बढ़ते मानसिक रोग की चुनौती से निवटने में योग कारगर : स्वामी निरंजनानंद
भारत के प्रख्यात योगी स्वामी शिवानंद सरस्वती के शिष्य परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने साठ के दशक में बिहार योग विद्यालय की स्थापना की थी। वे 20 वीं सदी के महानतम संत थे। उन्होंने बिहार के मुंगेर जैसे सुदूरवर्ती जिले को अपना केंद्र बनाकर विश्व के सौ से ज्यादातर देशों में योग शिक्षा का प्रचार किया। उन देशों के चिकित्सा संस्थानों के साथ मिलकर य़ौगिक अनुसंधान किए। परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती उन्हीं के आध्यात्मिक उतराधिकारी हैं, जिन्हें आधुनिक युग का वैज्ञानिक संत हैं। स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने स्वामी शिवानंद सरस्वती के मिशन को दुनिया भर में फैलाया था। उसी तरह स्वामी निरंजनानंद सरस्वती अपने गुरू का मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं।
आद्य गुरू शंकराचार्य की दशनामी संन्यास परंपरा के संन्यासी परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती आधुनिक युग के एक ऐसे सिद्ध संत हैं, जिनका जीवन योग की प्राचीन परंपरा, योग दर्शन, योग मनोविज्ञान, योग विज्ञान और आदर्श योगी-संन्यासी के बारे में सब कुछ समझने के लिए खुली किताब की तरह है। उनकी दिव्य-शक्ति का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने मात्र 11 साल की उम्र में लंदन के चिकित्सकों के सम्मेलन में बायोफीडबैक सिस्टम पर ऐसा भाषण दिया था कि चिकित्सा वैज्ञानिक हैरान रह गये थे। बाद में शोध से स्वामी जी की एक-एक बात साबित हो गई थी।
निरंजनानंद सरस्वती नासा के उन वैज्ञानिकों के दल में शामिल हैं, जो इस अध्ययन में जुटे हुए हैं कि दूसरे ग्रहों पर मानव गया तो वह अनेक चुनौतियों से किस तरह मुकाबला कर पाएगा। स्वामी निरंजन अपने हिस्से का काम नासा की प्रयोगशाला में बैठकर नहीं, बल्कि मुंगेर में ही करते हैं। वहां क्वांटम मशीन और अन्य उपकरण रखे गये हैं। वे आधुनिक युग के संभवत: इकलौते सन्यासी हैं, जिन्हें संस्कृत के अलावा विश्व की लगभग दो दर्जन भाषाओं के साथ ही वेद, पुराण, योग दर्शन से लेकर विभिन्न प्रकार की वैदिक शिक्षा यौगिक निद्रा में मिली थी। उसी निद्रा को हम योगनिद्रा योग के रूप में जानते हैं, जो परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की ओर से दुनिया को दिया गया अमूल्य उपहार है।
उन्हें पद्मभूषण जैसे सम्मान से सम्मानित किया गया। दूसरी ओर बिहार योग विद्यालय को श्रेष्ठ योग संस्थान के लिए प्रधानमंत्री पुरस्कार प्रदान किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद बिहार योग विद्यालय की योग विधियो से इतने प्रभावित हैं कि जब उनसे अमेरिकी राष्ट्रपति की बेटी इवांका ट्रंप ने पूछा कि आप इतनी मेहनत के बावजूद हर वक्त इतने चुस्त-दुरूस्त किस तरह रह पाते हैं तो इसके जबाव में प्रधानमंत्री ने परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती की आवाज में रिकार्ड किए गये योगनिद्रा योग को ट्वीट करते हुए कहा था, इसी योग का असर है।
प्रस्तुत है मुंगेर विश्व योगपीठ के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती से बातचीत।
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करोना ने लोगों सेहत को काफी प्रभावित किया है। इसे किस रूप में देखते हैं?
