ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना से बेहाल नागरिक
अब जैसा कि दिख रहा है कोरोना की दूसरी लहर ग्रामीण इलाकों में भी कहर ढा रही है। इस महामारी के दौरान जब महानगरों और शहरों में स्वास्थ्य का ढांचा बुरी तरह चरमरा गया है, ग्रामीण इलाकों की हालत और बुरी है। गाँवों में यह महामारी घर-घर फैल गयी है लेकिन पहले तो पर्याप्त टेस्ट नहीं हो रहे हैं और दूसरे लोग सामाजिक बहिष्कार के डर से जाँच कराने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। लक्षण नजर आते ही लोग डाक्टरों से दवाएं ले कर घर पर ही इलाज कर रहे हैं। इस वजह से मौतें भी हो रही हैं। जिले में अस्पतालों में बेड और आक्सीजन की समस्या है। इसकी वजह मरीजों का अस्पताल नहीं पहुँचना है। ज्यादातर अस्पतालों में आरटी-पीसीआर जाँच की किट नहीं है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि महामारी की दूसरी लहर में जब बड़े महानगरों की हालत पस्त हो चुकी है तो ग्रामीण इलाकों में स्थिति का अनुमान लगाना कोई मुश्किल नहीं है।
ज्यादातर राज्यों के ग्रामीण इलाकों में न तो पर्याप्त अस्पताल हैं और न ही डाक्टर या दूसरे चिकित्साकर्मी। वहाँ कोरोना जाँच की सुविधा भी सीमित या नगण्य है। ऐसे में इलाके के लोग भगवान भरोसे ही हैं। इसके अलावा सामाजिक वहिष्कार के डर से भी लोग कोरोना की जाँच नहीं करा पा रहे हैं। तमाम राज्यों में ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य के आधारभूत ढांचे को मजबूत करना कभी किसी सरकार की प्राथमिकता सूची में नहीं रहा। अब उस लापरवाही का गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। अब भी सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए ताकि आगे आने वाली ऐसी किसी दूसरी महामारी या कोरोना की संभावित तीसरी लहर का मुकाबला किया जा सके।
उत्तर प्रदेश और बिहार में गंगा नदी में बहते सैकड़ों शव तो महज एक मिसाल हैं। पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में तो गाँवों में इतना आतंक है कि लोग डर के मारे न तो जाँच कराने जा रहे हैं और न ही अस्पताल में भर्ती होने। वहाँ होने वाली मौतों को कोरोना से हुई मौतों की सूची में भी जगह नहीं मिल रही है। ऐसे में कोरोना के असली आंकड़े भयावह हो सकते हैं। अब कई शहरों में संक्रमण की दर घट रही है लेकिन ग्रामीण इलाकों में यह लगातार तेज हो रही है।
पर्याप्त जाँच नहीं होने की वजह से देहाती इलाकों से असली आंकड़े भी सामने नहीं आ रहे हैं। एक तो जाँच की सुविधा कम है और दूसरे डर के मारे लोग जाँच कराने भी नहीं पहुँच रहे हैं। संक्रमण के लक्षण उभरने के बाद लोग नीम हकीमों से पूछ कर दवा खा रहे हैं। उनमें से कइयों की संक्रमण से मौत हो रही है लेकिन ऐसे मृतकों को कोरोना से मरने वालों की सूची में शामिल नहीं किया जाता। इसलिए तमाम देशी-विदेशी अखबारो में दावे किए जा रहे हैं कि कोरोना से मरने वालो की तादाद सरकारी आंकड़ों के मुकाबले कम से कम दस गुनी ज्यादा है।
देश के कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित 24 में से 13 राज्य ऐसे हैं जहाँ अब ग्रामीण इलाको में संक्रमण तेजी से फैल रहा है। इनमें से कई जिले ऐसे हैं जहाँ हर दूसरा व्यक्ति पाजिटिव मिल रहा है। ऐसे मामलों में छत्तीसगढ़ पहले स्थान पर है जहाँ कुल मामलों में से 89 फीसदी ग्रामीण इलाकों से सामने आ रहे हैं। इसके बाद क्रमशः 79 और 76 फीसदी के साथ हिमाचल प्रदेश और बिहार का स्थान है। हरियाणा में 50 फीसदी मरीज शहरी और 50 फीसदी संक्रमित ग्रामीण इलाकों से हैं। ऐसे राज्यों में ओड़िशा के अलावा राजस्थान, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर का भी स्थान है। पश्चिम बंगाल में कोरोना संक्रमण के मामले में उत्तर 24-परगना जिला अब राजधानी कोलकाता को टक्कर देने लगा है।
