शख्सियत

महात्मा गाँधी और स्वराज का सपना

 

साधारण से असाधारण बन जाने का नाम है मोहनदास करमचंद गाँधी। प्रयोग के नए साधन तलाशने का नाम है गाँधी। कर्म पथ को जीवन का ध्येय बनाने का नाम है गाँधी। समरसता, जीवन दर्शन तथा स्वाधीनता जिनका स्वप्न था वे हैं गाँधी। हमारे देश में राजनेताओं की भरमार है पर गाँधी जैसा राजनीतिक कुशल नायक मिलना असंभव दिखता है। गाँधी नाम की सार्थकता उनके कर्मनिष्ठ जीवन में झलकती है। वकालत से समाज सेवा की शुरुआत करने वाले गाँधी एक दिन भारत की आजादी के नायक बनकर भरते हैं। कर्म के प्रति सच्ची निष्ठा उन्हें भारत तथा भारत के बाहर लाखों का प्रेरणा स्रोत बना देती है। गाँधी आजीवन अथक योद्धा की तरह संघर्षरत रहे कभी झुके नहीं। लगातार 30 वर्षों तक देश की स्वाधीनता आन्दोलन में खुद को झोंकते रहे यही कारण है वह राजनेता से संत बनते हैं और संत से महात्मा।

जीवन में गाँधी कई आन्दोलन को दिशा देने के साथ-साथ उसे नियंत्रित भी करते हैं चौरा चौरी के हिंसक कांड को तुरंत वापस लेना उनकी कौशलता व समझ बूझ का परिचायक है। आजीवन गाँधी सत्य, अहिंसा और ब्रहमचर्य में विश्वास रखें। इसी पथ पर चलते हुए उन्होंने अंग्रेजों के विशाल साम्राज्य को ध्वस्त कर आजादी का शंखनाद किया। एक सजग और कुशल योद्धा की तरह संपूर्ण भारत का भ्रमण कर लोगों को स्वाधीनता आन्दोलन के लिए तैयार करते रहे। जनमानस के चेतना को उकसाते हैं आन्दोलन में भाग लेने के लिए। हिंदुस्तान के बड़े भूभाग पर लोगों का गोल बंद होना शुरु होता है। गाँधी के अथक प्रयास से लोगों में स्वाधीनता की चिंगारी भड़क उठती है। यही तो समय है जब गाँधी विश्व पटल पर हिंदुस्तान का नायक बनकर उभरते हैं।

भारतीय समाज का ऐसा कोई पहलू नहीं है जो गाँधी के दृष्टि से ओझल हो सके। किसान आन्दोलन, भूखे को भोजन, गृहस्थ जीवन, स्वदेशी वस्तु का उपयोग, विदेशी वस्त्रों के होली जलाना, विकल्प के रूप में चरखा द्वारा खादी का वस्त्र तैयार करना आदी तमाम ऐसी योजनाएं थी सामाजिक परिवर्तन के साथ-साथ राजनैतिक व आर्थिक परिवर्तन का माद्दा रखती थी। इन सब बातों को गाँधी अच्छी तरह समझते थे। राजनेता आते-जाते हैं शासक बन अपना रोब का प्रदर्शन करते हैं पर कुछ दिनों बाद लोक के स्मृति से गायब हो जाते हैं लेकिन गाँधी के साथ ऐसा नहीं हुआ। भारत तथा भारत के बाहर भी शांति, सद्भाव, प्रेम अहिंसा और आजादी का प्रसंग आते ही गाँधी स्मृति हो उठते हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण नेल्सन मंडेला के रूप में देखा जा सकता है। मंडेला गाँधी के बारे में कहते हैं “गाँधी मेरे आदर्श हैं ” वही माउंट बेटन ने “वन मैन आर्मी” कहा था गाँधी को।