निश्चित रूप से। इसका दुष्परिणाम तो शुरू हुआ है लेकिन आनेवाले पांच वर्षों के दौरान मानसिक रोगियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होगी। यह काफी चुनौतिपूर्ण होगा। करोना से ठीक होने के बाद लोगों में मस्तिष्क विकृतियां उत्पन्न हो रही है। इसमें मनोवृत्ति व याददाश्त कमजोर होने की संभावना बनी रहती है। कोरोना के बाद इंसेफलाइटिस की समस्या भी काफी देखी जा रही है। कोरोना से ठीक हुए मरीजों के दिमाग में सूजन आ जाती है। साथ ही खून के थक्के जमने की शिकायत भी देखने को मिल रही है। मौजूदा समय में कोरोना मरीजों के 30 से 35 प्रतिशत में नर्वस सिस्टम सम्बन्धी लक्षण देखने को मिल रहे हैं। करोना के बाद दिमाग में ब्लड क्लोटिंग हो जाती है, इससे स्ट्रोक भी होने का खतरा है। अबतक जो बातें सामने आयी है कोरोना के शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली नसों पर हमला करती है, इससे कमजोरी, सुन्नपन, झनझनाहट और पैरालाइसिस का खतरा बढ़ जाता है।
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ठीक हुए करोना के मरीजों में साइड इफेक्ट भी हैं?
हां, साइड इफेक्ट तो हैं। साइड इफेक्ट पर आधुनिक चिकित्सा विज्ञान शोध भी कर रहा है। कोरोना संक्रमण को मात दे चुके लोग अब अनिंद्रा की समस्या से जूझ रहे हैं। अनिद्रा की समस्या उम्रदराज लोगों के साथ ही युवाओं में भी नजर आ रही है। कुछ लोगों को समय पर नींद नहीं आ रही है तो कुछ लोगों की नींद सोने के थोड़ी देर बाद ही बाद ही खुल जाती है, वहीं कुछ लोगों की नींद सुबह जल्दी खुल जाती है। अनिद्रा की समस्या से जूझ रहे लोग अब मनोरोग विशेषज्ञों की मदद ले रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते अनिद्रा की समस्या का निदान नहीं किया जाए तो न केवल सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, कब्ज जैसी ही समस्याएं हो जाती हैं बल्कि कई लोगों में हाइपरटेंशन, कार्डियक डिसआर्डर, चयापचय तंत्र और रोग प्रतिरोधक क्षमता बिगड़ने सम्बन्धी समस्याएं भी हो सकती हैं।
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योग में क्या समाधान है?
इन समस्याओं का समाधान यौगिक जीवनशैली के माध्यम से मुमकिन है। करोनाकाल में योग कारगर सिद्ध हुआ है। जब श्वसन तंत्र में दिक्कत आने लगी तो चिकित्सकों ने उलटे लेटकर श्वांस लेने को कहा। चिकित्सकों ने श्वसनतंत्र को ठीक करने के लिए चिकित्सकीय परामर्श दिए। उसका काफी लाभ मिला। योग में भुजंगासन का अभ्यास कराया जाता है। यानी पेट के वल लेटकर भुजाओं का प्रयोग कर श्वांस लेते हुए सिर गरदन और कंधों को धीरे-धीरे उठाना। दरअसल में भुजंगासन से करने से छाती वाला हिस्सा खुलता है और फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है। इस अवस्था में मेरूदंड को जब धनुषाकार बनाते हैं तो पीठ में रक्तसंचार बढ़ा। इससे न केवल तंत्रिकाएं सवल होती है बल्कि नियमित अभ्यास से मस्तिष्क और शरीर के बीच संचार व्यवस्था ठीक रहती है। आप देखें तो पूरे करोनाकाल में योग ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। बिहार योग विद्यालय मुंगेर ने तो योग के वैज्ञानिक प्रभावों पर साठ के दशक से ही शोध कराया।
अब चिकित्सा के क्षेत्र में योग के एक- एक आसनों पर पर शोध हो रहे हैं। चिकित्सा विज्ञान मानता है कि तंत्रिका तंत्र और अन्त: स्त्रावी ग्रंथियों में संतुलन स्थापित करने में यौगिक चिकित्सा प्रणाली सफल है।
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आपने मानसिक बढ़ने की बात कही? यह किस रूप में देखने को मिलेगा?
