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दूसरा रामविलास कहाँ से लायेंगे…
राजनीति की लम्बी पारी खेलने वाले रामविलास पासवान का निधन हो गया। राजनीति भीड़तन्त्र का हिस्सा माना जाता है, लोगों की अलग अलग उम्मीद भी होती है। सभी की उम्मीद पूरी कर पाना सम्भव भी नहीं। इसे इस मायने से भी देखा जाना चाहिए कि चार दशक पहले बिहार सरीखे प्रांत में अति गरीब परिवार का एक युवा कई विपरीत हालात में समाज सेवा के क्षेत्र में आता है और अपनी मुकम्मल और खास जगह बना लेता है।
पूज्य पिता जी के साथ प्रदेश की सीमा के पास मुगलसराय में दस साल रहने का अवसर मिला। बाद में मुंगेर के जमालपुर में रहने से बिहार और बिहार की राजनीति समझने का मौका मिला। ये नौवें दशक का दौर था। मंडल कमंडल उफान पर था। राजनीतिक गहमा गहमी तेज थी। बिहार में नारा दिया जा रहा था जब तक रहेगा समोसे में आलू तब तक रहेगा बिहार में लालू। इसी बीच हमारे बड़े भईया प्रभा शंकर पांडेय इलाहाबाद के नवाबगंज से विधायक बन चुके थे। भाजपा के स्थापना काल से लगातार पार्टी के टिकट पर भईया भाजपा से चुनाव लड़ते रहे। मनुवाद और पचासी पन्द्रह का नारा एक तरफ तो दूसरी तरफ मंडल का नारा समाज को जबरदस्त तरीके से लामबंद करने लगा था। पचीस साल से कम उम्र रही जब भैया भाजपा से पहला चुनाव लड़कर ढाई हजार से कम वोट से हारे। तीसरा चुनाव जीतकर पहली बार भाजपा का परचम लहराया। गिनती की सीट पर भाजपा लडती।
यहाँ चुनाव प्रचार करने बड़े बड़े दिग्गज नेता आते। भैरोसिंह शेखावत, सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती आतीं। प्रचार के दौरान चुनावी सभा करने रामविलास पासवान आए, नवाबगंज के पास सेरावाँ में अल्पी का पूरा वाली नहर के बगल मैदान में हैलीकाप्टर देखने हजारों हजार महिला पुरुष बच्चे बूढ़े सभा में जुटे थे। रामविलास की स्पीच लोगों के सिर चढ़ कर बोली। पासवान जी ने कहा था। राजनीति में भरोसे का संकट बढ़ता जा रहा है। ऐसे में ईमानदार और अनुभवी लोगों का संसद, विधान सभाओं में भेजा जाना जरूरी है, और इसे जनता पूरा करे। प्रभा शंकर पांडेय की काबिलियत ईमानदारी में कोई संदेह नहीं। गारन्टी मैं लेता हूँ। वोट आपका गारन्टी हमरी रहेगा। स्पीच ने असर डाला, जमकर वोट पड़े।
पासवान जी को कई बार संसद में बोलते टीवी पर देखा। साफगोई, अपनी बात रखने का अंदाज, वो मुस्कान। वाकई रामविलास पासवान बेजोड़ नेता थे। इनका निधन दुखद है, इलाके के लोग भी दुख में हैं। प्रयागराज में पंडित नेहरु, लालबहादुर शास्त्री, वीपी सिंह, राम मनोहर लोहिया अलग अलग राजनीतिक विचारधारा के नेताओं की कर्मभूमि रामविलास पासवान को शिद्दत से याद कर रही है।