यूं तो पहले हिंदी सिनेमा ‘पति पत्नी और वो’ नाम से दो फ़िल्में भी दे चुका हैं। पहली बार बी.आर चोपड़ा ने 1978 में इस नाम से फ़िल्म बनाई थी। और संजीव कुमार, विद्या सिन्हा इसमें मुख्य भूमिका नजर आए थे। दूसरी बार फ़िल्म साल 2019 में रिलीज़ हुई। जिसमें कार्तिक आर्यन, भूमि पेडनेकर और अनन्या पांडे ने मुख्य भूमिका निभाई। इन दोनों ही फ़िल्मों को दर्शकों ने ख़ूब पसंद किया।
अब तीसरी बार इसी नाम से वेब सीरीज़ बनाई है ‘पति, पत्नी और वो’ और यह क्रिएट की गई है हरजीत छाबड़ा, निशीथ नीरव नीलकंठ द्वारा इस सीरीज में अनंत विधात शर्मा, रिया सेन, विन्नी अरोड़ा, सक्षम शुक्ला, जसपाल शर्मा आदि मुख्य भूमिका में नजर आए हैं।
दस एपिसोड की यह सीरीज़ पति, पत्नी और वो यानी तीसरी औरत के बीच की मजेदार कहानी है।
सीरीज की कहानी की बात करें तो एक छोटी-सी दुकान चलाने वाले मोहन यानी अनंत विधात शर्मा की पत्नी सुरभि यानी विन्नी अरोड़ा की असमय मौत के तेरह दिन के भीतर ही शादी करने के लिए लड़की तलाशने लगता है उसका पति। जिसमें उसका दोस्त थ्री जी यानी सक्षम शर्मा मदद करता है। पत्नी के मरने के तेरह दिन के भीतर ही मोहन की शादी को लेकर उतावलापन हालांकि किसी को समझ नहीं आता, लेकिन फिर भी वह ‘आदमी अच्छा’ है ऐसा सोच कर लोग सवाल नहीं उठाते। फिर भी छोटे शहरों में होने वाली जितनी मुंह उतनी बातें हमें यह सीरीज दिखाती है।
शादी के लिए लड़की देखने निकले मोहन, रिमझिम यानी रिया सेन से शादी करने का फैसला करते हैं, लेकिन वो भी उसे बिना देखे। थ्री जी को यह बात अजीब लगती है। अब पत्नी सुरभि की तेरहवीं और मोहन की दूसरी शादी एक ही दिन है सो पत्नी की मुक्ति के लिए हवन और फिर अपनी शादी के सात फेरे भी वे लेते हैं।
फूलों से सजे हुए कमरे कमरे में बैठी अपनी नई पत्नी जो कि उसकी पहली बीवी के लिए अब वो बन चुकी है, के कमरे में मोहन जाता है तो सुरभि का भूत भी साथ आता है। सुरभि के अनुसार उसकी आत्मा तभी मुक्त हो सकती है, जब वो अपने पति की नई पत्नी को देख ले। फिर जैसे-जैसे घूंघट उठता, वैसे-वैसे सुरभि मुक्त होने लगती है, लेकिन घूंघट पूरा हटते ही सुरभि की आत्मा मुक्त होते-होते बीच में रूक जाती है, क्योंकि उसे लगता है कि नई दुल्हन यानी दूसरी पत्नी अच्छी नहीं है। वहीं मोहन अपनी दूसरी पत्नी के रूप को देखकर इतना उस पर मोहित हो जाता है कि सीधे-सादे नजर आने वाले मोहन के मुंह से सीटी निकलने लगती है। अब मोहन, रिमझिम के रिश्ते की ‘वो’ का क्या अंजाम होता है, जानने के लिए इस सीरीज़ को देखना होगा।
इस सीरीज में कुछ जबरदस्ती के संवाद व उनमें भाषा का देसीपन अखरता भी है। लेकिन जैसे-जैसे सीरीज आगे बढ़ती है यह अखरना भी कम होता जाता है। बावजूद इसके कहीं-कहीं बनारस में भोपाल के मिश्रण की सी भाषा अजीब लगती है। यही वजह है कि कुछ सीन बेवजह भी घुसाए हुए से लगते हैं। कुल-मिलाकर निर्देशन में थोड़ा झोल खाती यह सीरीज बढ़िया बन पड़ी है तो अपनी कहानी और इसमें अभिनय करने वाले लगभग सभी कलाकारों के अभिनय कौशल के कारण।
एक्टिंग के मामले में अनंत विधात इससे पहले ‘सुल्तान’ फ़िल्म में सलमान खान के साथ नज़र आए थे। सीरीज में उनका अभिनय सबसे अच्छा कहा जाना चाहिए। कारण वे अपनी अभिनय की लगाम को कस कर पकड़ते हैं। विन्नी अरोड़ा सुरभि के किरदार में खूब जंची हैं। वहीं रिमझिम बनी रिया सेन भी अपने किरदार को अच्छी तरह से निभाने की कोशिश करती नजर आती है। खूबसूरत, बड़ी-बड़ी आंखों वाली यह बंगाली बाला ठीक-ठाक एक्टिंग कर जाती है। वहीं थ्री जी बने सक्षम शुक्ला ने बेहतरीन अभिनय किया है। जसपाल शर्मा और सिद्धार्थ चतुर्वेदी ने भी अपनी-अपनी भूमिका अच्छे से निभाई है। जसपाल शर्मा इससे पहले कई फिल्मों में भी नजर आए हैं। इस सीरीज में भी वे पंडित जी के किरदार में वे जंचे हैं।
सीरीज में एक बात यह भी नजर आती है कि महिलाओं को आम फिल्मों एवं धारणाओं की तरह ही पेश किया गया है। भूत-भूतनी वाला कॉन्सेप्ट पुराना है। लेकिन ये भूतनी डराती भी नहीं तो ठीक से मनोरंजन भी नहीं करती। गीत-संगीत, बैकग्राउंड स्कोर, सिनेमेटोग्राफी, एडिटिंग कुलमिलाकर मनोरंजन जरूर देते हैं। बेहतर होता इस सीरीज को फ़िल्म के रूप में दर्शकों के सामने लाया जाता। या इसमें कुछ एपिसोड कम करके भी इसकी रोचकता को बरकरार रखा जा सकता था। इस सीरीज को बहुत पहले देखा जाना चाहिए था मेरे द्वारा लेकिन देरी से ही सही पिछले दिनों देखकर ख़त्म किया और समीक्षा हाजिर- नाज़िर है।