Stagnant lives
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हाँ और ना के बीच
ठिठकी हुई जिन्दगानियाँ
इस विकट वर्तमान में इतना कुछ अकल्पनीय अब तक देखा, सुना, कहा। वही चेतना पर बहुत भारी था। भूख, थकान, पस्ती, गर्मी के अनवरत सिलसिलों से निढाल पड़ती- कभी बचती, कभी टूटती जानें। घरेलू हिंसा और स्त्री पर होने…
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