हरियाणा में इन दिनों नेता बागी हो रहे हैं. कुछ बगावत कर रहे हैं और कुछ ऐसे भी हैं, जो यूंही बाग-बाग हुए जा रहे हैं. इनमें से एक हैं सांसद राजकुमार सैनी. उन्होंने बागी का चोला तो ओढ़ रखा है, पर बगावत सिर्फ जुबानी ही दिख रही है. क्यों ?
हरियाणा क्षेत्रफल में तो छोटा सा है, लेकिन इसका सियासी दखल इतना बड़ा है कि यहां की छोटी से छोटी राजनैतिक हलचल राष्ट्रीय सुर्खियों का हिस्सा बन जाती है. किसान और जवान की ये धरती कई बड़े सियासतदां भी दे चुकी है. लेकिन अब ना वो सियासत है ना ही वैसे सियासतदां.
अब यहां कुछ है तो वो है जाति की राजनीति. फूट डालने की सियासत और कई बार ओछे बयान. और इस सबके जवाब में होने वाले हमले. ये हमले अब जुबानी भी नहीं रह गए हैं. ये सचमुच के हमले हैं. भीड़ है. बयानबाजी करने वाले नेता जी और इससे पब्लिसिटी हासिल करने की ख्वाहिश रखने वाले कुछ लोग और कुछ दांव पर है तो वो है इस प्रदेश की सियासी साख.
विवादों का जिक्र हो रहा है तो राजकुमार सैनी का नाम विवादितों की लिस्ट में सबसे ऊपर आयेगा. वो हैं बीजेपी का हिस्सा. लेकिन बीजेपी के ही विरोध के जरिए अपनी सियासी ताकत को ऑक्सीजन देने की लगातार कोशिश कर रहे हैं. इसे सियासत के खेल की बेशर्मी कहें या फिर राजनीति के मोहरों की शह-मात. सैनी ना इस्तीफा देते हैं और ना ही पार्टी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा रही है. आरक्षण के नाम पर वो जातिगत राजनीति का ऐसा बीज बो चुके हैं जो सिर्फ बवाल के बबूल ही पैदा कर सकता है. अब वो इस बबूल से किसका भला करना चाहते हैं वो ही जानें.
हाल ही में एक बार फिर सैनी पर हमला हुआ. रैली को रोककर कुछ लोगों ने हमला किया. सैनी सकुशल हैं. लेकिन सवाल फिर उठ रहा है कि क्या वाकई सैनी की सियासत से कोई फर्क पड़ता है. सैनी की महत्वाकांक्षा प्रदेश का मुखिया बनने की है लेकिन वो कौन से प्रदेश के मुखिया बनना चाहते हैं और कैसे? इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए उनके कुछ बयानों पर गौर करना होगा.
राजकुमार सैनी के कुछ बयान –
- ”बैकवर्ड समाज के लोगों ने नरेंद्र मोदी को समर्थन दिया था, लेकिन जो पिछली सरकार ने किया वही हुआ है. 55 प्रतिशत लोगों को 12 प्रतिशत हिस्सेदारी मिली, जबकि 10 फीसदी लोग 52 फीसदी का हिस्सा ले गए.”
- ”मुझे स्वार्थ की भूख नहीं है कि एक पार्टी को छोड़ दूसरी में चले जाएं. ”
- ”घर छोड़ आया हूं, कार्रवाई करे या बेदखल”
- ”जाति विशेष के लोग आज भी प्रदेश को अपने अनुकूल चला रहे हैं”
सैनी जिस मोदी लहर में लोकसभा पहुंचे अब वो उन्हीं मोदी और उनकी नीतियों को नकार रहे हैं. वो सवाल उठा रहे हैं. वो कहते हैं कि भूख नहीं है पार्टी चाहे तो कार्रवाई करे. वो जाति की राजनीति को खारिज करते हैं और जाटों के विरोध पर केंद्रित राजनीति कर रहे हैं. लेकिन पूरा कार्यकाल बीत गया कभी इस्तीफा देने की बात नहीं करते.
कुरुक्षेत्र से बीजेपी सांसद राजकुमार सैनी ने अलग पार्टी बना ली है. लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने की भी घोषणा कर दी है. हालांकि सैनी अभी भी बीजेपी से सांसद हैं. न ही पार्टी ने उन्हें हटाया है और न ही राजकुमार सैनी ने सीधे तौर पर बीजेपी से किनारा किया है.
अब सैनी से कुछ सवाल बनते हैं…?
प्रदेश की राजनीति में सिर्फ आरक्षण ही एक मुद्दा है ?
बीजेपी की नीतियां पसंद नहीं तो पार्टी में क्यों ?
बागी का चोला पर बगावत सिर्फ जुबानी क्यों ?
क्या ‘पैंतीस बनाम एक’ से साध पायेंगे सियासी हित ?
सवाल बहुत सारे हैं लेकिन जरूरी है जवाब. और वो भी मिल जाएगा. बहुत जल्द !
दीपक तोमर
लेखक पत्रकार हैं.
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