खामोश कुर्बानियाँ
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हाँ और ना के बीच
खामोश कुर्बानियाँ
आज भी हम कमोबेश गुलाम ही हैं। हमारे तन-मन न जाने कितनी तरह की जकड़नों में हैं। पहले से विभक्त समाज में उग्र पूँजीवाद की गिरफ्त ने विषमता की खाई को इतना चौड़ा कर दिया है कि अब शायद…
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आज भी हम कमोबेश गुलाम ही हैं। हमारे तन-मन न जाने कितनी तरह की जकड़नों में हैं। पहले से विभक्त समाज में उग्र पूँजीवाद की गिरफ्त ने विषमता की खाई को इतना चौड़ा कर दिया है कि अब शायद…
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