आशीष कुमार ‘दीपांकर’
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Jan- 2018 -15 Januaryसाहित्य
अम्बेडकर के बिना अधूरा है दलित साहित्य
समाज परिवर्तनशील है तो समाज की मान्यताएँ भी परिवर्तनशील होनी चाहिए और परिवर्तनशील समाज का साहित्य भी परिवर्तशील होना चाहिए, क्योंकि साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है और दर्पण में वही दिखना चाहिए जो सामने है। क्या भारतीय…
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