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सिनेमा

पुकारती है पाठकों को ‘किताब’

{Featured in IMDb Critics Reviews}

निर्देशक – कमलेश मिश्र
स्टार कास्ट – टॉम अल्टर, पूजा दीक्षित
अपनी रेटिंग – 4.5 स्टार

 साल 2019 में इन्टरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल ऑफ़ श्री गंगानगर में एक से एक बेहतरीन फ़िल्में दिखाई गयी। लेकिन उनमें से जो दिल को छू गयी उन फिल्मों में शामिल थी कमलेश मिश्र निर्देशित ‘किताब’।

किताब करीब 24-25 मिनट की एक ऐसी शॉर्ट फिल्म है जिसमें मात्र एक कविता है और बाकि बैकग्राउंड स्कोर या बैकग्राउंड धुन। बिना संवाद के भी यह फिल्म मारक साबित होती है। हमारे शहर श्री गंगानगर में पहली बार इतना बड़ा आयोजन हुआ उसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है। कम से कम एक ऐसे क्ष्रेत्र में यह कार्यक्रम हुआ जहाँ की जनता सिनेमा देखने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेती है। बात फिल्म की करूँ तो यह टॉम अल्टर साहब की आखरी फिल्म है।

फ़िल्म की शुरुआत में एक बूढ़ा लाइब्रेरियन नजर आता है जो अंत तक उस लाइब्रेरी में आने वाले और दिनों दिन कम हो रहे लोगों को देखता है। बस इतनी सी कहानी लेकिन उसे कहने का तरीका लाजवाब। टॉम अल्टर ने साल 1976 में धर्मेन्द्र की फिल्म ‘चरस’  से अपने सिनेमाई करियर का आगाज किया था। टॉम की इस फिल्म के बनने के कुछ समय बाद ही मृत्यु हो गयी थी। इस लिहाज से भी यह फिल्म ख़ास हो जाती है। इसके अलावा टॉम अल्टर ने कभी अपने जीवन में मोबाइल या गैजेट्स को महत्व नहीं दिया। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें हमेशा किताबों से ही घिरा हुआ देखा जाता था। किताबें हमारे जीवन का मुख्य आधार हैं। हमारे जीवन की शुरुआत ही किताबों से हो जाती है। दादी नानी के किस्से भी हमारे लिए किताबें ही हैं। अनुभवी अभिनेता टॉम ऑल्टर की आखिरी फिल्म 'किताब' का प्रीमियर राष्ट्र की राजधानी में आयोजित हुआ – Samachar Lahrein

किताबें मानव निर्माण का हिस्सा है और मोबाइल और गैजेट्स की दुनिया से बाहर निकलने के लिए भी यह फिल्म दरख्वास्त करती है। और पाठकों को पुकारती है की आओ और हमें पढ़ो, हम तुम्हें अल्फ़ाज देंगी। तुम अपने दुःख सुख हमारे भीतर ढूंढ पाओगे।

किताबों को लेकर किसी ने बहुत खूब कहा है –

कबीर के दोहे हैं इसमें

संतों की इसमें वाणी है

पढ़कर लाभ ही होता है

होती न कोई भी हानि है

कोई ऐसा प्रश्न नहीं

जिसका न इसमें जवाब है

जिंदगी में सबसे अच्छा  दोस्त

कोई और नहीं किताब है।

तो इस फिल्म का कुल हासिल यही है कि आप उन्हें बिसराएँ नहीं और फ़िल्म में कविता आती है अंत में –

इसलिए ही तो बनाया है घर किताबों में

कि बार बार अपनी नजर से गुजरूँगा

तुम्हारे साथ रहना चाहती हैं किताबें

बात करना चाहती हैं

किताबें भी बिल्कुल मेरी तरह हैं

अल्फ़ाज से भरपूर

मगर ख़ामोश

अबोले शब्दों की अभिव्यक्ति कमलेश मिश्रा की 'किताब' – Biharupdate

यह फ़िल्म सचमुच ख़ामोश है मगर इसकी खामोशी में जो तर्क है, जो ज्ञान है, जो हासिल नजर है उसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम हैं। ऐसी फ़िल्में जितना ज्यादा हों देखी और सराही जानी चाहिए। जाते जाते एक बात और यह फ़िल्म ‘किताब’ निर्देशक ‘कमलेश मिश्रा’ के निर्देशन की पहली फिल्म है। इस फिल्म को 40 से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह, महोत्सवों में दिखाया जा चुका है। और तकरीबन 18 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ‘बेस्ट डायरेक्टर’, ‘बेस्ट डायरेक्टर फ़िल्म’, ‘बेस्ट डायरेक्टर क्रिटिक’ अवार्ड के अलावा हरियाणा सरकार और बेस्ट डायरेक्टर ऑफ़ मंथ का खिताब भी मिल चुका है।

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