शख्सियत

महानायक एवं महान शिक्षाविद ज्योतिबा फुले

 

  • विलक्षण रविदास

 

आज आधुनिक भारत के महान बौद्धिक एवं उच्च कोटि के सामाजिक वैज्ञानिक, भारत में प्रथम कन्या विद्यालय की स्थापना करने वाले महापुरुष, विधवा विवाह के लिए लगातार प्रयास करने वाले, अनाथ बच्चों के लिए बाल- हत्या प्रतिषेध गृह की स्थापना करने वाले, मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों को 3500 वर्षों की ब्राह्मणवादी व्यवस्था की गुलामी से मुक्ति संघर्ष की शुरुआत करने वाले,अनेक पुस्तकों के रचयिता एवं आधुनिक भारत की नींव रखने वाले महानायक राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले की 194 वीं जयन्ती है। इस पुनीत अवसर पर भारत के सभी लोगों, बहुजन समाज के लोगों, महिलाओं एवं युवा युवतियों की ओर से हम अपने महानायक राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि और शत शत नमन अर्पित करते हैं।

समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले ...
हमारे महानायक ज्योतिबा फुले का जन्म 11अप्रैल 1827 ई में महाराष्ट्र के सातारा जिले के खानवाडी नामक गांव में हुआ था। उनके पिता जी का नाम गोविंद राव फुले और माता जी का नाम चिमणाबाई था। उनके दादा जी का नाम शेतिबा फुले था। उनके जन्म के केवल 9 माह के बाद ही माता चिमणाबाई चल बसीं। पिता गोविंद राव फुले और मौसेरी बहन सगुणाबाई ने दोनों भाइयों राजाराम और ज्योतिबा फुले का पालन -पोषण किया। सगुणाबाई के प्रयास से 1833 ई में ईसाई मिशनरी स्कूल में ज्योतिबा फुले का नामांकन कराया गया जहां वे सिर्फ दो वर्ष तक ही शिक्षा प्राप्त कर सके। ब्राह्मणों और समाज के बढ़ते विरोध के कारण गोविंद राव ने विवश हो कर उनकी शिक्षा रोक दी और उन्हें अपने फूलों की खेती के कार्य में लगा दिया।

जोतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले का ...
1840 ई में ज्योतिबा फुले की शादी 09वर्ष की सावित्रीबाई के साथ कर दी गयी। खेती के कार्य करते हुए भी ज्योतिबा हमेशा पढ़ते रहते थे।उनकी शिक्षा के प्रति गहरी रुचि देख कर सगुणाबाई और अपने मित्र मुंशी गफ्फार बेग एवं ईसाई धर्म गुरु लिजिट साहब के समझाने पर गोविन्द राव ने पुनः1843 ई में ज्योतिबा फुले का नामांकन ईसाई मिशनरी स्कूल में करा दिया।वहाँ से उन्होंने दिन- रात मेहनत कर 1847 ई में प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा पास की।

Hindi) जोतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले ...
1847ई में उन्होंने अपने मित्र सदाशिव के आमन्त्रण पर अहमदनगर की यात्रा की जहाँ उन्होंने अमेरिकन मिशनरी कन्या विद्यालय में जाकर शिक्षिका मिस फर्रार से भेंट की और विद्यालय की स्थिति की जानकारी हासिल की। वहाँ की व्यवस्था से वे काफी सन्तुष्ट और प्रभावित हुए । पुणे लौट कर उन्होंने 01 जनवरी, 1848 ई में प्रथम कन्या विद्यालय की स्थापना की जो किसी भारतीय के द्वारा स्थापित प्रथम विद्यालय था। इस विद्यालय में प्रथम छात्रा के रूप में उन्होंने अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले का नामांकन कराया और फिर अन्य पाँच लड़कियों का नामांकन कराया गया जिसमें चार ब्राह्मण और एक मुस्लिम लड़की फातिमा बेग थीं। इस विद्यालय की स्थापना से 3500 वर्षों से महिलाओं की शिक्षा पर लगी ब्राह्मणवादी धार्मिक -सामाजिक प्रतिबन्ध की जंजीरों को तोड़ दी गयी थी। इस पर कट्टरपन्थी ब्राह्मणों ने विरोध शुरू किया और समाज के लोगों के बीच दुष्प्रचार फैलाना शुरू कर दिया कि लड़कियों को शिक्षा देकर धर्म विरोधी कार्य किया जा रहा है। उनके पिता गोविंद राव फुले को समाज से बहिष्कार कर देने की धमकियाँ दी जाने लगी।अन्त में विवश हो कर पिता ने दोनों पति-पत्नी को घर से बाहर निकाल दिया, क्योंकि ज्योतिबा फुले स्कूल बन्द करने के लिए तैयार नहीं हुए।

