रिश्तों में उलझी चार कहानियों की ‘अजीब दास्तान्स’
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निर्देशक – शशांक खेतान, राज मेहता, नीरज घेवन, कायोज ईरानी
स्टार कास्ट – नुसरत भरुचा, फातिमा सना शेख, जयदीप अहलावत, शेफाली शाह, मानव कौल, कोंकणा सेन शर्मा, अदिति राव हैदरी, अभिषेक बनर्जी, इनायत वर्मा
रिलीजिंग प्लेटफॉर्म – नेटफ्लिक्स
अपनी रेटिंग – 2.5
हिंदी फिल्म उद्योग में अब धीरे-धीरे बदलावों की बयारें देखी जा रही हैं। वेब सीरीज के अलावा दो-तीन कहानियों को एक फ़िल्म का आकार देकर एक फ़िल्म रिलीज की जा रही है। हालांकि यह बात ये भी दर्शाती है कि कहीं न कहीं हमारे निर्माताओं, निर्देशकों के पास कहीं न कहीं कंटेंट, कहानियों की कमी होने लगी है। इस तकनीक एवं विधा या कहें कहने के तरीके को फिल्मों में एंथोलॉजी कहा जाता है। इस तरह की फिल्मों में अमूमन एक जैसे विषय पर अलग-अलग कहानियों को कहा जाता है।
नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई फिल्म ‘अजीब दास्तान्स’ भी ऐसी ही चार दास्तानों को सामने लाती है जो ही पैटर्न पर चार अलग-अलग कहानियों को बयां करती है। हालांकि ये कहानियां आपस में गुम्फित नहीं है लेकिन कहानी का आधार एक ही है वह है सेक्स और क्राइम। चार अलग-अलग निर्देशकों द्वारा बनाई गई चार छोटी-छोटी फिल्मों का एक सम्मिलित, सम्मिश्रण है यह फ़िल्म।
करण जौहर के प्रोडक्शन हाउस की फिल्म ‘अजीब दास्तान्स’ इंग्लिश की तर्ज पर बहुवचन का नियम लगाकर हिंदी नाम के रूप में इस्तेमाल किया गया है। ‘शशांक खेतान’ की ‘मजनूं’, ‘राज मेहता’ की ‘खिलौना’, ‘नीरज घेवन’ की ‘गीली पुच्ची’ और ‘केयोज इरानी’ की ‘अनकही’ कहानियों को इस फिल्म में दर्शाया गया है। इन कहानियों में समाज के कुछ टैबू को पेश किया गया है लेकिन वे उतने खूबसूरत तरीके से पर्दे पर नहीं आ पाए कहानी के रूप में। इस फ़िल्म की चारों कहानियों में ‘गीली पुच्ची’ और ‘खिलौना’ बाकी दोनों पर भारी पड़ती नजर आती हैं।
‘अजीब दास्तां’ की कहानियों में ‘मजनूं’ और ‘खिलौना’ में समाज की उस खाई को दिखाने की कोशिश की गई है जो लंबे अरसे से समाज में कायम है। इनमें एक अमीर है तो दूसरा संसाधनों से वंचित है। लेकिन नुसरत भरुचा के किरदार को जिस तरह क्रिएट किया गया है, उसमें नयापन तो कतई नहीं है। इसमें ‘अनकही’ भी है, जिसमें एक मां है जिसके बच्चे कुछ परेशानियों का शिकार हो रहे हैं, तो वहीं पति की उसके साथ दूरियां भी बढ़ती जा रही हैं। लेकिन नीरज घेवन ने ‘गीली पुच्ची’ के साथ यह दिखाया है कि वे किस तरह से मजबूत कहानियों को कहने में माहिर हैं।
फिल्म शुरू होती है शंशाक खेतान निर्देशित कहानी ‘मजनू’ के साथ। लिपाक्षी (फातिमा सना शेख) की शादी बबलू (जयदीप अहलावत) से हुई है। बबलू ने मजबूरी में शादी की है। वह किसी और से प्यार करता है। लिपाक्षी के जीवन में राज कुमार मिश्रा (अरमान रल्हन) आता है। उसके पिता बबलू के यहां ड्राइवर का काम करते हैं। लिपाक्षी बबलू की बेरुखी और अनदेखी की वजह से राज कुमार की ओर आकर्षित हो जाता है।
