सरदाना का जाना
वो चमकता चेहरा, वो तीखे बोल।
जियो तो ऐसे जियो कि जाने पर ज़माना याद रखे।
याद आओगे सरदाना।
सरदाना की मौत पत्रकारिता की चकाचौंध के पीछे छिपे असली चेहरे को एकबार फिर से याद दिलाने के लिए काफ़ी है। आजतक के पत्रकार रोहित सरदाना की मृत्यु की खबर आई। यह खबर उतना ही दुख देने वाली थी जितना दुख आजकल कोरोना से रोज़ हो रही तीन-चार हज़ार मौतें देती हैं। ज़ाहिर है सरदाना पत्रकार उम्दा रहे होंगे इसलिए आजतक जैसे समाचार संस्थान में थे। अपने लगभग बीस साल के पत्रकारिता कैरियर में उन्होंने जितना नाम कमाया उसकी लिए बाकियों को अस्सी साल भी लग सकते हैं।
सरदाना 41 साल के थे, दूसरी लहर युवाओं को अपनी चपेट में ज्यादा ले रही है। क्या हमारे डॉक्टर इलाज में कहीं न कहीं चूक रहे हैं या सीमित संसाधन होने पर उन पर दबाव इतना अधिक हो गया है कि वह मरीज़ों पर चाहकर भी ध्यान नही दे पा रहे हैं। रवीश कुमार ने देश में एक कमांड रूम बनाने की बात कही है जो देश भर के डॉक्टरों द्वारा कोरोना में दिए गए इलाज पर अध्ययन करे और कहां चूक हो रही है इसका पता लगाए।
प्रेस सुधार न होने की वज़ह से आज भारतीय मीडिया कुछ शक्तिशाली संस्थानों तक ही सिमट गई है, शायद छोटे मीडिया संस्थान अपना वजूद मिटाने का आरोप मुझ पर लगाएं पर वास्तविकता यही है कि लोग अब भी सोशल मीडिया पर मोटा पैसा देकर प्रमोट किए जा रहे इन्हीं संस्थानों की ख़बरों को ज्यादा देखते हैं और उन्हीं पर ज्यादा विश्वास करते हैं, लिहाज़ा सरदाना के जाने की ख़बर को बड़ा बनना ही था जबकि भारत में पिछले 28 दिनों के अंदर ही मरे अन्य 52 पत्रकारों के हमें नाम तक नही पता हैं ।
सरदाना की मौत की ख़बर फ़ैलते ही देश के बड़े-बड़े नेताओं ने ट्वीट कर उनकी मौत पर दुख जताया, मैंने जब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के ट्विटर अकाउंट की ओर रुख किया तो वहां इस तरह का कोई ट्वीट नही था।
वरिष्ठ पत्रकार श्री रोहित सरदाना जी का निधन अत्यंत दुःखद है।
वह जनपक्षीय पत्रकारिता के अप्रतिम हस्ताक्षर थे।
प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि वह दिवंगत आत्मा को शान्ति व शोकाकुल परिजनों को यह अथाह दुःख सहने की शक्ति प्रदान करें।
ॐ शांति
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) April 30, 2021
एकाउंट पर महामारी की इस स्थिति में भी सरकार का बचाव करते हुए कोरोना की तीसरी लहर सम्बंधित ख़बर के फेक होने पर पीआइबी के एक ट्वीट को रीट्वीट जरूर किया गया था।
This post circulating on #WhatsApp claiming that India has entered the community transmission stage is #Old.
The statement was given last year and was subsequently retracted. #PIBFactCheck pic.twitter.com/V3oCHZAwwX
— PIB Fact Check (@PIBFactCheck) April 30, 2021
आजतक पर भी सरदाना की मौत की ख़बर देर से चलाने का आरोप लगा। मौत की खबर की सूचना देने का समय हर किसी के लिए बहुत मुश्किल काम होता है इस पर सवाल उठाना गलत है।
समाज में अपने प्रभाव को लेकर पिछले कुछ समय से मिडिया शक के घेरे में रही है। सुशांत की मौत पर मीडिया के स्टूडियो खुद न्यायालय में तब्दील हो गए थे। पुलवामा हमले और अर्नब के सम्बन्धों पर खूब चर्चा हुई थी जिसे अब ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। जमातियों को इन्हीं समाचारों ने पूरे देश में खलनायक के रूप में पेश किया जिससे एक धर्मविशेष के लिए लोगों के मन में नफ़रत पैदा हुई थी, यह वह पत्रकारिता थी जिसने लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ बनने के जगह बाकि तीन स्तम्भों को गिराने में कोई कसर नही छोड़ी थी।
किसान आंदोलन में कुछ मिडिया घरानों की इन्हीं करतूतों की वज़ह से पत्रकारों को आंदोलनकारियों का गुस्सा झेलना पड़ा। आज जब सरदाना के जाने की ख़बर आजतक पर चलाई गई तो दृश्य कुछ इस तरह से थे।
कोरोना महामारी की वजह से बने निराशा के इस दौर में जहां सकारात्मक ख़बर चलाने की मांग हो रही है वहीं आजतक की यह एंकर कैमरे के सामने फूट-फूट कर रो रही थी।
पत्रकारिता की कक्षा में बैठा सबसे पिछड़ा छात्र भी यह बता सकता है कि यह सब पत्रकारिता के मूल्यों के खिलाफ था। एक राष्ट्रीय समाचार चैनल में ख़बर सामने रखने का यह सही तरीका नही है , अपनी और सरदाना की यादों को बयां करते भावुक होने का वह सही मंच नही था। इन तस्वीरों को देख मुझे 2018 में अपने पति की मौत से जुड़ा समाचार पढ़ने वाली आईबीसी24 चैनल की पत्रकार सुरप्रीत कौर का चेहरा याद आ गया था।
सरदाना अपने पीछे पत्नी के साथ दो बच्चियों को छोड़ गए हैं, शायद इस समय बहुत से परिवार अपनों को खो रहे हैं, यह सिलसिला बहुत जल्दी रोकना होगा नही तो समाचार चैनलों के एंकरों के साथ पाठकों के खत्म होने की यह चेन घूमते रहेगी। सोशल मीडिया पर सरदाना के बारे में बहुत सी अच्छी बुरी टिप्पड़ियां चल रही हैं, जो चला गया उसकी आत्मा की शांति के लिए हमें प्रार्थना करनी चाहिए। निजी तौर पर सरदाना क्या थे यह शायद बहुत कम लोग ही जानते होंगे और उनके काम को लेकर उन पर टिप्पणी करना गलत है क्योंकि हम सब जानते हैं संस्थानों में किसके इशारों पर काम करना पड़ता है।
उनके परिवार को अभी शांति, ढांढस और बाद में मदद चाहिए। इतना तो हम कर ही सकते हैं!
.