गाँधी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर साहित्यकारों ने उनके जीवन दर्शन, प्रभाव, संभावनाओं तथा नेतृत्व पर कलम चलाए। इनमें मैथिली शरण गुप्त, सियाराम शरण गुप्त, दिनकर, सोहनलाल द्विवेदी, भवानी प्रसाद मिश्र, प्रेमचंद, उदयप्रकाश जैसे महारथियों ने साहित्य में गाँधी की उपस्थिति दर्ज की। पूना पैक्ट के बाद आश्रम में हरिजन परिवार की बेटी लक्ष्मी को गाँधी जी ने दतक पुत्री के रूप में गोद लिया तो कहानीकार प्रेमचंद जी ने अपने पत्नी शिवरानी से कहा था – “जो मेहतर की लड़की को अपनी थाली में खिलाता है, उस महात्मा गाँधी से बढ़कर और दूसरा ईश्वर कौन होगा।” वही पंत, गाँधी के जीवन दर्शन एवं राजनीतिक दर्शन से प्रभावित होकर लिखते हैं –

 “तुम मांस हीन तुम रक्तहीन, हे अस्थिशेष, तुम अस्थिहीन।

 तुम शूद्र बुद्ध आत्मा केवल, हे चीर पुराण हे चीर नवीन।।”1

अपने समय से संवाद और साक्षात्कार करते हुए हर सजग एवम सचेत बुद्धिजीवी ने अपने तरीके से देश की स्वाधीनता का स्वप्न देखा होगा। भगत सिंह, सुभाष, नेहरु तथा गाँधी ने भी कुछ ऐसे ही भावी भारत का स्वप्न देखा होगा। भारत में हर वर्ग तबका, समुदाय अपनी जगह लड़ाई लड़ रहा था। गाँधी भी उनमें से एक थे। जो कांग्रेस के कार्यक्रमों के माध्यम से स्वतंत्रता संघर्ष के लिए लोगों को एकजुट कर रहे थे। वही पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से भावी भारत का खाँचा खींच रहे थे। उन्होंने यंग इंडिया के 07 अगस्त 1924 के अंक में स्वराज का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है -” स्वराज्य का अर्थ है सरकारी नियंत्रण से मुक्त होने के लिए लगातार प्रयत्न करना फिर वह नियंत्रण विदेशी सरकार का हो या स्वदेशी सरकार का यदि स्वराज्य हो जाने पर लोग अपने जीवन की हर छोटी बड़ी बात के नियमन के लिए सरकार का मुंह ताकना शुरु कर दें तो वह स्वराज्य सरकार किसी काम की नहीं होगी।”2

गाँधी और स्वराज

गाँधी ने जिस भारत की आधारशिला रखी थी उसके स्वरुप की कल्पना करते हुए उन्होंने 10 सितंबर 1932 की यंग इंडिया के अंक में लिखा है –

” मैं ऐसे भारत के लिए कोशिश करूंगा, जिससे गरीब से गरीब लोग भी यह महसूस करेंगे कि वह उनका देश है जिसके निर्माण में उनकी आवाज का महत्व है। मैं ऐसे भारत के लिए कोशिश करूंगा, जिससे ऊंचे और नीचे वर्गों का भेद नहीं होगा और जिसमें विविध संप्रदाय में पूरा मेल जोल होगा। ऐसे भारत में अस्पृश्यता, शराब या और दूसरी नशीली चीजों के अभिशाप के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता। उसमें स्त्रियों को वही अधिकार होंगे जो पुरुषों को, चूंकि शेष सारी दुनिया के साथ हमारा संबंध शांति का होगा यानी ना तो हम किसी का शोषण करेंगे और न किसी के द्वारा शोषण होने देंगे इसलिए हमारी सेना छोटी से छोटी होगी। ऐसे सब हितों का जिनका करोड़ों मूक लोगों के हितो से कोई विरोध नहीं है। पूरा सम्मान किया जाएगा फिर वें देशी हो या विदेशी। अपने लिए तो मैं यह भी कह सकता हूं कि मैं देशी और विदेशी के फ़र्क से नफरत करता हूं। यह मेरे सपनों का भारत… इसे भिन्न किसी चीज से मुझे संतोष नहीं होगा।”3

 उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने वर्तमान पर दृष्टिपात करने से हमें निराशा ही हाथ लगेगी। इसके प्रमुख कारण समाज में व्याप्त वर्गों की खाई लगती है जो शायद अभी खत्म हो मुश्किल मालूम पड़ता है।

गाँधीजी बार-बार कहा करते थे कि मनुष्य का जन्म धर्म की साधना के लिए होता है और स्वंय अपने जीवन का उद्देश्य वे धर्म की उपासना मानते थे। उन्होंने लिखा है-

“मेरा उद्देश्य धार्मिक है, किंतु मानवता से एकाकार हुए बिना मैं धर्म पालन का मार्ग नहीं देखता। इसी कार्य के लिए मैंने राजनीति का क्षेत्र चुना है, क्योंकि इस क्षेत्र में मनुष्य से एकाकार होने की संभावना है। मनुष्य की सारी चेष्टाएं, इसकी सारी प्रवृतियां एक है। समाज और राजनीति से धर्म अलग रखा जाए, यह संभव नहीं है। मनुष्य में जो क्रियाशीलता है वही उसका धर्म भी है। जो धर्म मनुष्य के दैनिक कार्य से अलग होता है, उससे मेरा परिचय नहीं है।”4

गाँधी मार्ग

‘ग्राम स्वराज’ गाँधी की परिकल्पना से उपजी थी। गाँधीजी गाँव को भारत की आत्मा मानते थे। इसलिए गाँव को ‘ ग्राम गणराज्य’ के रूप में देखते थे। ग्राम स्वराज के संबंध में उनका मानना था –

 ” मेरा ग्राम स्वराज का विचार है कि यह पूर्ण गणराज्य होगा जो अपने मूलभूत आवश्यकताओं के लिए अपने पड़ोसियों से स्वतंत्र होगा और फिर भी वह एक दूसरे पर आश्रित रहेंगे। गाँव का प्रशासन पांच व्यक्तियों द्वारा चलाए जाएगा जिसका निर्वाचन गाँव का लोग 1 वर्ष के लिए करेंगे। यह पंचायत ही वहाँ की व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका होंगी।… यहाँ व्यक्ति ही अपनी सरकार का निर्माता होगा।”5

दरअसल रचनात्मकता से सामूहिकता का विकास होता है और सामूहिक या सामुदायिक जीवन मनुष्य का नैसर्गिक स्वभाव है। रचनात्मकता मनुष्य की सोच को सकारात्मक व जिंदगी को बेहतर बनाती है, कर्तव्य बोध जगाती है। इसके लिए शिक्षित होना बहुत आवश्यक है। गाँधी इसी जरुरत के भरपाई के लिए बुनियादी शिक्षा का कॉन्सेप्ट लेकर आते हैं। जिसका उद्देश्य धर्मपूर्ण आचरण, आत्मज्ञान के लिए शिक्षा – सा विद्या या विमुक्त्ये और नैतिक मूल्यों व सदविवेक का ज्ञान देना था। लेकिन अंग्रेजों द्वारा जो अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था की नींव रखी गई उसका मुख्य उद्देश्य था अंग्रेजी मूल्यों, मान्यताओं और सोच पर आधारित तथा अपनी जड़ से कटा हुआ मानसिक रुप से गुलाम पीढ़ी को तैयार करना।

1835 ईस्वी में मैंकाले लिखता है -” हमारा उद्देश्य शिक्षा के माध्यम से ऐसे लोगों को तैयार करना है जो खून और रंग से तो हिंदुस्तानी हो लेकिन भाषा, भाव, रुचि और सोचे से अंग्रेज हो।”