आज पूरी दुनिया में करोड़ों लोग डिप्रेशन की बीमारी से जूझ रहे हैं। डिप्रेशन के चलते युवाओं खुदकुशी की प्रवृति बढ़ी है। व्यक्ति मानसिक तनाव से जूझ रहा है और निराशा भरी जिंदगी से गुजार रहा है। डिप्रेशन से, तनाव से दूर होने के लिए योगनिद्रा एक महाशस्त्र के समान है। यह सारी चिंताओं, मानसिक उलझनों, दुश्चिंतावों, तनाव को दूर करने में सक्षम है। यह न सिर्फ व्यक्ति को डिप्रेशन से दूर करता है बल्कि सौंदर्य भरा जीवन प्रदान करता है। योगनिद्रा व्यक्ति के सभी आयामों को प्रभावित करती है।
भ्रामरी प्राणायाम को ही लें। यह सकारात्मक .ऊर्जा देता है और शरीर नकारात्मक विचारों को शरीर से दूर करता है। आरोग्यता और शिथिलता प्रदान करता है। मस्तिष्क के शुषुक्त शक्तियों को जागृत करता है। वह प्राणायाम, जिसमें कंठ से भौरे जैसा गुंजन पैदा किया जाता है। भ्रामरी प्राणायाम के अभ्यास से मस्तिष्क में एक प्रकार की तरंग उत्पन्न होती है जिससे मस्तिष्क, स्नायविक तंत्र और अंत:स्रावी तंत्र के विक्षेप दूर होते हैं और व्यक्ति शांति व संतोष का अनुभव करता है। अनिद्रा की शिकायत दूर होती है। यह डिप्रेशन को दूर करने में कारगर है। भ्रामरी प्राणायाम के अभ्यास से नाइट्रिक ऑक्साइड उत्पन्न होता है, यह नींद लाने में कारगार होता है। यह कम मात्रा में उत्पन्न होता है। अब तो नाइट्रिक आक्साईड का स्प्रे भी तैयार किया है। भ्रामरी प्राणायाम माइंड और स्ट्रेस को रिलेक्स करता है। साथ ही कंसंट्रेशन को बढ़ाने और एंजाईटी को कम करने में मदद करता है।
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सही तरीके से सांस लेना यह सबसे इंपोर्टेंट फंक्शन है जो हमारा शरीर करता है। सही तरीके से सांस लेना आपके अंगों को सभी इंपोर्टेंट प्रोसेस जैसे कोग्निशन से डायजेशन से लेकर इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के लिए ऑक्सीजन प्रदान करने में मदद करता है। मानसिक और महत्वपूर्ण तो है ही,लेकिन यह मस्तिष्क और भावनाओं पर भी असर डालता है।
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ऑन लाइन शिक्षा सेहत को कैसे प्रभावित कर रही है?
इसके कुछ भी साइड इफेक्ट हैं। बच्चे एक बड़ा समय वे स्मार्ट फोन पर खर्च करते हैं। फोन के साथ साथ टी.वी पर भी उनकी नजरे होती ही हैं। ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने के पूर्व भी बच्चों का स्क्रीन टाइम कुछ कम नहीं था। शिक्षण की इस नवीन पद्धति से बच्चों की आंखों पर दुष्प्रभाव तो अवश्य ही पड़ रहा है। इससे बच्चों को कुछ शारीरिक व मानसिक परेशानियां हो रही है। सर दर्द, आंखों में दर्द, नींद का ठीक से नहीं आना, चिड़चिडापन, एकाग्रता में कमी, उदासीनता, जैसी परेशानियां बच्चों में हो सकती है। इन दुष्परिणामों का हल योग में है।
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धर्म और आध्यात्म के संदर्भ में बताएं?
हाल में ही एक वैज्ञानिक ने कहा – धर्म आस्था है और आध्यात्म जीवन में साकारात्मकता की खोज है। दैनिक जीवन में सत्त्व का अभ्युदय तब होता है जब हम साकारात्मक गुणों और प्रतिभाओं से जुड़ते हैं। योग में हमेशा कहा गया है नकारात्मक और प्रतिबन्धक चीजों के बारे सोचने के बजाय सकारात्मक और सात्विक चीजों के साथ नाता जोड़ें। अनुशासन और योग को जीवनशैली में अपनाने की आवश्यकता है। अनुशासन के लिए मनीषियों ने जिस पद्दति का अविष्कार किया वह पद्दति है योग।