होरी पिछले एक हफ्ते से टूटी रस्सियों की झोली चारपाई पर झोला हुआ मृत्यु के इंतजार में लेटा था। सुना है, उसे वरदान मिला है कि जब तक उसका बेटा गोबर उसे मुखाग्नि देने शहर से नहीं आ जाता, उसे मृत्यु नहीं मिलेगी। चाहे कोई कितनी ही उसके विनाश की योजनाएं क्यों न बना ले।
धनिया ने उसके मरने का दो-चार दिन तक बहुत इंतजार किया। महाजन के घर झाड़ू पोंछा करने भी नहीं गई। जब वह नहीं मरा तो वह महाजन के घर उसे अकेला मरते छोड़ काम करने चली गई। महाजन के घर झाड़ू पोंछा हो तो रात को घर में गीली लकड़ियों वाले चूल्हे पर तवा जले। उसे पता है कि वह उसकी सेवा करे या न ,पर अगले जन्म में भी उसे वही मिलेगा।
होरी की बगल में टाट पर बैठा पुराना अखबार बार-बार पढ़ता, उसके वही पन्ने बार-बार बदलता, विज्ञापनों में एक से एक खूबसूरत चेहरों को गौर से बार-बार निहारता, उनको देख लार टपकाता, उसे लेने आया यमदूत परेशान है कि आखिर होरी के प्राण अटके हैं तो कहां अटके हैं? शुक्र है वह दिल्ली से यों ही अपने साथ उस दिन होरी को लेने आते-आते अखबार ले आया था। वरना पागल हो जाता।
मरने वाले की बगल में बैठना उसके घरवालों की मजबूरी हो य न पर अपनी तो मजबूरी है भाई साहब! हमें तो पगार मिलती ही इसकी है। बंदे को अपने सामने तिल-तिल मरते देखते रहो और जब मर जाए तो उसे अपनी पीठ पर उठा कर चल पड़ो। चाहे कोई चोर हो या साध। कई बार तो मरे हुए को उठाते हुए इतनी घिन्न आती है कि… पर पापी पेट का सवाल है भैया! सरकार ने देश को शौच मुक्त तो कर दिया, पर पता नहीं हम यमदूत शौच युक्त आत्माओं को ढोने से कब मुक्त होंगे?
‘रे होरी, अब आखिर तेरे प्राण कब तक निकलेंगे? तू तो बड़ा जरड़ा है रे होरी! न चैन से जीता है न मरता, ‘जब होरी की बगल में एक टांग पर उसे लेने आया बैठा यमदूत परेशान हो गया तो उसने होरी से दोनों हाथ जोडे़ कहा, ‘अब तो मर जा मेरे बाप! बीवी की बहुत याद आ रही है।’
पर होरी ने जवाब में कुछ कहने के बदले अपना दड़ैला मुंह खोला तो यमदूत ने होरी की चारपाई के पाए के साथ मिट्टी की डीबड़ी में रखे गंगाजल की दो बूंदें चम्मच से उसके मुंह में राम-राम करते डाल दीं। जैसे ही गंगा जल की बूंदों ने उसकी जीभ का स्पर्श किया तो होरी को फील हुआ कि अब वह स्वर्ग के द्वार के बिलकुल नजदीक पहुंच गया है। होरी ने स्वर्ग का आनंद मिलने वाली सांस ली तो यमदूत चौंका। यार! ये बंदा किस मिट्टी का बना है? पानी के सहारे भी मजे से चल रहा है? इधर एक सरकार की गाड़ियां हैं कि जमकर पेट्रोल डीजल डालने के बाद भी टस से मस नहीं होतीं।
‘मैंने गीता को सुना तो नहीं, पर आजतक गीता को जीया जरूर है सरकार! मुझे गीता सुनाने की जरूरत नहीं। मुझ होरी को कहां गीता से काम? ये तो बड़े बड़े पंडितों की थाती है, ‘पता नहीं, होरी उस वक्त कैसे यह सब कह गया! मरता मरता जीव भी इतनी गुणी होता है, यमदूत ने पहली बार देखा तो हैरान हो गया।
होरी ने पुनः सूखे मुंह में जीभ फेरने के बाद यमदूत से पूछा, ‘गीता के बदले आज की कोई ताजा खबर ही सुना दो तो मन को शांति मिले, ‘यह सुन यमदूत बहुत खुश हुआ। होरी की आत्मा आखिर शांति मांगने ही लग गई। उसे लगा कि वह जैसे ही होरी को देश के ताजा हालात के बारे में बताएगा, होरी डर के मारे प्राण त्याग देगा। उसे जीने से नफरत नहीं, सख्त नफरत हो जाएगी। तब एक तरफ होरी को जीवन से मुक्ति मिलेगी तो दूसरी ओर उसे। होरी की झुग्गी में हफ्ते से बैठे-बैठे उसमें गांव की कितनी बुरी बास आ गई है। बाहर नहाने जाता है तो नल में जल नहीं।