jyotiba phule death anniversary social reform movement ...
महान शिक्षाविद ज्योतिबा फुले ने अपार कष्ट सहते हुए अछूत बच्चे और बच्चियों की शिक्षा के लिए भी उसी वर्ष एक विद्यालय की स्थापना की । उन्होंने 1856ई तक में 18 विद्यालयों की स्थापना की थीं। उनके इस प्रयास के लिए अँग्रेज सरकार ने 1852 ई और1888 ई में उन्हें सम्मानित किया और जनसभा में उन्हें महात्मा की उपाधि से विभूषित किया।

ज्योतिबा फुले ने क्यों बनाया था सत्य ...
वे एक महान साहित्यकार थे। उन्होंने समाज परिवर्तन के लिए अनेक पुस्तकों की रचनाएँ की थीं। ब्राह्मणवादी सामाजिक -सांस्कृतिक व्यवस्था को बदलने और समता मूलक भाईचारा का भारतीय समाज बनाने के लिए उन्होंने 1855 ई में तृतीय रत्न नामक नाटक,1865 ई में जातिभेद विवेकसार,1869 ई में शिवाजी महाराज के पंवाडे, ब्राह्मण शिक्षकों की चालाकी और किसानों का कोड़ा,1873 ई में प्रसिद्ध पुस्तक गुलामगिरी, अछूतों की कैफियत, इशारा,शतधर्म सार, आदि ग्रन्थों एवं पत्रिकाओं की उन्होंने रचनाएँ की और उसे प्रकाशित की थीं।

फोटो फीचर : सत्यशोधक समाज के अभिनव ...उन्होंने सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर 1873 ई में सत्यशोधक समाज नामक संगठन की स्थापना की और इसके माध्यम से उन्होंने ऊंच-नीच, छुआछूत, लिंग विभेद,सती प्रथा, विधवा विवाह पर प्रतिबन्ध, कन्या हत्या आदि के विरूद्ध जीवन भर संघर्ष का नेतृत्व किया। उनके बौद्धिक कार्यों और संघर्षों के परिणामस्वरूप ही लोकतांत्रिक भारत की आधारशिला रखी जा सकी।1882ई में उन्होंने शिक्षा नीति के निर्माण के लिए गठित हंटर कमीशन के समक्ष ज्ञापन सौंपकर मांगें रखीं कि —12 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चे-बच्चियों की अनिवार्य एवं निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाए, सभी अछूत एवं पिछड़े वर्ग के बच्चे एवं बच्चियों के लिए शिक्षा की विशेष व्यवस्था की जाए, विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति में सभी जातियों एवं वर्गों को प्रतिनिधित्व देकर शामिल किया जाए तथा शिक्षकों को बेहतर वेतन दिया जाए ताकि शिक्षा की व्यवस्था अच्छी बनाया जा सके।
जुलाई,1888 ई में वे बीमार पड़ गये और उसी समय उनके दाहिने हिस्से में पक्षाघात हो गया जिसके कारण वे फिर उठ नहीं पाये। 28नवम्बर, 1890 की रात 2.20 बजे हजारों लोगों की भीड़ के बीच उनका परिनिर्वाण हुआ।
आइये,हम अपने महानायक, महान शिक्षाविद और वैज्ञानिक विचारों के प्रकाशस्तम्भ, आधुनिक भारत के निर्माता, राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले के प्रति हार्दिक पुष्पांजलि अर्पित करते हैं।
जय फुले । जय भीम ।। जय भारत।।।

लेखक तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय के अम्बेडकर विचार विभाग के अध्यक्ष तथा बिहार फुले अम्बेडकर युवा मंच और बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन, बिहार के संरक्षक हैं।
सम्पर्क- +919199210785, vilakshanravidas@rediffmail.com

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लोक चेतना का राष्ट्रीय मासिक सम्पादक- किशन कालजयी
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