जननायक कर्पूरी ठाकुर के जीवन मूल्य
स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों से जीवन के आखिरी क्षण तक समता मूलक समाज के निर्माण के लिए संघर्रत रहे। दर्शन को कहना और बोलना आसान होता है परन्तु दर्शन के संकल्प के साथ जीना एक कठोर साधना होती है जिसमें निरन्तर अपने आप से, अपने परिवार से और समाज से संघर्ष करना होता है। इसलिए महात्मा गाँधी कहते थे कि सत्याग्रह की शुरूआत सरकार से नहीं वरन अपने आप से होती है। स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर न केवल समाजवादी विचारधारा के ज्ञाता और भाष्यकार थे वे इन विचारों के लिए जीते भी थे और इस प्रयोग में उन्हें कांटों भरा जीवन भी जीना होता था।
समाजवादी विचारधारा समता पर आधारित विचारधारा है जिसमें राष्ट्र और समाज के सुखों और दुखों का मिलकर बंटवारा करना होता है। समाजवादी विचारधारा श्रेणी-भेद को मिटाना चाहती है और इसलिए एक सच्चे समाजवादी को देश का आम एवं गरीब नागरिक जैसा जीवन जीना होता है। मार्क्सवादी शब्दावली में जिसे कहा जाये अपने आपको वर्ग विहीन बनाने का कार्य कठिन होता है। आजकल हमारे देश के राजनेताओं के चेहरे, बोली, भाषा, और भूषा, भवन और भौतिक सुविधाओं में आम आदमी से अलगाव स्पष्ट नज़र आता है। 20वीं सदी के आखिरी दशक और 21वीं सदी के शुरूआती दौर के राजनेताओं की भूषा, सफारी और जीन्स वाली है जबकि देश का आम आदमी का पहनावा लुंगी, धोती और पजामा कुर्ता है। ऐसे राजनेताओं की बोल-चाल की भाषा विदेशी भाषा होती है, वो अपने संतानों को अँग्रेजी स्कूलों में पढ़ाते हैं और पूरा प्रयास करते हैं कि उन्हें विदेशों में जाकर पढ़ने का मौका मिले। विदेशों में छात्रवृत्तियाँ और विदेशों में नौकरियाँ मिले। उनकी जीवन शैली ठाट-वाट और विलासिता पूर्ण होती है जो राजा महाराजाओं से कम नहीं होती।
आप असली भारत की कल्पना न कर सकते, क्योंकि उनके चेहरों की बनावट ही अलग होती है। जबकि समाजवादी विचारधारा के राजनेता के चेहरे में ही देश के आम आदमी को देखा जा सकता है। गाँधी देश के साथ कितने एकाकार थे वह गाँधी के चेहरे, वेश-भूषा और जीवन शैली से स्पष्ट हो जाता था। डॉ. लोहिया में उनकी बोली से लेकर भूषा तक भारतीयता और आम आदमी नज़र आता था। इसी क्रम में स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर थे जिन्हें देखकर, जिनसे मिलकर, आम आदमी को अपनापन महसूस होता था। नेता कोई रोब-दाब और भय की चीज नहीं, नेता कोई खतरनाक जीव जन्तु नहीं बल्कि अपने ही बीच में से ज्ञान और विचारों की रोशनी को लेकर चलने वाला एक व्यक्ति है, यह स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर को देखकर महसूस होता था।
बिहार जैसे प्रदेश के मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष के पद पर रहने के बावजूद भी उनमें, उनके रहन सहन में और जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आया था। मैं अनेकों अपने समव्यस्क राजनेताओं को जानता हूँ जिनके दिल्ली के घरों में आज दस-दस एयर कंडीशनर चल रहे हैं और एक एयर कंडीशनर का मतलब है, औसतन 400-500 रूपये रोज का बिजली का खर्च होता है। एक वर्ष में अकेले घर पर एयरकंडीशनर पर लगभग 15 लाख रूपया खर्च करने वाले समाजवादी राजनेता आज दिल्ली जैसे शहर में एक नहीं अनेकों मिल जाएँगे और उसमें भी बिहार जैसे गरीब प्रदेश से जहाँ आम आदमी को बिजली के दर्शन ही देव दर्शन के समान है, उस प्रदेश से अनेकों समाजवादी विचारधारा के राजनीति के कार्यकर्ता कुर्सियों पर पहुंचकर कुर्सीमय हो चुके हैं। समाज बदलने का संकल्प लेकर लच्छेदार भाषण, बड़े-बड़े वायदे और पद लाभग्रस्त ये राजनेता आज समाज को बदलने के बजाय खुद को बदल चुके हैं। परन्तु स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर उन लोगों में से एक थे जिन्होंने सारा जीवन समाज को बदलने का प्रयास किया। भले ही समाज न बदल सका परन्तु उन्होंने अपने आप को नहीं बदला। राजनीति की खरीद फरोख्त की दुनिया में उन्होंने अपने आप को मंडी का बिकाऊ माल नहीं बनने दिया। मृत्यु के समय तक स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर अपने मकान के ऊपर के दहलान में एक पंखे के नीचे सोते रहे। उनके तख्त के आसपास मिलने वाले गरीब-गुरबा लोग और कुछ राशन का सामान रहता रहा। उनके लोगों ने कर्पूरी जी की सादगी का मजाक भी उड़ाया। उन्हें कपटी ठाकुर से लेकर अनेकों प्रकार की गालियाँ भी दी परन्तु कर्पूरी ठाकुर इन सबसे प्रभावित हुए बगैर अपने पथ पर आगे बढ़ते रहे।