मैंकाले के इस कथन के कुछ वषों बाद ही प्रसिद्ध इतिहासकार लेखक एच एच विलियम्स ने इंग्लैंड की पार्लियामेंट कमेटी के सामने कहा-

 “हमने भारत में अंग्रेजी पढ़े लिखे लोगों की एक जाति बना दी है, जिन्हें अपने देशवासियों के साथ या तो कोई सहानुभूति है ही नहीं और है भी तो बहुत कम।”

गाँधी जी सत्य अहिंसा

इसलिए गाँधीजी हिंद स्वराज में लिखते हैं मैंकाले ने जो शिक्षा की बुनियाद डाली, वह सचमुच गुलामी की बुनियाद थी। इसलिए गाँधी इस गुलामी की शिक्षा को बदल कर ‘नई तालीम’ की शुरुआत करते हैं ताकि भारत की आने वाली पीढ़ी स्वराज की अवधारणा को समझ सके। आत्मनिर्भर बन सके, रोजी रोजगार हेतू किसी पर निर्भर ना होना पड़े। इसके लिए गाँधी ने ‘हिंदुस्तानी तालीमि संघ’ की स्थापना भी की। नई तालीम के उद्देश को रेखांकित करते हुए गाँधी लिखते हैं- 

“यह तालीम बालक के मन और शरीर दोनों का विकास करती है। बालक को अपने वतन (गाँव समाज) के साथ जोड़ती है उसे देश और अपने भविष्य का गौरवपूर्ण चित्र दिखाती है और भावी हिंदुस्तान का निर्माण करने में बालक- बालिका अपने स्कूल जाने के दिन से ही हाथ बढ़ाने लगें, इसका इंतजाम करती है।”6 अभी हाल ही में यूनिसेफ ने दुनिया की सभी प्रमुख शिक्षा व्यवस्था का अध्ययन करने के बाद माना है कि ‘ नई तालीम’ बुनियादी शिक्षा बालकों के सम्यक विकास की दृष्टि से सबसे उत्तम है।

निष्कर्ष: इस प्रकार हम देखते हैं की गाँधी जी का संपूर्ण जीवन संघर्ष, उनका व्यक्तित्व, उनके स्वराज्य तथा ग्राम स्वराज की संकल्पना और नई तालीम व्यवस्था आधुनिक भारत की आधारशिला रखती है।आज मानव जीवन में यांत्रिकता इस कदर हावी है की हर तरफ भागम दौड़ मचा हुआ है। ऐसे में गाँधी के जीवन मूल्य, सत्य, अहिंसा, प्रेम, शांति, सयंम, सादगी, सद्भाव, सहकार ही है जो राहत प्रदान करती है। महात्मा गाँधी कि महत्त्व को सीमांत गाँधी रेखांकित करते हुए कहते हैं – “महात्मा गाँधी देश और दुनिया को अंधेरे (विनाश) से उबारने वाले रोशनी की इकलौती किरण थे

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सन्दर्भ ग्रन्थ सूची:-

1बापू के प्रति, सुमित्रा नंदन पंत, पल्लव, भारती भंडार लीडर प्रेस इलाहबाद, 1936

2.यंग इंडिया पत्रिका साप्ताहिक, गाँधी, 7 अगस्त 1924

3.यंग इंडिया पत्रिका साप्ताहिक, गाँधी, 10 सितंबर 1932

4.फिलोसॉफी ऑफ गाँधी, धीरेंद्र मोहन दत्ता, यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन प्रेस, जनवरी, 1953

5.हिन्द स्वराज, गाँधी, प्रभात प्रकाशन, 2010

6.हिंदुस्तानी त्रैमासिक, अक्टूबर दिसंबर अंक, हिंदुस्तानी अकेडमी, प्रयागराज

 

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किशोर कुमार

लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग में शोधार्थी हैं। सम्पर्क +919097577002, kishore.bhu95@gmail.com
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