अज्ञेय के कविता की एक पंक्ति
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सामयिक
भाषा का नवाचार या भ्रष्टाचार
कभी अज्ञेय ने, ख़ासकर साहित्य के संदर्भ में, शब्दों से उनके छूटते व घिस चुके अर्थों से व्यग्र होकर लिखा था – “ये उपमान मैले हो गए हैं। देवता इन प्रतीकों के कर गए हैं कूच। कभी वासन अधिक…
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सिनेमा
चारुलता के मार्फ़त सत्यजित राय की सिनेमाई-दृष्टि पर एक नज़र
अजीब पशोपेश में हूँ। महान फिल्मकार से कैसे संवाद करूं? जमीन पर खड़ा मैं, शिखर पर सत्यजित राय और उनका सिने-संसार। काफी फासला है दर्शक और निर्देशक के बीच। और फासला भी कई अर्थों में। जैसे, मै ठेठ उत्तर-…
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