एक नयी मानवता, एक नयी दुनिया
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ओवेई लाकंफा
कल्पना कीजिए की आप 681 लोगों के साथ एक समुद्री जहाज में हैं और आपको पता चलता है कि उनमें से कुछ लोग एक ऐसे तेजी से संक्रमित होनेवाले वायरस के सम्पर्क में आये हैं, जिसका ना कोई इलाज है और ना ही कोई टीका। और यदि कोई इलाज होगा, तो भी आपकी पहुँच से बहुत परे है क्योंकि आप समुद्र के बीचों-बीच फंसे हुए हैं और कोई भी देश आपकी जहाज को उतरने के लिए स्थान देने को तैयार नहीं हैं।
ऐसी स्थिति में वह जहाज आपको एक कैदखाना ही नहीं बल्कि एक ऐसे वायरस संक्रमित लेबोरेटरी जैसा प्रतीत होगा जिससे बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता है समुद्र की भयंकर लहरों में छलांग लगाना। और ऐसी स्थिति में आप उस संक्रमित वायरस के फैलने के डर के साथ उसी जहाज में प्रतीक्षा करने के लिए विवश हो जाते हैं। यह एक डरावने सपने सा प्रतीत होता है लेकिन आप इस सपने से जाग नहीं सकते क्योंकि यह पिछले कुछ हप्तों में घटित हुई सच्चाई है।
यह ब्रिटिश जहाज एम एस ब्रेमर पर सवार यात्रियों का तनावपूर्ण अनुभव था। इन यात्रियों में से 668 यूनाइटेड किंगडम से थे और बाकि यात्री इटली, कोलंबिया, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, आयरलैंड, नेथरलैंड, नॉर्वे, स्वीडन और जापान से थे। सवारियों में से पाँच को कोरोनावायरस कोविड-19 था जबकि 28 अन्य यात्रियों और 27 चालक दल के सदस्यों को कोरोनावायरस के लक्षणों के कारण अलग रखा गया था।
डोमिनिकन रिपब्लिक, बारबाडोस तथा बहामास जैसे देशों ने इस जहाज को उतरने का स्थान देने से मन कर दिया। शक्तिशाली देश यूनाइटेड स्टेट्स भी किसी प्रकार की सहायता देने के लिए तैयार नहीं था किन्तु क्यूबा जैसा छोटा सा द्वीप ने, जो खुद इस वायरस का अनुभव कर रहा था, अपनी एकजुटता का परिचय देते हुए मरियल नाम के अपने बन्दरगाह पर इस जहाज को रुकने का इशारा किया।
इसके बाद उन सभी यात्रियों को बसों और एम्बुलेंसों से हवाना के हवाई अड्डे पर पहुंचाया गया जहा से विमानों से उन्हें यूनाइटेड किंगडम भेजा गया।
ब्रिटिश विदेश सचिव डोमिनिक राब ने क्यूबा की प्रशंसा करते हुए कहा, “इस काम को इतनी तेजी से पूरा करने के लिए हम क्यूबा की सरकार के बहुत आभारी हैं।”
उन यात्रियों और उनके प्रियजनों के लिए क्यूबा की यह कार्रवाई बहादुरी का एक अविस्मरणीय कार्य है, जिसने उन लोगों की जान बचाई। यह अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में “सॉफ्टपॉवर डिप्लोमेसी” कहलाता है। लेकिन क्यूबा के लोगों के जाननेवाले समझ सकते हैं कि क्यूबा का इरादा यह नहीं था। बल्कि जरूरतमंदों की मदद करना फिर चाहे उससे अपनी ही जान को खतरा क्यों न हो, क्यूबा के लोगों के चरित्र और परंपरा का हिस्सा है। और कुछ ऐसा हीं उन्होंने, हैती में फैली हैजे की लड़ाई और 2014 में एबोला, जो कि लाइबेरिया और सिएरा लियोन जैसे देशों के ख़तम करने की कगार पर था, के समय भी किया था।
हम अफ़्रीकी भी यह नहीं भूल सकते की, 1980 के दशक में, जब रंगभेद दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया का गला घोंटकर अंगोला जैसे देशों के जप्त करने की कगार पर था, तब क्यूबा हीं था जो हमारी मदद के लिए आगे आया, अपने 55000 सैनिक तैनात किए, युद्ध में अपने हजारों जवानों की जान गंवाया लेकिन बड़े हीं प्रभावी ढंग से नस्लवादियों की यह बुरी व्यवस्था ख़त्म करने और नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्र करने पर मजबूर कर दिया।
इटली अब कोविड-19 महामारी का केंद्र है, जिसमे पिछले सप्ताह में औसतन चार सौ मौतें हुई हैं। दुनिया के लगभग सभी देश इस समय में केवल खुद की रक्षा कर रहे हैं और अपने नागरिकों के लिए अपने वित्त, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और चिकित्सा आपूर्ति का संरक्षण कर रहे हैं। इसके विपरीत, छोटा सा देश क्यूबा अपने चिकित्सा पेशेवरों के जूता रहा है और अपने हजारों पेशेवर कोविड-19 से प्रभावित देशों में सहायता के लिए भेज रहा है। इसी शनिवार, क्यूबा ने यूरोप के विकसित देश इटली में अपने 52 डॉक्टरों और नर्सों को भेजा।
