खुशफहमी से बाहर यथार्थ देखने का वक़्त – सेवाराम त्रिपाठी
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विशेष
वक्त के आमने-सामने
हम अच्छे दिनों और अच्छे समय की आत्ममुग्धता की सीमा-रेखाओं में हैं। उसके बरअक्स खराब समय की जद्दोजहद के बीच और उसकी धधकती ज्वालाओं में हैं। ख़राब चीज़ों की एक लम्बी शृंखला है। वक्त के सामने हम…
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देश
खुशफहमी से बाहर यथार्थ देखने का वक़्त
देश दुनिया के जो हालात हैं, उसको गम्भीरता से लेने की ज़रूरत है। फ़ोटो शूट करने में थोड़ी-थोड़ी खुशियों की भी एक दुनिया होती है। इसका मज़ा भी लेना चाहिए, लेकिन केवल इन्हीं में डूबे रहना क्या एकदम ठीक…
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