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सिनेमा

ये इश्क़ नहीं आसान ‘इंदौरी इश्क़’

 

{Featured In IMDb Critics Reviews}

 

निर्देशक – समित कक्कड़
स्टार कास्ट – ऋत्विक सहोरे, वेदिका भंडारी, आशय कुलकर्णी, धीर हीरा, डोना मुंशी, तिथि राज आदि

क्या आपको स्कूली दिनों में किसी से मोहब्बत हुई है? क्या आपने कभी अल्ताफ़ राजा के गाने सुने हैं? क्या अल्ताफ़ राजा की आवाज, उनके गाए गाने पसंद आते हैं? क्या कभी मोहब्बत में आपका कटा है? क्या कभी मोहब्बत में एल लगे हैं? कितने ही ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब आज मिलेगा आपको इस वेब सीरीज को देखने के बाद। वो भी बिल्कुल फ़्री… फ़्री… फ़्री… तो चलिए रिव्यू शुरू करते हैं।

कहानी है हिंदुस्तान का दिल कहे जाने वाले, छोटा/ मिनी मुंबई कहे जाने वाले, मध्यप्रदेश में बसे छोटे से लेकिन रंगीन शहर इंदौर में एक लड़के की। लड़का है कुनाल जिसे स्कूल में दसवीं क्लास में एक लड़की से प्यार हुआ लेकिन दो साल लग गए अपने प्यार का इज़हार करने में। अब जब इजहार किया है तो उसका मुंबई जाने समय नजदीक आ गया है। मुंबई इसलिए की वह वहां जाकर मर्चेंट नेवी में ऑफिसर बनना चाहता है। प्यार का इज़हार अल्ताफ़ राजा के चल रहे लाइव कॉन्सर्ट में ‘तुम तो ठहरे परदेसी’ गाते समय करोगे तो तुम्हारे प्यार में एल तो लगेंगे ही न पहले से ही। वो क्या है ना कि जैसा हमारे आसपास माहौल होता है उसके प्रभाव या कुप्रभाव तो होते ही हैं। खैर प्यार का इजहार करके मुंबई आया तो जिसके घर में रुका है पहले ही दिन देखता है कि वहां लड़का दिन में कई-कई लड़की लेकर आता है। समझ रहे हो न! अब उनका एंट्रेंस पास हो गया कॉलेज में एडमिशन लेने का समय आ गया। लेकिन उसी समय कुनाल को जाना है इंदौर अपनी मोहब्बत से मिलने। जी वही तारा जिसने इसे दिन में तारे दिखाए।

अब क्या होगा वह आबाद होगा या बराबाद? उसकी जिंदगी सही मोड़ पर जाएगी या नशों में डूब देवदास बन जाएगा? या फिर नशे में से उसे निकालकर कोई उसे लाएगा? इन सब सवालों के जवाब तो नौ एपिसोड में मिलेगा। सीरीज लंबी है इसलिए थोड़ा समय लगता है और जरूरत महसूस होती है कि इसके ज्यादा नहीं तो एक दो एपिसोड कम किए जा सकते थे।

‘हर प्रेम कहानी में दो किरदार जरूर होते हैं। एक हीरो एक हीरोइन, लेकिन यह कहानी थोड़ी अलग है जिसमें एक हीरोइन है और एक…. जिसका कटा है।’ , ‘प्यार को सीरियस लेने वाले मजनू के एल लगते हैं।’, ‘सच्चा प्यार अनप्रोटेक्टेड सेक्स की तरह होता है।’ , ‘अपनी जवानी हाथों से काटने वाले लौंडे रिजेक्शन से नहीं डरा करते।’