जिले में रोजाना करीब चार हजार नए मामले सामने आ रहे हैं और औसतन 35 मरीजों की मौत हो रही है। इस जिले में अप्रैल की शुरुआत में रोजाना चार सौ नए मरीज आ रहे थे लेकिन ग्रामीण इलाकों में संक्रमण बढ़ने की वजह से यह तादाद अब दस गुना बढ़ कर चार हजार तक पहुँच गयी है। उत्तर प्रदेश में भी ग्रामीण इलाकों में कोरोना मामलों में भारी इजाफा हुआ है। राज्य में लागू लॉकडाउन को बढ़ा दिया गया है। गुजरात सरकार ने 36 शहरों में रात का कर्फ्यू लगा दिया है लेकिन गाँवों में कोरोना की वजह से स्थिति भयावह होती जा रही है। मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाकों में भी हालत बिगड़ रही है। राज्य में 819 कोविड सेंटर हैं जिनमें से महज 69 ग्रामीण इलाकों में हैं।
बिहार में सरकार के लिए चिंता की बात यह है कि कोरोना ने अब गाँवों को अपना ठिकाना बना लिया है। राज्य में 76 फीसदी से ज्यादा मामले गाँवों से आ रहे हैं। गाँवों में बड़े पैमाने पर टेस्ट की सुविधा नहीं है। आंकड़ों से साफ है कि ग्रामीण क्षेत्रों में हालात काफी तेजी से बिगड़े हैं। बिहार में 9 अप्रैल को कोरोना संक्रमण के कुल मामलों में शहरी इलाकों के 47 फीसदी और ग्रामीण इलाकों के 53 फीसदी थे। एक महीने बाद 9 मई को शहरी क्षेत्रों के मामले जहाँ 24 फीसदी पर आ गए। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में इनका अनुपात बढ़कर 76 फीसदी पर पहुँच गया। इसी तरह उत्तर प्रदेश में नौ अप्रैल को कुल संक्रमितों में ग्रामीण इलाकों का अनुपात 49 फीसदी था जो 9 मई को बढ़कर 65 फीसदी हो गया।
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से सटे उत्तर 24-परगना जिले के वनगाँव इलाके में ग्रामीण बताते हैं कि उनके गाँव में पहले तो कोरोना की जाँच नहीं हो पा रही है और जाँच हुई भी रिपोर्ट आने में तीन से चार दिन लग रहे हैं। उसके बाद अस्पतालों में बेड के लिए दो-तीन दिन जूझना पड़ता है। पश्चिम बंगाल सरकार भले बेड और ऑक्सीजन की कमी नहीं होने का दावा करे, ग्रामीण इलाकों की तस्वीर बदहाल ही है।
झारखण्ड से सटे बांकुड़ा जिले में यह संक्रमण तेजी से फैल रहा है लेकिन सरकारी आंकड़ों में जमीनी तस्वीर नहीं नजर आती। दो सप्ताह पहले तक राज्य में नए मरीजों की दैनिक तादाद 16 हजार से कम थी जो अब 20 हजार के पार पहुँच गयी है। इसी तरह मौत का दैनिक आंकड़ा भी 68 से 134 तक पहुँच गया है। राज्य में मृत्युदर 1.23 फीसदी है। सबसे ज्यादा मरीज कोलकाता और उत्तर 24-परगना के अलावा हावड़ा और हुगली जिलों से आ रहे हैं। सवाल है कि जब जाँच ही नहीं हो पा रही है तो असली आंकड़े कहाँ से मिलेंगे? घंटों कतार में रहने के बाद अगर जाँच हुई भी तो इसकी रिपोर्ट मिलने में तीन से चार दिन लग जाते हैं।
कोरोना महामारी की खासकर दूसरी लहर ने देश के के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य के आधारभूत ढांचे की असलियत उधेड़ दी है। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र लावारिस हैं। ग्रामीण इलाकों के लोग इलाज के लिए सबसे पहले वहीं पहुँचते हैं। ऐसे हर केन्द्र पर डॉक्टरों की नियुक्ति का प्रावधान है लेकिन ज्यादातर केंद्रों में डॉक्टर ही नहीं होते हैं। इसी तरह ग्रामीण अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं हैं। पुरुष औऱ महिला सहायकों के स्वीकृत पद भी हजारों की तादाद में खाली हैं। पूरे देश की ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था है ऐसी स्थिति में मरीजों की बढ़ती संख्या से निपटने में खासी दिक्कत है। लोग बेवश हैं इसलिए पूरी तरह भगवान भरोसे हैं।