सिनेमा

उम्मीदों के ‘कामयाब’ किस्से

 

{Featured In IMDb Critics Reviews}

 

निर्देशक – हार्दिक मेहता
कास्ट – संजय मिश्रा , दीपक डोबरियाल , सारिका सिंह , हार्दिक मेहता, ईशा तलवार, आकाशदीप अरोड़ा , विजु खोटे आदि

कहानी है एक ऐसे कैरेक्टर आर्टिस्ट की जिसने अपने फिल्मी कैरियर में एक कम पांच सौ फिल्में की है। सुधीर नाम का यह आदमी एक फ्लैट में आराम से रह रहा है। एक दिन उसका इंटरव्यू लेने लड़की आती है तो उसे पता चलता है कि उसने इतनी सारी फिल्मों में बतौर कैरेक्टर आर्टिस्ट काम किया है। जिस आर्टिस्ट के फ्लैट में इंटरव्यू के लिए सवाल किए जा रहे हैं उन सवालों से उसे उकताहट सी होती है। और ना ही उन्हें अपने पुराने निभाए किरदारों में दिलचस्पी नजर आती है और ना ही पत्रकार के सवालों में। अब जब उसी इंटरव्यू लेने वाली सिने पत्रकार से उसे पता चलता है कि आई एम डी बी जो पूरी दुनिया के कलाकारों का डाटा रखती है उसमें दर्ज है उसके नाम 499 फिल्में तो वह उनमें एक और जोड़कर 500 करना चाहता है। और चाहता है कि उसका नाम भी इतिहास में लिखा जाए।

अब वह शेव करके विग लगाकर पूरे आत्म विश्वास के साथ दोबारा फिल्मों की दुनिया में कदम रखता है। उसके इस सफर में उसका साथ देता है साइड एक्टर से कास्टिंग डाइरेक्टर बने गुलाटी यानी दीपक डोबरियाल। अब उत्साह में भरे सुधीर का सफर कितना आसान या मुश्किल होगा या क्या वह इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा पाएगा? इसी के इर्द गिर्द फिल्म की पूरी कहानी घूमती है।

हमारे भारतीय सिनेमा में शुरू से ही हीरो, हीरोइन और विलेन के साथ स्पोर्टिंग कास्ट फ़िल्म की कहानी को आगे बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती आई है। कभी एक जिम्मेदार डॉक्टर तो कभी क्लाइमेक्स में आने वाला इंस्पेक्टर, कभी लड़की का अमीर बाप तो कभी रामु काका तो कभी कोई पड़ोसी। इन सभी ने सिनेमा की हर कहानी को आगे बढ़ाया है। ‘हर किस्से के हिस्से : कामयाब’ फ़िल्म उन सभी कैरेक्टर आर्टिस्टों के फिल्मी योगदान को खूबसूरती से याद करने का तरीका है। फ़िल्म की कहानी शुरू होने से पहले कहानी के नायक के बारे में परिचय दिया जाता है जिसमें हमें ‘ईमानदारी’ (1978), ‘एक फ़रिश्ता’ (1989) , ‘कब्रिस्तान का चौकीदार’ (1999) जैसी फिल्मों का जिक्र दिखाया जाता है।

हम आम लोग सोचते हैं कि मुंबई शहर में रहने वाले सितारों की ज़िंदगी तो जगमगाती हुई रोशनियों से भरी हुई है। बल्कि उन सितारों की फेहरिस्त में कुछ लोग आलू की तरह भी होते हैं जो हर तरह की सब्जी में फिट हो जाते हैं। कॉमेडी हो, थ्रिलर हो, रोमांस हो या फिर चाहे बच्चन हो, कपूर हो या कोई खान हर जगह ये किसी न किसी तरह से फिट कर लिए जाते हैं। जबकि असलियत तो यह है कि दर्शकों के दिलों में तो हमेशा से हीरो ही बसता आया है इनकी कोई पहचान है ही नहीं। दुनिया भर में जितने कलाकार हुए हैं अब तक उनका डाटा रखने वाली वेबसाइट में ऐसे कई सिनेमाई कैरेक्टर्स के भी नाम दर्ज हैं जिन्होंने दुनिया में एक रिकॉर्ड कायम किया है। लेकिन चकाचौंध वाली इस दुनिया में सबसे ज्यादा स्याह अंधेरे भी हैं।

जब फ़िल्म में संजय मिश्रा सुधीर के किरदार में कहते हैं कि इस देश को डॉक्टर, इंजीनियर से ज्यादा जरूरत बढ़िया डायरेक्टरों की है। तो यह कहीं न कहीं हकीकत से भी रूबरू करवाता है। फ़िल्म में संजय मिश्रा अपना संजीदा अभिनय करते नजर आते हैं। वहीं बाकी साथी कलाकारों की लंबी फेहरिस्त से सजी यह फ़िल्म कई फ़िल्म फेस्टिवल्स में भी सराही गई है तथा कुछ पुरुस्कार भी अपने नाम किए हैं। बेस्ट एक्टर, बेस्ट फ़िल्म क्रिटिक्स अवॉर्ड में नॉमिनेट हुई यह फ़िल्म, फ़िल्म फेयर में भी बेस्ट स्टोरी की कैटेगरी में नॉमिनेट हुई थी। फ़िल्म का गीत-संगीत आपको अपनी जद में बांधकर रखता है। फ़िल्म की लंबी स्टार कास्ट की तरह इसके प्रोड्यूसर भी कई सारे लोग हैं। हार्दिक मेहता की स्टोरी और स्क्रीनप्ले उम्दा रहे। हार्दिक मेहता इसके पहले ‘मौसम’, ‘पाताल लोक’ , ‘क्वीन’ , ‘ट्रेप्ड’ ‘फेमस इन अहमदाबाद’ जैसी फ़िल्म तथा डॉक्यूमेंट्री के लिए जाने जाते हैं। हालांकि इस बीच उन्होंने कुछ खराब काम भी किए हैं जिनमें से ‘रूही’ और प्रमुख है। फ़िल्म को नेटफ्लिक्स पर देखा जा सकता है।

अपनी रेटिंग – 3 स्टार

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तेजस पूनियां

लेखक स्वतन्त्र आलोचक एवं फिल्म समीक्षक हैं। सम्पर्क +919166373652 tejaspoonia@gmail.com
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