दूसरी कहानी है राज मेहता की ‘खिलौना’। मीनल (नुसरत भरुचा) कॉलोनी की एक कोठी में घरेलू नौकरानी का काम करती है। उसकी छोटी बहन बिन्नी (इनायत वर्मा) उसी के साथ रहती है। उस कॉलोनी में इस्त्री करने का काम करने वाले सुशील (अभिषेक बनर्जी) से मीनल प्यार करती है। कॉलोनी के एक सेक्रेटरी की गन्दी नजर मीनल पर है। मीनल ने कॉलोनी के बिजली के तारों पर कटिया डालकर अपने घर में बिजली चला रखी है। लेकिन कॉलोनी वालों ने उसके घर से बिजली कटवा दी है। सेक्रेटरी के कहने पर बिजली लग सकती है। लेकिन फिर मीनल, बिन्नी और सुशील जेल पहुंच जाते हैं और कहानी बिना कुछ कहे दिमाग का दही करके खत्म हो जाती है।
तीसरी कहानी है नीरज घेवन की गीली पुच्ची। भारती मंडल (कोंकणा सेन शर्मा) निम्न जाति से है। बी.कॉम में अच्छे प्रतिशत लाने के बावजूद भी डेटा ऑपरेटर का पद देने की बजाय उसे फैक्ट्री में मशीनमैन का काम दिया जाता है। डेटा ऑपरेटर के लिए प्रिया शर्मा (अदिति राव हैदरी) को लाया जाता है। भारती अपना सच जानती है कि वह समलैंगिक है। प्रिया भी समलैंगिक है, लेकिन समाज के बनाए नियमों के बीच ये कह नहीं पाती। कुछ समय के लिए उनके बीच सम्बन्ध भी पनपता है लेकिन उस सम्बन्ध का अकुंरण होने से पहले ही फूट जाना कहानी को पूरी तरह कहने में नाकाम साबित तो नहीं होता लेकिन कहानी पूरी होने के बावजूद भी अधूरापन छोड़ जाती है।
चौथी कहानी है कायोज ईरानी की अनकही। नताशा (शेफाली शाह) और रोहन शर्मा (तोता रॉय चौधरी) की बेटी समायरा सुन नहीं सकती है। पति-पत्नी में इस बात को लेकर झगड़ा है कि पिता अपनी बेटी से बात नहीं कर रहा, क्योंकि वह साइन लैंग्वेज नहीं सीख रहा। एक दिन नताशा की मुलाकात कबीर (मानव कौल) से होती है, जो सुन नहीं सकता। हालांकि वह कान की मशीन के जरिए सुन सकता है, लेकिन उसका उपयोग नहीं करता है। उसका कहना है कि इस दुनिया में लोग झूठ बहुत बोलते हैं, इसलिए वह सुनना नहीं चाहता।
अब बात करें इन चारों फिल्मों में अभिनय कि तो नीरज घेवन की ‘गीली पुच्ची’ में कोंकणा सेन शर्मा और अदिति राव हैदरी हैं। कोंकणा ने दलित बनकर जो प्ले किया है वह प्रभावी है। जबकि अदिति ब्राह्मण लड़की बनी है इसके बावजूद भी वे कोकणा जैसा प्रभाव नहीं जमा पाती। इस कहानी में इन दोनों की दोस्ती और इस फिल्म में नजर आने वाली कई बातें समाज की सच्चाई को पेश करती है और काफी मजबूती के साथ। नीरज घेवन की कहानी के दोनों किरदार काफी गहरे लगते हैं और निर्देशक और राइटर ने इस पर काफी मेहनत और काम भी किया है।
बहरहाल दूसरी तरफ शशांक ने एक औसत कहानी को दिलचस्प अंदाज़ में परोसा है और यह निराश भी नहीं करती। इससे पहले वे ‘हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया’, ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ और ‘धड़क’ जैसी रोमांटिक फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं। जयदीप अहलावत अपनी अदाकारी से प्रभावित करते हैं। फातिमा सना शेख, अरमान रल्हन और अरविंद पांडेय भी सही रहे। एक अन्य कहानी में नुसरत भरूचा जंचती हैं। अभिषेक बैनर्जी अदाकारी के उस्ताद लगे। छोटी बच्ची बिन्नी बनी इनायत वर्मा बेहद प्यारी लगती हैं अपनी मासूमियत से।
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गानों में मात्र ‘अनकही’ में प्रतीक कुहड़ की आवाज में गाया गाना ‘मैं कुछ ना कहूं तुम सुनो’ कर्णप्रिय लगता है। फ़िल्म की चारों कहानियों के सेट, लोकेशन उनके मुताबिक ही रखने की कोशिश की गई है। सेक्स, क्राइम, प्रेम जैसे मुद्दों से जुड़ी अलग-अलग कहानियों को देखना पसंद करते हैं तो फ़िल्म आपको अच्छी लगेगी।