- पंकज चौधरी
समकालीन जगत में महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में बहुतेरे नाम अपने-अपने तरीके से सक्रिय हैं। लेकिन इन सब के बीच एक नाम जो सबसे उल्लेखनीय और चमकता हुआ प्रतीत हो रहा है वह है श्री कैलाश सत्यार्थी। महिला मुक्ति से अपने जीवन संघर्ष की शुरुआत करने वाले श्री सत्यार्थी आज भी पूरे मन से आधी आबादी की गरिमा को सुरक्षित करने में जी-जान से जुटे हुए हैं।
महिला मुक्ति से शुरू होता है श्री सत्यार्थी का जीवन संघर्ष
श्री कैलाश सत्यार्थी जाने-माने बाल अधिकार कार्यकर्ता हैं और उन्हें 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें वैसे तो दुनियाभर में ‘’बच्चों की आस कैलाश’’ के रूप में देखा जाता है लेकिन बहुत सारे लोग इस तथ्य से वाकिफ नहीं हैं कि उनका जीवन संघर्ष दरअसल महिला मुक्ति से शुरू होता है। गौरतलब है कि श्री सत्यार्थी के नाम जिन 90,000 से अधिक बाल मजदूरों को बाल दासता से मुक्त कराने का रिकॉर्ड है, उनमें लड़कियों की संख्या भी कम नहीं है और जिसकी शुरुआत उन्होंने साबो नाम की एक 15 वर्षीय बाल मजदूर को मुक्त कराकर की थी। पंजाब के सरहिंद के ईंट-भट्ठे से साबो सहित 34 अन्य महिला और पुरुष बंधुआ मजदूरों को उन्होंने 1980 में मुक्त कराया था। उन मजदूरों को ईंट-भट्ठे पर गुलामों की तरह खटाया जाता था। साबो को तो चकलाघर में बेचने की योजना बन चुकी थी। कठिन परिस्थितियों और जानलेवा हमलों को झेलते हुए अन्तत:श्री सत्यार्थी ने साबो को उस नरक से मुक्ति दिलाई थी।
बीबीए के बैनर तले हजारों लड़कियाँ बाल मजदूरी के दलदल से मुक्त हो चुकी हैं
साबो की बाल मजदूरी से मुक्ति की सफलता से उत्साहित होकर ही श्री सत्यार्थी और उनके साथियों ने भारत का सबसे अग्रणी स्वयंसेवी संगठन बचपन बचाओ आन्दोलन (बीबीए) की 1980 में स्थापना की थी। बीबीए की स्थापना के बाद से अब तक हजारों लड़कियों को बाल मजदूरी, बाल दुर्व्यापार, बाल यौन शोषण, सेक्सवर्क और बाल विवाह के चंगुल से आजाद कराकर उनका पुनर्वास कराया गया है।
बदलाव की वाहक बन रही हैं बीएमजी की लड़कियाँ
बीबीए की सहयोगी संस्था कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) संचालित बाल मित्र ग्राम (बीएमजी) की लड़कियाँ बदलाव निर्माता के रूप में राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आ रही हैं। गौरतलब है कि ये लड़कियाँ भी कभी बाल मजदूर थीं। लेकिन इन्हें जब श्री सत्यार्थी के नेतृत्व में बाल मजदूरी के चंगुल से मुक्त कराया गया और शिक्षा के महत्व से अवगत कराया गया, तब से ये अपने आस-पास के गांवों की महिलाओं और बच्चों को सशक्त करने के महत उद्देश्य से कई जागरुकता कार्यक्रमों को संचालित कर रही हैं। इन्होंने ग्राम और बाल पंचायतों के साथ मिलकर कई बाल विवाहों को रुकवाया है। ये अपने आस-पास के गांवों में बाल विवाह के साथ-साथ छुआछूत और जातिप्रथा के खिलाफ भी संघर्ष कर रही हैं। वे हाशिए के समाज से आने वाले बच्चों का स्कूलों में दाखिला करवा रही हैं और स्कूलों की छोटी-मोटी समस्याओं का भी समाधान प्रशासन से करवा रही हैं। बदलाव की वाहक ये लड़कियाँ आज के दिन बाल अधिकारों की वकालत करते हुए बच्चों को गोलबंद करने में जुटी हुई हैं।
बीएमजी का प्रतिनिधित्व करने वाली पायल को खुद बाल विवाह के दौर से गुजरना पड़ा था। उसके माता-पिता ने 11 साल की उम्र में जब उसकी शादी करने का फैसला किया, तब उसने उनके फैसले का जबरदस्त विरोध किया। परिणामस्वरूप पायल के माता-पिता को उसका विवाह रोकना पड़ा। ललिता दुहारिया को तो स्कूल में दलित होने के कारण मीड-डे-मील परोसने से मना कर कर दिया गया था। लेकिन उसने इस सामाजिक बुराई के खिलाफ संघर्ष किया और जीत हासिल की। इस तरह हम देखते हैं कि बदलाव की इन वाहकों के पीछे लंबी कहानियाँ हैं।
इन नायिकाओं पर देश और दुनिया की नजर है। राजस्थान की रहने वाली राष्ट्रीय महा बाल पंचायत की अध्यक्ष ललिता दुहारिया को एक ओर जहां रिबॉक फिट टू फाइट अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है, वहीं वह अशोका यूथ वेंचर की ओर से यूथ फेलो भी है। राजस्थान के हिंसला बीएमजी का प्रतिनिधित्व करने वाली 17 वर्षीया पायल जांगिड़ को न्यूयॉर्क में पिछले ही साल बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा ‘चेंजमेकर’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। झारखंड के गिरिडीह जिले में संचालित जामदार बीएमजी की चंपा को यूनाइटेड किंगडम का प्रतिष्ठित डायना अवार्ड मिल चुका है। इसके अलावा भी इन्हें कई सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है।