कुछ मूव ऑन कर जाते हैं कुछ दूर भागते हैं प्यार से तो कुछ जान तक दे देते हैं। कुछ ऐसे ग़ैर जरूरी भी होते हैं जो समझ नहीं पाते क्या हुआ। हंसते खेलते , मौज मस्ती में कट रही ज़िंदगी में जब किसी को नई-नई जवानी छूती है तो वो अपनी जिंदगी में आग लगाने के लिए उल्टा तीर ले ही लेते हैं। बस उसी तीर का नाम है इश्क़। ‘प्यार में चुतिया ना बने तो साला ज़िंदगी में क्या बने।’ हम जीते हैं एक बार, मरते हैं एक बार, शादी भी एक बार ही होती है। ऐसा शाहरुख खान ने कहा था। हिंदुस्तान की आधी से ज़्यादा अवाम का किसी ने काटा है तो वो है बॉलीवुड। लेकिन जिनके लिए प्यार बॉलीवुड फिल्मों की तरह है। वही प्यार जो एक बार हो जाए तो मरते दम तक पीछा नहीं छोड़ता।

जैसे संवाद इस सीरीज की जान हैं। लेकिन वहीं अतिशय गालियां, कदम-कदम पर मां-बहन को गालियों में याद किए बिना क्या ऐसी सीरीज या ऐसी प्रेम कहानियां कही नहीं जा सकती। तो जनाब यह चालीस, पचास या साठ-सत्तर का दशक नहीं है जहां आप कैमरे में सूरज ढलने के साथ प्रेमी जोड़ों को सांकेतिक रूप से दिखा दें। या फिर दो फूलों के मिलन से प्यार को बयां कर दिया जाए। प्रेम हालांकि सात्विकता का नाम है। लेकिन वर्तमान समय में प्रेम के माने सिर्फ बिस्तर तक सीमित रह गए हैं।

एक्टिंग के नाम पर ऋत्विक सहोरे सीरीज की शुरुआत में नौसिखिये आशिक़ की तरह व्यवहार करते हुए मजेदार लगे हैं। लेकिन जब लाइव कॉन्सर्ट में लड़की को छूने की बात आई तो उनके चार सौ चालीस वाल्ट के झटके लगने के बाद का जो ड्रामा रचा गया है वह नहीं रुचता। बाकी सीरीज में जब वे नेगेटिव अंदाज में आते हैं या कभी-कभी समझदार बनते हैं तब बेहतरीन हो जाते हैं। एक ही सीरीज में कई रंग बिखेरने वाले ऋत्विक इससे पहले ‘लाखों में एक’ जैसी सीरीज में अभिनय कर चुके हैं। तारा बनी वेदिका भंडारी, महेश बने आशय कुलकर्णी, हरी के किरदार में धीर हीरा, रेशमा के रूप में डोना मुंशी, कामना बनी तिथि राज भी अच्छे तरीके से अपने किरदारों को जीते हैं। म्यूजिक के मामले में सीरीज कहीं-कहीं बेहद प्रभावी बन पड़ी है। तो वहीं सिनेमेटोग्राफी के मामले में औसत है।

इससे पहले हालांकि इस सीरीज के सिनेमेटोग्राफर विजय मिश्रा ने ‘रूही’ , ‘दरबान’ , ‘छिछोरे’ , ‘तुम्बाड’ , ‘रंगून’ ,’तलवार’ जैसी कुछ बेहतरीन तो कुछ औसत फिल्मों में रंग जमाया है। एडिटिंग के मामले में अपूर्वा आशीष को अभी काफी कुछ सीखने की जरूरत है। सीरीज के निर्देशक समित कक्कड़ ने इससे पहले ‘हाफ टिकट’ , ’36 गन’ , ‘आश्चर्य’ , ‘राक्षस’ , ‘हुप्पा हुय्या’ जैसी नामालूम फिल्मों के लिए निर्देशन, प्रोड्यूसर, कास्टिंग, असिस्टेंट डायरेक्टर आदि का कार्यभार भी संभाला है। बतौर लेखक कुनाल मराठे की यह पहली ही लेकिन बेहतर तथा सफल कोशिश कही जा सकती है। कुल मिलाकर यह सीरीज इंटरटेनमेंट का एक पैकेज है। जिसे आप देखें और आपका भी अगर कटा है इश्क़ में या एल लगे हैं तो यह आपके लिए ब्लॉकबस्टर हिट होने वाली है।

हिन्दी के साथ-साथ तमिल और तेलुगु में रिलीज हुई इस सीरीज को एमएक्स प्लयेर पर यहाँ क्लिक कर देखा जा सकता है।

अपनी रेटिंग – 2.5 स्टार

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