बिहार और बाढ़ का पुराना नाता है। हर साल बाढ़ आती है, सरकार पर सवाल उठते हैं। बाढ़ खत्म बात खत्म, सवाल खत्म, फिर इंतजार होता है अगले साल का। दो साल पहले 2017 में भी बाढ़ के दौरान इतने सवाल किये गये। ठीक महीना बाद बाढ़ ने हमें छोड़ा था, लेकिन हम साल भर चुप रहे, 2018 में भयावह स्थिति नहीं दिखी, हमने फिर चुप्पी साध ली, लेकिन एक बार फिर बाढ़ की विभीषिका झेल रहे हैं ये परिणाम है चुप्पी साधने का, सरकार के खिलाफ, सिस्टम के खिलाफ।
तटबंध इतनी आसानी से टूट रहे हैं जैसे ताश के पत्तों से बना घर। सरकारी लोग एसी कमरों और हेलीकॉप्टर की उचाइयों से स्थिति का जायजा अपना काम दिखाने के लिए लेते रहते हैं। आगे भी तबतक लेते रहेंगे जबतक हम यूं ही चुप्पी साधते रहेंगे शांत धारा की तरह और विकराल बाढ़ हमें बहा ले जाएगी। ये तबतक ऐसा ही होगा जबतक हम राहत के पैकेट लेने के लिए इंतजार करते रहेंगे। कभी हेलीकॉप्टर से चना गिराया जाएगा, कभी चूड़ा, कभी कुछ। हम बाढ़ में तब तक डूबे रहेंगे जबतक लालच के सहारे पांव में बाढ़ के पानी में गड़े रहेंगे।
दूर से यह एक बाढ़ जरूर है, लेकिन ये अनेक सपनों का टूट जाना है, जीवन का छूट जाना है। बाढ़ के बाद हमें संभलना होता फिर बसना होता है। हमें दोबारा जीवन मिलता है, हरेक साल दो साल पर। बावजूद हम चुप्पी साध लेते हैं ये सोचकर की ये भगवान का किया धरा है।
बाढ़ से तबाही हर साल बिहार देखता है, हर साल सैकड़ों लोगों की मौतें होती है। गांव के गांव जलमग्न हो जाते हैं। सड़क, रेल, हवाई यातायात से संपर्क टूट जाता है, बच्चों की पढ़ाई खत्म, लोगों का आना जाना बंद, घर से निकलना मुश्किल, कई दिनों तक भूखे रहना बाढ़ की नियति बन गई है। इस बार भी आलम यही है, मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है, हर साल की तरह कई लोग बेघर हो चुके हैं। सरकार का क्या है हालात पर नियंत्रण करने के लाख दावे जो बाढ़ में बह जाते हैं।
इस वक्त बिहार के करीब के करीब 12 जिले बाढ़ की चपेट में है, राज्य की 25 लाख से ज्यादा आबादी बाढ़ से प्रभावित है, 77 प्रखंडों के 546 पंचायत पानी में डूबे हुए हैं, ये आंकड़ा और भी बढ़ सकता है।
पिछले करीब 40 सालों से बाढ़ की विभीषिका को बिहार की जनता झेल रही है, बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक हर साल राज्य का 68,800 वर्ग किमी. क्षेत्रफल बाढ़ में डूब जाता है।
बाढ़ से सबसे ज्यादा नुकसान बिहार के उत्तरी इलाकों में होता है इसका प्रमुख कारण है नेपाल से छोड़े जाना वाला पानी। दरअसल नेपाल में जब भी पानी का स्तर बढ़ता है वो अपने बांधों के दरवाजे खोल देता है जिससे बिहार का उत्तरी हिस्सा त्राहिमाम करने लगता है। अररिया, किशनगंज, फारबिसगंज, पूर्णिया, सुपौल, मधुबनी, दरभंगा और कटिहार। इन जिलों के लिए कमला बलान, कोसी, बागमती, गंडक, महानंदा, मॉनसून के मौसम में काल बन जाता है। फरक्का बैराज की वजह से भी बाढ़ आती है क्योंकि बैराज बनने के बाद बिहार में नदी का कटाव बढ़ा है।
फरक्का बैराज
बाढ़ पर नियंत्रण नहीं होने का सबसे बड़ा कारण तटबंधों का कम होना है। इस वक्त बिहार में करीब 3700 किमी. तटबंध है लेकिन बाढ़ प्रभावित झेत्र 68 लाख हेक्टेयर हो चुका है। इसका कारण है कि जिस तरीके से बाढ़ में इजाफा हो रहा है उस हिसाब से तटबंधों की संख्या नहीं बढ़ रही। दूसरा कारण पेड़ों की कटाई होना भी है। खासकर कैचमेंट एरिया में।
बिहार में बाढ़ से नुकसान के आंकड़ों पर नजर डालें तो…
2016 में 12 जिले बाढ़ की चपेट में थे, 23 लाख लोग प्रभावित हुए 250 से ज्यादा लोगों की मौत हुई
2013 की बात करें तो बाढ़ में करीब 200 लोग मारे गए, बाढ़ 20 जिलों को चपेट में ले चुका था, करीब 50 लाख की आबादी प्रभावित हुई थी
2011 में बाढ़ का असर 25 जिलों में देखा गया, करीब 71 लाख आबादी प्रभावित हुई, करीब 250 लोग इस साल भी बाढ़ में समा गए
2008 में 18 जिले प्रभावित हुए, करीब 250 से ज्यादा लोगों की मौत हुई
2007 में भी 22 जिलों में बाढ़ का कहर देखने को मिला था, करीब 1200 से ज्यादा लोगों की जान चली गई।
2004 में भी 20 जिले बाढ़ में डूब गए 850 से ज्यादा लोग इस साल भी मारे गये
2000 में 33 जिलों में बाढ़ का असर दिखा करीब 350 लोगों की जानें गई। ये ऐसे आंकड़ें हैं जिन्हें झुठलाया नहीं जा सकता बावजूद उसके हम ये सोचकर चुप हो जाते हैं कि ये भगवान की देन है। बाढ़ से भगवान ही बचाए। लेकिन ऐसा नहीं है। अगर सरकार सही प्रबंधन करे तो ना हर साल बिहार में बाढ़ आएगी ना ही लोग बेघर होंगे ना ही लोग मरेंगे। लेकिन ऐसा नहीं है बाढ़ बिहार की नियति बन चुकी है क्योंकि सरकार के दावे और वादे उसी बाढ़ की तरह है जो बिहार को बदहाल कर जाती है। और लोग फिर नियति के भरोसे दोबारा जिंदगी ढूंढने में लग जाते हैं।
लेखक टीवी पत्रकार हैं|
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