एक मानवतावादी नेता!
पिछले दिनों एक बड़े दयालु किस्म के नेता के बारे में पता चला। वे जब किसी की पिटाई करते हैं, तो उसकी जान नहीं लेते, दो-चार जगह फ्रैक्चर कर देते हैं। इतनी सावधानी से पिटाई की कला उन्होंने अपने पूर्वजों से सीखी। उनके दल वाले उन्हें मानवतावादी नेता कहते हैं, जबकि दूसरे दल के कुछ नेता अपने शत्रुओं को सीधे यमलोक पहुँचा देते हैं।
पिछले दिनों चर्चित मानवतावादी नेता से टकरा गया। तो डर लगा, कहीं मुझ पर ही उनका मानवतावादी हाथ न पड़ जाए इसलिए कहा, ”क्षमा कीजिएगा, टक्कर लग गई।”
नेता ने मुझे घूरते हुए कहा, ”कोई बात नहीं। टक्कर इतनी खतरनाक नहीं थी कि आपके साथ ऐसा-वैसा कुछ करूँ कि आप ‘बिस्तरस्थ’ हो जाएं। मैं मानवतावादी शख्स हूँ। जो मेरा आलोचक नहीं, उसे दोस्त समझता हूँ। जो मुझसे पंगा लेता है, उसे निपटाने में देरी नहीं करता। आपने तो मेरे खिलाफ कभी कोई उल्टी सीधी राय नहीं रखी न?”
मैंने हकलाते हुए कहा, ” कभी नहीं। क्यों कुछ बोलूँगा भला। क्या मुझे आप की ‘विशेषताओं’ का पता नहीं। वैसे भी मुझे इस असार-संसार में अभी कुछ दिन और स्वस्थ शरीर के साथ रहना है।”
मेरी बात सुनकर भी हँस पड़े और बोले, “तुसी बड़े मजाकिया टाइप के हो। क्या काम करते हो?”
मैंने कहा, “लेखक हूँ जी।”
वह मुझे गौर से देखते हुए बोले, “पत्रकार तो नहीं हो न? क्योंकि पत्रकारों से मुझे बड़ा डर लगता है। मैं सब को निपटाता हूँ, मगर कभी-कभी पत्रकार मुझे निपटा देते हैं। मैं उन को निपटा नहीं पाता क्योंकि एक पत्रकार को छुआ, तो बहुत से मेरे खिलाफ पिल पड़ेंगे और मेरी पार्टी मुझे बाहर का रास्ता दिखा देगी। लेखक बेचारा निरीह प्राणी होता है न इसलिए उससे कोई खतरा नहीं।”
मैंने कहा, “सुना है, आप बड़े मानवतावादी हैं। अपनी मानवता के एक-दो नमूने पेश करें, तो कभी आपके बारे में लिखकर धन्य हो जाऊँ। एक लेखक का दायित्व होता है, वह समाज के अच्छे लोगों के बारे में सबको बताए।”
मेरी बात सुनकर वे मगन होकर मुंडी हिलाने लगे और बोले, “एक नहीं, अनेक घटनाएँ हैं, जिससे मेरा मानवतावाद प्रमाणित होता है। मैंने किसी भी व्यक्ति को अगर थप्पड़ मारे भी तो कभी उसके दाँत नहीं टूटे। जबकि आपको पता होगा कि फलाने दल का जो गुंडा नेता है, वह लोगों के हाथ-पैर तोड़ देता है। माँ-बहन की गालियाँ तो ऐसे देता है, जैसे फिल्मी गीत गुनगुना रहा है। मैं गालियाँ देता हूँ मगर फिल्टर करके। प्रहार भी उतना ही करता हूँ, जिससे सामने वाले की अधिक शारीरिक क्षति न हो। इस दृष्टि से देखें तो आज के समय में मेरे जैसा मानवतावादी नेता दुर्लभ है।”
मैंने उन्हें चने के झाड़ में चढ़ाते हुए कहा, “धन्य हैं आप। धन्य है आपकी मानवता। भगवान आपको इसी तरह का मानवतावादी बनाए रखे।”
मेरी बात सुनकर उन्होंने ठहाका लगाया और कहा, “जैसा यजमान, वैसी पूजा होती है। बेशक मानवतावादी तो हूँ मगर सामने वाली पार्टी ‘कैसीवादी’ है, उस हिसाब से मानवता को ग्राफ ऊपर-नीचे होता रहता है। सामने वाला अपना बल दिखाएगा तो मैं उससे बड़ा बाहुबली बन जाऊँगा। सामने वाला अगर एक गाली देगा तो उसे दस गालियाँ दूँगा। यह मेरा खानदानी फंडा है। कोई मुझे छेड़े नहीं, और कोई छेड़े, तो फिर छोड़ो नहीं। लोग मेरा इतिहास जानते हैं इसलिए कोई छेड़ता नहीं। पिछले दिन एक अफसर बेचारा गलती से मेरे मुँह लग गया। नतीजा यह हुआ कि मेरे प्रहार से उसका मुँह सूज गया। बहुत दिनों तक वह चलने-फिरने में भी असमर्थ रहा। मुझ पर केस दर्ज भी हुआ लेकिन बाद में रफा-दफा हो गया। सत्ता पक्ष का नेता हूँ न इसलिए पुलिस मेरे प्रति अकसर मेहरबान हो जाती है।”
इतना बोल कर वे अपनी बहादुरी पर जमकर हँसे, ”मेरी मानवता के अनेक किस्से हैं। कितने बताऊँ। कभी आराम से बैठेंगे तो विस्तार से बताऊँगा। अभी कुछ जल्दी है। एक छुटभैया नेता काफी गर्मी दिखा रहा है। उसकी गर्मी उतारने जा रहा हूँ। देखिए, मेरे साथ मेरे तीन-चार लठैत खड़े हैं। वे सब मेरे इशारे पर लोगों की गर्मी उतारने का काम करते हैं। अब हमने अपनी पॉलिसी बदली है। सीधे-सीधे मैं गर्मी नहीं उतारता, मेरे लठैत यह काम करते हैं। इससे फायदा यह होता है कि सीधे मुझ पर कोई जुर्म कायम नहीं होता। मेरे साथी अंदर होते हैं, बाद में मैं उनकी जमानत ले लेता हूँ। कुछ आर्थिक मदद भी करता हूँ। मेरे इस मानवतावाद से सभी लठैत खुश रहते हैं और मेरे एक इशारे पर किसी का भी काम तमाम करने के लिए तत्पर रहते हैं।”
मैंने इस बार मुस्कुराते हुए हाथ जोड़े और कहा, ”अद्भुत है आपका मानवतावाद। अब चलता हूँ। कभी आप के ‘मानवतावाद’ की ज़रूरत पड़ी तो याद करुँगा।”
वह बोले, ”ज़रूर याद कीजिएगा। मेरी मानवता आपके किसी काम आ सके तो बड़ा सौभाग्य होगा। लेकिन मेरे बारे में कुछ बढ़ा-चढ़ा करके लिखिएगा ज़रूर, क्योंकि अगली बार मूड बनाया है कि फिर चुनाव लड़ूँ और जीवन के तमाम शौक मुफ्त में पूरा करूँ।”