यूरोपीय संघ के इटली के स्थायी प्रतिनिधि मैरिजियो मस्सारी ने शिकायत करते हुए कहा कि यूरोपीय संघ के सदस्य देशों से कोरोनावायरस से लड़ने के लिए उनके देश की गुहार अनुत्तरित रही।
इटली में अपनी “श्वेत वस्त्र सेना” की तैनाती, क्यूबा का छठा अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा ब्रिगेड था जो “कोविड-19” से लड़ने में मदद के लिए बाहर भेजा गया। इससे पहले ग्रेनेडा, निकारागुआ, सूरीनाम, वेनेज़ुएला और जमैका भेजा गया था।
जब क्यूबा के 140 चिकित्सा पेशेवर किंग्स्टन पहुंचे, तो जमैका के स्वास्थ्य मंत्री क्रिस्तोफर टफ्टन ने उन्हें इस प्रकार बधाई दी: “संकट के समय में, क्यूबा की सरकार, क्यूबा के लोग, इस अवसर पर आगे बढे, हमारी अपील सुनी और जवाब दिया।”
क्यूबाई ऐसे लड़ाके हैं कि उन देशों में चाहे कितनी भी बुरी परिस्थिति क्यों न बन जाये, वे कभी मुँह नहीं मोड़ते। युद्ध भूमि चाहे कोई भी हो – सैन्य, चिकित्सा या मानवता – पीछे हटना या आत्मसमर्पण करना उनका विकल्प हीं नहीं है।
उस विडिओ जिसमें क्यूबा के लोगों का इटली के कृतज्ञ लोगों द्वारा हर्षध्वनि से स्वागत करते देखना मेरे लिए एक बेहद भावनात्मक पल था। यह इस कथन को निश्चित करता था की विचारधारा, रंग और विकास के अंतर के परे सभी मनुष्य एक हैं। ब्रिटिश जहाज एम एस ब्रेमर के यात्रियों को छुड़ाने और डॉक्टरों को इटली भेजने का क्यूबा का काम इस बात का सबक है की आर्थिक रूप से गरीब, अविकसित देश भी अमीर और विकसित देशों के बचाव के लिए आ सकते हैं।
यह सीखने जैसा है कि क्यूबा, 11.3 मिलियन (एक करोड़ तेरह लाख) की आबादी के साथ सिर्फ 1,10,860 वर्ग किलोमीटर का द्वीप है, जो कि कच्चे चीनी और तम्बाकू के निर्यात पर दशकों से निर्भर है और 19 अक्टूबर, 1960 से अमेरिकी आर्थिक, वाणिज्यिक और वित्तीय प्रतिरोध में है। इसके बावजूद यहाँ 100 प्रतिशत साक्षरता और दुनिया की सबसे विकसित स्वास्थ्य व्यवस्था है। बल्कि, कोविड-19 से लड़ने के लिए चीन के लिए जो दवा सबसे सफल साबित हुई थी – Ineterferon Alpha 26, वह क्यूबा ने 1981 में डेंगू के वायरस से लड़ने के लिए निर्मित की थी।
कई वर्षों तक अमेरिकी राज्यों के संगठन में एकाकी और अकेले के दम पर क्यूबा खड़ा रहा। लेकिन प्रतिबद्धता, इच्छाशक्ति, निरन्तरता और विकास के परिप्रेक्ष्य के माध्यम से उसने अधिकांश राज्यों को अपनी ओर कर लिया।
अफ्रीका में और विशेष तौर से नाइजीरिया में क्यूबा हमें यह सिखाता है की आत्मनिर्भर होने, बुनियादी संस्थानों के निर्माण करने और लोगों में निवेश करने का कोई विकल्प नहीं है। नाइजीरिया के अमीर जो कि देश के संसाधनों को केवल खुद तक और अपने पश्चिमी मालिकों तक सीमित रखते हैं, यह उनको सिखाता है कि स्थानीय क्षमता निर्माण का कोई विकल्प नहीं है। यह सोचने के बजाय कि वे हमेशा विदेशों में अपना इलाज करा सकते हैं, यदि इन अमीरों ने स्वास्थ्य व्यवस्था तैयारी की होती तो आज जब कोरोनावायरस ने बाहरी देशों के रास्ते बन्द कर दिए हैं, तब उन्हें नाइजीरिया के टूटे-फूटे अस्पतालों में मरीज बनकर ना रहना पड़ता।
क्यूबा का उदाहरण कोई तुक्का नहीं है। वह अपने संस्थापकों जैसे कवी जोस मार्टी (1857-1895), जनरल एंटोनिओ मेसो (1845-1896), और बाद की पीढ़ियों जैसे फिदेल कास्त्रो और राउल कास्त्रो, कैमिलियो सेन्फ्यूगोस, हेदी मारिया और सेलिया सेन्चेज की नींव पर बना है, जिन्होंने सिखाया की मानवता एक है और इसके संसाधनों को सबके भलाई के लिए इस्तेमाल करना चाहिए विशेष कर गरीब, कमजोर और हाशिए पर ढकेल दिए वर्ग के लिए।
क्यूबा का सिद्धांत एक व्यक्ति एर्नेस्टो चे ग्वेरा के विचारों में अन्तर्निहित है, जिसने सिखाया की, “एक व्यक्ति का जीवन धरती के सबसे अमीर व्यक्ति की सारी संपत्ति से दस लाख गुना से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।” क्यूबा के लोग, चे की सलाह को जी रहे हैं कि “हमें हर दिन प्रयत्न करना चाहिए कि जीवित मानवता का यह प्रेम वास्तविकता में बदल जाये, ऐसे कार्य में जो कि उदाहरण बन जाये, एक गतिमान ताकत के रूप में।”
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अनुवाद- रिना
अनुवादक पेशे से एक इंजिनीयर है और लोकायत, पुणे (lokayat.org.in) संगठन के साथ कार्यरत है
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