राही डूमरचीर
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Oct- 2022 -27 Octoberसमाज
संताली गीतों में हूल की विरासत
हूल वह स्थाई सन्दर्भ है जो संतालों के जीवन और उनके गीतों में मौजूद दिखाई पड़ता है। यह स्वाभाविक भी है क्योंकि हूल से पहले संताल समुदाय अपने शांति-सौहार्द्रपूर्ण जीवन पद्धति की वजह से शोषकों के सामने निरीह बना…
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22 Octoberचर्चा में
भाषा की हिंसा और बारिश का विलेन हो जाना
कभी किसी वरिष्ठ पत्रकार ने खेल की ख़बरों में भाषा की हिंसा को रेखांकित किया था। तब पाकिस्तान खेलने गई भारतीय क्रिकेट टीम की जीत पर हेडलाइन बनी थी, ‘भारत ने किया मुल्तान का…
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Jun- 2021 -30 Juneक्रन्तिनामा
हूल का साहित्यिक परिदृश्य
30 जून 1855 ई. का वह दिन, जिसके बाद न संताल परगना का, न झारखण्ड और न देश का इतिहास वैसा रहा जैसा उससे पहले था। महाजनों और अंग्रेजों के शोषण से उपजी इतिहास के गर्भ की छटपटाहट हूल…
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Sep- 2020 -2 Septemberशख्सियत
अन्ततः मनुष्य होना पड़ता है कवि को
अविभाजित बंगाल में ढाका जिला के विक्रमपुर में 02 सितम्बर 1920 को जन्मे बांग्ला के अज़ीम शायर बीरेंद्र चट्टोपाध्याय का यह शताब्दी वर्ष है। बेहद साधारण नज़र आने वाले इस कवि के झोले में उनकी किताबें रहती थीं हमेशा…
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Aug- 2020 -23 Augustशख्सियत
उठा निज मान लागिया
दुनिया भर के जिन आदिवासी विद्वानों ने संयुक्त राष्ट्र संघ तक का ध्यान आदिवासी समुदाय की समस्याओं और चुनौतियों की तरफ आकृष्ट किया, उन्हीं में से एक थे अद्भुत व्यक्तित्व के धनी पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा। वह एक प्रतिबद्ध…
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