आधुनिक शिक्षा के पैरोकार सैयद अहमद खान
सैयद अहमद खान का जन्म 17 अक्टूबर 1817 में हुआ था और इनकी मृत्यु 27 मार्च 1898 को हृदय गति रुक जाने के कारण हुई । सैयद अहमद खान उन्नीसवीं शताब्दी के ऐसे विचारक थे जिन्होंने भारत के मुस्लिम समुदाय में नई चेतना के संचार के लिए उन्हें आधुनिक शिक्षा, संस्कृति और चिंतन-पद्धति अपनाने को प्रेरित किया । उनका विश्वास था की इंग्लैंड और अन्य पश्चिमी देशों ने अपनी धन-संपदा और शक्ति विज्ञान और कलाओं के विस्तृत ज्ञान के आधार पर अर्जित की थी । अतः मुस्लिम समुदाय और भारत के लोगों को भी अपनी उन्नति के लिए आधुनिक शिक्षा का सहारा लेना चाहिए।
19 वीं शताब्दी के मध्ययुग में जब भारत को एक उपयोगी एंव नवीन शिक्षा की आवश्यकता थी सर सैयद अहमद खान ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। मध्ययुग से लेकर आधुनिक युग तक के भारत के इतिहास में सर सैयद अहमद खान का महत्वपूर्ण स्थान हैं । उन्होने रूढ़िवादिता, अंधविश्वास, अकर्मण्यता और अज्ञान के विरुद्ध डटकर मोर्चा लिया । सर सैयद अहमद खान आधुनिक शिक्षा के महत्व को पहचानते थे। देश की आर्थिक प्रगति के लिए भी तकनीकी शिक्षा आवश्यक थी क्योंकि पश्चिमी ज्ञान और प्रद्योगिकी पर आधारित औद्योगीकरण के सामने मध्ययुगीन आर्थिक ढांचे ने दम तोड़ दिया था। देश के भौतिक विकास के लिए आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की ही आवश्यकता थी । अत्यधिक गहनता से अध्ययन करने के बाद सर सैयद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आधुनिक शिक्षा के अभाव में भारतवासियों का कल्याण नहीं हो सकता और भारतीय मुसलमान तो आधुनिक शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ही पीछे थे। शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ेपन का अर्थ है जीवन के हर क्षेत्र में पिछड़ना।
सर सैयद नवीन शिक्षा के साथ-साथ आध्यात्मिक अथवा धार्मिक शिक्षा को भी महत्वपूर्ण मानते थे। वह बालक के नैतिक विकास के लिए धार्मिक शिक्षा को महत्व देते थे। सर सैयद संस्कारों की शिक्षा पर अत्यंत ध्यान देते थे। उन्होंने शिक्षा से अधिक संस्कारों के विकास को महत्व प्रदान किया। भारत में वे ऐसी शिक्षा संस्था की स्थापना करना चाहते थे जो ज्ञान प्रदान करने के साथ-साथ संस्कारों का भी विकास करे । 1869 में सर सैयद ने इंग्लैंड की यात्रा की। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य इंग्लैंड में स्थापित कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों का गहनता से अध्ययन करना था । सर सैयद कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के आधार पर ही भारत में शिक्षा-संस्थाओं की स्थापना करना चाहते थे । भारत लौटने के पश्चात 1877 में सर सैयद ने अलीगढ़ में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की । यह सर सैयद का सबसे महान कार्य था, क्योंकि इसके द्वारा उन्होंने ज्ञान का सदैव प्रवाहित रहने वाला स्त्रोत बना दिया था । आगे चलकर 1920 में यह कॉलेज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ ।
सैयद अहमद खान आधुनिक वैज्ञानिक विचारों से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने इस्लाम की मान्यताओं के साथ उनका तालमेल स्थापित करने की कोशिश की। वे यह मानते थे कि सारे क्रांतिकारी परिवर्तन वैचारिक परिवर्तन का परिणाम होते हैं। जब धार्मिक विचारों में परिवर्तन आता है तो वह सामाजिक क्रांति को जन्म देता है। उन्होंने तर्क दिया कि धर्म के साथ जुड़ी मान्यताएं अपरिवर्तनीय नहीं है। यदि धर्म समय के साथ नहीं चलता तो वह जड़ हो जाएगा। अतः उन्होंने धर्म के कट्टरपंथी और संकीर्ण दृष्टिकोण का जमकर विरोध किया। उन्होंने पावन कुरान और इसकी शिक्षाओं की पुनर्व्यख्या का प्रयत्न किया और उन बातों का खंडन किया जो प्रकृति एंव तर्कबुद्धि के विरुद्ध थीं। उन्होंने यह मान्यता रखी कि ईश्वर का वचन – अर्थात धर्मग्रंथ का पाठ – ईश्वर की कृति अर्थात प्रकृति और तर्कबुद्धि के विरुद्ध नहीं हो सकता। इस आधार पर उन्होंने पर्दा-प्रथा, बहुविवाह-प्रथा और मामूली बातों पर तलाक़ के रिवाज को गलत ठहराया।
उन्होंने मुस्लिम समुदाय को यह सलाह दी कि उन्हें जीवन के लौकिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में अंतर करना चाहिए। धर्म का सरोकार मनुष्य के नैतिक और आध्यात्मिक जीवन से है। राज्य-व्यवस्था का सरोकार लौकिक या सांसारिक विषयों से है। अतः इसमें भिन्न-भिन्न धर्मावलंबी मिल-जुलकर रह सकते हैं। अल्लाह और पैगंबर का यह फ़रमान है कि मुसलमान जिस देश में रहते हैं, जहां उन्हें जीवन का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त होती है, उन्हें वहाँ के क़ानून का पालन अवश्य करना चाहिए। इस तरह सैयद अहमद खान ने धार्मिक सहिष्णुता और हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया।
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