पर आधारित ‘मंथन’ नामक फिल्म बनायी। इस फिल्म के निर्माण में डॉ. कुरियन ने बेनेगल की जिस तरह आर्थिक सहायता की वह भी अभूतपूर्व है। उन्होंने किसानों से 2 रूपए का टोकन लेकर इस फिल्म को बनाने में सहयोग दिया। 1976 में इस फिल्म का विमोचन हुआ। यह फिल्म सुपरहिट हुई और इसने बाद में अनेक राष्ट्रीय पुरष्कार जीते। इसे लगभग 5 लाख किसानों ने वित्तीय सहायता दी है।
अपने जीवनकाल में 30 से अधिक उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना करने वाले तथा ग्रामीण समाज और किसानों के जीवन में आर्थिक परिवर्तन लाने वाले डॉ कुरियन को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया है। सामुदायिक नेतृत्व के लिए उन्हें ‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार’, ‘कार्नेगी वाटलर विश्व शांति पुरस्कार’ और अमेरिका के ‘इंटरनेशनल पर्सन ऑफ द ईयर’ सम्मान से भी नवाजा गया है।
दुनिया भर के 15 विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद उपाधियों से विभूषित किया है। गूगल ने डॉ. कुरियन के 94वें जन्मदिन पर उन्हें याद करते हुए एक डूडल बनाया जिसमें वे भैंस के साथ दूध की बाल्टी लिए बैठे हैं।
उन्होंने ‘आई टू हैड अ ड्रीम’ तथा ‘ऐन अनफिनिश्ड ड्रीम’ शीर्षक अपनी पुस्तकों में अपने संघर्ष को चित्रित किया है। ‘द मैन हु मेड द एलीफेंट डांस’ उनकी ऑडियो बुक है।
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