मार्निंग वॉक पर जाने की सोचता है तो गांव के रास्तों पर आवारा गाय बैलों के सिवाय और कोई नहीं दिखता। रात को जो हवा खाकर घूमने जाने की सोचता है तो कुत्ते हाथ मुंह धोकर पीछे पड़ जाते हैं। गांव में जैसे कोई और बचा ही नहीं है अब।
‘तो पढ़कर सुना दो। आज की ताजा खबर क्या है?’ अपनी ओर से मरते हुए होरी की अंतिम इच्छा पूरी करने के इरादे से यमदूत ने हिंगलिश में होरी के आगे अखबार बांचना शुरू किया, ‘तो सुन होरी! सरकार ने कहा है कि आने वाले पांच सालों में तू… तू नहीं, पूरा देश गरीबी और भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाएगा। सरकार ने विजन दस्तावेज फाइनल कर दिया है। भूख का इंडेक्स जीरो हो जाएगा। भ्रष्टाचार का इडेंक्स गिर कर जनता के चरणों में लोट रहा होगा।
उसके बाद देश में कोई भ्रष्टाचारी नहीं होगा। देश की हवा में ईमानदारी गोते लगा रही होगी। कोई भूख से नहीं मरेगा। सरकारी कीड़े से लेकर कुंजर तक सब खाते खाते प्रसन्नचित्त स्वर्ग सिधारेंगे। तब… तब… अब तो चल मेरे बाप! पांच साल बाद पुनः जन्म ले जब तू इस देश में बहती नाक पोंछ रहा होगा तो न कहीं गरीबी होगी, न कहीं भ्रष्टाचार। सरकार सुखिया सब संसार।’
‘तो एक काम नहीं हो सकता?’ होरी की आवाज कुछ जिंदा होती लगी तो यमदूत चौंका।
‘बोल! एक क्या सौ हो जाएंगे। पर अब तू बस चल। इस गांव में अब और नहीं रहा जाता। एक दिन और भी जो इस गांव में टिक गया न तो पता नहीं मुझे क्या-क्या बीमारियां हो जाएंगी? देश के अखबारों में कल को यह खबर मेन होगी कि होरी को लेने आया यमदूत होरी के घर किसी अज्ञात बीमारी से मरा पाया गया। क्यों फजीहत करवाने पर तुला है मेरी मेरे बाप?’ यमदूत को लगा होरी मरने का इरादा बदल रहा हो जैसे।
‘अच्छा जल्दी बोल, क्या चाहता है तू? हेड ऑफिस से फोन आ रहा है। एक तुझे ही तो नहीं ले जाना है। बीसियों व्यवस्था से परेशान बीमार हो जाने को तैयार लेटे हैं।’
‘मैं यही चाहता हूं कि मुझे पांच साल की मोहलत नहीं मिल सकती क्या?’
‘हद है होरी! सारी उम्र पल-पल मरता रहा! और अब जब चैन से मरने का सौभाग्य बड़ी मुश्किल से हाथ लगा तो पांच साल और? देख होरी, इस नश्वर देह से कुर्सी सा मोह अच्छा नहीं। मोह के परिणाम बहुत बुरे होते हैं। बड़े लोगों का मरते मरते जीने के लिए छटपटाना वाजिब लगता है, पर पल-पल मरने वाले भी मरते हुए जीने के लिए हाथ जोड़ने लगेंगे तो… लगता है, अब घोर कलियुग शुरू हो रहा है होरी!’ यमदूत उपदेशक हुआ।
तब होरी ने भूखे पेट में कुछ देर तक जीभ घुमाने के बाद यमदूत को निहारते सस्नेह कहा, ‘ सरकार! अगला जन्म क्या पता हो या न हो। जो हो भी तो क्या पता मानुस देह मिले भी या नहीं। सुना है, जिस तरह से पार्टी में देशसेवा करने के लिए चुनाव में उम्मीदवारी हेतु टिकट के लिए नोट चलते हैं उसी तरह से अब ऊपर मानुस देह के लिए भी नोट चलने लगे हैं।’ साला होरी! अनपढ़ है, पर खबर ऊपर तक की रखता है। सुन यमदूत बकबकाया।
‘सोच रहा हूं… गरीबी मुक्त, भ्रष्टाचार मुक्त देश में कुछ दिन जी कर ही जाऊं। फिर क्या पता मानुस देह मिले न मिले,’ होरी ने पूरे दमखम के साथ कहा तो यमदूत हफ्ते भर से न धोए अपने सिर के बाल होरी के हाथों से पगलाया नुचवाने लगा।
अशोक गौतम
सह आचार्य, एससीईआरटी, सोलन
ashokgautam001@gmail.com
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