बीएमजी का मतलब ऐसे गांवों से है जिनके 6-14 साल की उम्र के सभी बच्चे बाल मजदूरी से मुक्त कराए गए हों और स्कूल जाते हों। सभी बीएमजी में चुनी हुई बाल पंचायत हो और जिन्हें ग्राम पंचायत द्वारा मान्यता प्रदान की गई हो। बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ-साथ उनमें नेतृत्व क्षमता के गुण विकसित किए जाते हों।
भारत यात्रा ने लोकसभा में एंटी ट्रैफिकिंग कानून पारित कराया
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) का आंकड़ा है कि देश में प्रत्येक दिन 40 बच्चे बलात्कार के शिकार होते हैं। 48 बच्चों के साथ दुराचार की घटनाओं को अंजाम दिया जाता है। 10 बच्चे दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) के शिकार होते हैं और 6 मिनट में एक बच्चा लापता हो जाता है।
श्री सत्यार्थी को देशभर के सार्वजनिक स्थानों पर उपरोक्त आंकड़ों का हवाला देते हुए तब देखा जा रहा था जब वह 2017 में देशव्यापी ‘’भारत यात्रा’’ का नेतृत्व कर रहे थे। बलात्कार की बढ़ती घटनाओं और दुर्व्यापार को वह महामारी की संज्ञा देते हैं एवं जिसके खिलाफ उन्होंने भारत यात्रा निकाली थी। 35 दिनों तक चली इस देशव्यापी भारत यात्रा में लाखों महिलाओं, युवाओं, बुजुर्गों और आम लोगों ने भाग लिया था। भारत यात्रा को सिविल सोसायटियों, धर्मगुरुओं, कॉरपोरेट घरानों, राजनेताओं, कानून निर्माताओं और मीडियाकर्मियों का अपार समर्थन मिला था। यात्रा से प्रभावित होकर जनमानस ने केंद्र सरकार पर इतना दबाव बनाया कि उसने लोकसभा में दुर्व्यापार की रोकथाम और उसके पीडि़तों के पुनर्वास के लिए ‘’द ट्रैफिकिंग ऑफ पर्सन्स (प्रीवेन्शन, प्रोटेक्शन एंड रीहैबिलिटेशन) बिल, 2018’’ को पास किया। मध्य प्रदेश की तत्कालीन शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने 12 साल से कम उम्र के मासूम बच्चों के साथ बलात्कार करने वालों को फांसी की सजा मुकर्रर करने का कानून विधानसभा में सर्वसम्मति से पास कर किया। केंद्र और राज्य सरकारें भी इस पर विचार कर रही हैं। भारत यात्रा का इतना दूरगामी परिणाम पड़ा कि बच्चों के अधिकारों और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के वास्ते नीतियों और कानूनों में बहुत सारे बदलाव किए गए।
डिजिटल चाइल्ड पोर्नोग्राफी के खिलाफ अभियान
एक अनुमान के अनुसार दुनियाभर में जबरिया यौन शोषण के शिकार आज दस लाख से अधिक बच्चे हैं। मानव दुर्व्यापार से औसतन 150 अरब डालर का सलाना मुनाफा होता है, जिसमें से दो-तिहाई (99 अरब डॉलर) अकेले जबरिया यौन शोषण से आते हैं। उल्लेखनीय है कि बाल यौन दुर्व्यापार को और अधिक चोखा धंधा बनाने के लिए तेजी से इसके डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित हो रहे हैं, जो दुनिया को भयावह अपराध की ओर धकेलने का काम करेंगे। आज लगभग 4.5 अरब लोगों की इंटरनेट तक पहुंच है और हर तीन इंटरनेट उपभोक्ताओं में से एक 18 वर्ष से कम उम्र का है। इसलिए इस समस्या से निपटने के लिए समन्वित कार्रवाई करने की जरूरत है, जिसके लिए श्री कैलाश सत्यार्थी वैश्विक नेताओं को कानूनी रूप से बाध्यकारी संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हेतु गोलबंद करने का लगातार प्रयास कर रहे हैं। इस काम को अंजाम देने में यदि श्री सत्यार्थी सफल हो जाते हैं, तो दुनियाभर की करोड़ों मासूम लड़कियों को इसका लाभ होगा।
बाल मजदूरी के दलदल में लड़के और लड़कियाँ दोनों को समान रूप से धंसाया जाता है। लेकिन इस बात को हमें नहीं भूलना चाहिए कि वहां लड़कियों को तब दोहरा अभिशाप से गुजरना पड़ता है, जब उनका यौन शोषण होता है। इस तरह से श्री सत्यार्थी लड़कियों को दोहरे-तिहरे शोषण से मुक्त करते रहे हैं। ऐसे में हम कह सकते हैं कि श्री सत्यार्थी महिला शिक्षा, अधिकार, सुरक्षा और गरिमा की हिफाजत के लिए अपना अविस्मरणीय योगदान दे रहे हैं।
लेखक हिन्दी के चर्चित युवा कवि-पत्रकार हैं|
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