डॉ केयूर पाठक
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सामयिक
पूँजी के भंवर में मनुष्यता की संभावनाओं का अन्त
प्रत्येक आदमी संभावनाओं का समुच्चय है। और ये संभावनाएं उसके भीतर की बहुआयामिकता से निकलती है। उसकी बहुआयामिकता उसकी प्रकृति के साथ-साथ उसके जीवन की सार्थकता भी है। यूँ समझे कि हर आदमी अपने आप में एक छोटा-मोटा लियोनार्दो…
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