आज देश में ज्ञानवान लोग अहंकार से युक्त होते हैं और देश के आम आदमी का उपहास करते हैं। परन्तु कर्पूरी जी को अहंकार ने दूर-दूर तक स्पर्श ही नहीं किया था। एक गरीब और अनपढ़ व्यक्ति से उनका संवाद जितना प्रभावी था उतना ही बड़े-बड़े बुद्धिजीवियों और प्राचार्यों के साथ। उनकी विनम्रता विश्वविद्यालय के व्याख्यान के शोध-ग्रन्थों और अँग्रेजी की बड़ी-बड़ी किताबों से अर्जित नहीं की गयी थी, बल्कि बिहार के गरीब की झोपड़ी, खेत और खलियान की प्रयोगशाला में काम करके अपने अनुभवों से, उन्होंने ज्ञान अर्जित किया था।
वे महात्मा गाँधी के अन्तिम उपदेशानुसार समाज के सबसे कमजोर व्यक्ति या आखिरी व्यक्ति के हक के लिए लड़ते रहे। वे सारा जीवन अभावों से जूझे, अभावों में रहे और अभावों को ही उन्होंने अपना निकटम सहयोगी बना लिया। बिहार जैसे सामन्तशाही और जमींदारों से ग्रस्त समाज में उन्होंने पिछड़े वर्ग को भी जगाया और साथ-साथ उन कमजोर और वंचित जातियों की पैरवी भी की जिन्हें पिछड़े वर्ग के ताकतवर लोगों ने भी उपेक्षित कर दिया था। उन्होंने मुंगेरी लाल आयोग की रपट के आधार पर अति पिछड़े वर्ग के लोगों को पृथक आरक्षण देने का प्रावधान किया और सही मायनों में इस प्रकार सर्वहारा के साथ न्याय करने की प्रक्रिया शुरू की। बड़ी जातियों से छीनकर मध्य जातियों को हिस्सेदारी मिले, इतने पर ही पूर्ण विराम लगाने से सामाजिक न्याय सम्भव नहीं है। वास्तविक न्याय के लिए उस भूमिहीन हाथ के कौशल वाली कमजोर जाति के लोगों को हिस्सेदारी दिलानी होगी जो समाज में सम्पूर्णतः वंचित और उपेक्षित है।
जिस प्रकार सैंकड़ों वर्षों के इतिहास में अग्रणी रही जातियों से हिस्सेदारी लेने के लिए पिछड़े वर्ग के लिए विशेष अवसर जरूरी है, उसी प्रकार पिछड़े वर्ग के, ताकतवर समूह से हिस्सेदारी लेने के लिए अति पिछड़े वर्ग के लोगों को भी विशेष अवसर जरूरी है, यह उनकी सोच थी। आरक्षण और विशेष अवसर मिले इस सोच के साथ लोगों को समाज परिवर्तन और क्रान्ति के लिए तैयार करना है। इस दर्शन के साथ उन्होंने रणनीति बनायी थी। ज्ञान और कर्म का संगम स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर थे तप और तपस्या के अग्नि कुण्ड में अपने आपको सतत तपाकर चमकने का स्वर्णिम व्यक्तित्व कर्पूरी ठाकुर थे। नख से शिख तक कर्पूरी जी सम्पूर्ण भारतीय थे, जिनमें भारतीय संस्कृति और सभ्यता परिलक्षित होती थी। जब देश में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का शिकंजा निरन्तर कसता चला जा रहा है आज देश आर्थिक रूप से गुलाम हो चुका है तथा अप्रत्यक्ष रूप से देश, राजनैतिक रूप से गुलामी का शिकार हो रहा है, तब कर्पूरी जी की याद और आवश्यकता का महत्त्व बढ़ जाता है।
भारतीय संस्कृति और सभ्यता की आजादी के इस संघर्ष के लिए पूरे जी जान से लड़ना उन सभी का दायित्व है जो मनसा-वाचा कर्म से कर्पूरी जी को मानते हैं। बिहार के सत्ताधारी आज भ्रष्टाचार के आरोपों में जेलों को सुशोभित कर रहे हैं। वे अपार संपदा के मालिक हैं। बिहार गरीब है पर बिहार के नेता आज अरबपति और अमीर है। परन्तु बिहार के एक मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर भी थे जिनके जीवन काल में घर का पता भी नहीं बदला। कर्पूरी जी न केवल परिवारवाद के वचन से विरोधी थे बल्कि कर्म से भी विरोधी थे। उन्होंने अपने जीवन काल में कभी अपने परिवार के लोगों को राजनैतिक लाभ या ताकत पहुँचाने का प्रयास नहीं किया। बिहार के कितने ऐसे राजनेता है जिनके बहू-बेटों से लेकर बच्चों और परिजनों तक को राजनैतिक दलों के ऊपर थोप दिया गया हैं। ऐसे राजनेता लोकतान्त्रिक व्यवस्था को समाप्त कर जाने अनजाने सामंतवाद को लाने का निमित्त बन रहे हैं। और राजतन्त्रीय व्यवस्था को सही ठहरा रहे हैं। परन्तु कर्पूरी ठाकुर ने गाँधी, लोहिया और जयप्रकाश की परम्परा की मिशाल को कायम रखकर अपना जीवन जिया।
मैं उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ और बिहार के समाजवादी कार्यकर्ताओं, नौजवानों, किसानों, मजदूरों से और आम जनता से अपील करता हूँ कि कर्पूरी ठाकुर के जीवन को आदर्श, प्रकाश पुंज मानकर संगठित हो, खड़े हो तथा देश व दुनिया की पूँजीशाही को उखाड़ फेंककर, समता के समाज की रचना के लिए आगे आये।