लालू प्रसाद : अर्श से फर्श तक
‘‘कभी अर्श पर कभी फर्श पर, कभी उनके दर कभी दर-बदर
कभी रुक गए कभी चल दिये, कभी चलते-चलते भटक गए।’’
यह नज्म तो आपने सुनी होगी। फर्श से अर्श पर पहुंचने की कहानियाँ तो अक्सर मिसाल बन जाती हैं लेकिन पूर्व रेल मन्त्री और बिहार के पूर्व मुख्यमन्त्री लालू प्रसाद यादव का फर्श से अर्श और फिर अर्श से फर्श तक पहुँचने की कहानी उनकी जिन्दगी की वह सच्चाई है जिनसे आज के राजनीतिज्ञों को सबक सीखनी चाहिए। अब एक बार फिर लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले के सबसे बड़े डोरंडा कोषागार से अवैध निकासी मामले में पाँच साल कैद की सजा सुनाई गई। साथ ही अदालत ने लालू पर 60 लाख रुपयों का जुर्माना भी लगाया।
डोरंडा कोषागार से 139.35 करोड़ की अवैध निकासी हुई थी। 1990 से 95 के बीच चाईबासा ट्रेजरी, देवधर ट्रेजरी, दुमका ट्रेजरी और डोरंडा ट्रेजरी से पशुचारा और पशुपालन के नाम पर कुल 950 करोड़ की अवैध निकासी हुई थी। लालू यादव चारा घोटाले के कुल पाँच मुकद्दमों में अभियुक्त बनाए गए थे, अब इन पाँचो मामलों में फैसला आ गया है और सभी में वह दोषी ठहराए गए हैं। अब तक उनकी 27 साल की सजा मुकर्रर हो चुकी है। उन्हें दोषी करार दिए जाने के बाद से ही बिहार का सियासी पारा गर्म है। उनकी पार्टी राजद जहाँ कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए लालू प्रसाद को मामले में फंसाने का आरोप लगा रही है, वहीं उनके विरोधी कोर्ट के निर्णय पर खुश हैं।
वरीय अधिवक्ता अजित पाठक एवं नलिन लोचन सहाय कहते हैं कि अदालत ने लालू को सरकारी धन के दुरुपयोग, भ्रष्टाचार और साजिश रचने के आरोपों में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 120बी, 420, 409, 467, 468, 471, 477ए तथा पीसी एक्ट की धाराओं 13 (2),13 (1)(सी) के तहत दोषी करार दिया है। इन धाराओं के तहत न्यूनतम एक वर्ष और अधिकतम सात वर्ष तक की सजा का प्रावधान है। तीन साल से अधिक की सजा मिलने के कारण तत्काल जमानत की उम्मीद नहीं है। जमानत के लिए अब उन्हें हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट का रुख करना पड़ेगा। कानूनी प्रावधानों के अनुसार तीन साल से अधिक की सजा की स्थिति में लालू प्रसाद यादव को तत्काल जमानत नहीं मिलेगी।
लालू प्रसाद यादव के बेटे और राजद नेता तेजस्वी यादव ने अदालत के फैसले के बाद कहा कि मैं अदालत के फैसले पर टिप्पणी नहीं करूँगा। यह आखिरी फैसला नहीं है। अभी उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय भी हैं। हमने इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी है और हमें उम्मीद है कि निचली अदालत का फैसला हाई कोर्ट में बदलेगा। बिहार में लगभग 80 घोटाले हो चुके हैं लेकिन सीबीआई, ईडी, एनआईए कहाँ है? देश में एक ही घोटाला और एक नेता है। विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी को सीबीआई भूल गई है।
इधर बिहार के मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार ने कहा कि लालू यादव पर केस करने वालों में कई लोग थे। इनमें कुछ लोग आजकल उन्हीं के साथ हैं। केस करने वालों में कुछ इधर हैं तो कुछ उधर हैं। उन्होंने आगे कहा कि लालू यादव पर केस करने वालों में एक आदमी और है जिन्होंने हमें उनसे अलग कराया था। इस वक्त वह फिर से उधर ही है। वह लौटकर हमारे साथ आए, फिर उधर ही चले गए हैं। उन्होंने भी केस किया था। केस करने वाले ज्यादातर लोग उधर ही हैं, उन्हीं लोगों से सवाल पूछिए। केस करने के बाद सारी जाँच हुई। ट्रायल हुआ है उसके बाद सजा हुई है, इस पर हम क्या कह सकते हैं।
वहीं अदालती फैसले के कुछ देर बाद लालू यादव ने अपने आधिकारिक फेसबुक पेज के जरिए इस पूरे मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने अपने कविता वाले अंदाज में लिखा-
‘साथ है जिसके जनता, उसके हौसले क्या तोड़ेगी सलाखें’।
“अन्याय असमानता से
तानाशाही ज़ुल्मी सत्ता से
लड़ा हूँ लड़ता रहूंगा
डाल कर आँखों में आंखें
सच जिसकी ताक़त है
साथ है जिसके जनता
उसके हौसले क्या तोड़ेंगी सलाख़ें
मैं उनसे लड़ता हूं जो लोगों को आपस में लड़ाते है
वो हरा नहीं सकते इसलिए साजिशों से फंसाते है
ना डरा ना झुका, सदा लड़ा हूं और लड़ता ही रहूंगा…
लड़ाकों का संघर्ष कायरों को ना समझ आया है ना आएगा।”
अदालत के फैसलों से स्पष्ट है कि वह सामाजिक न्याय के लिए जेल नहीं गए बल्कि भ्रष्टाचार के कारण जेल पहुंचे हैं। जैसी करनी वैसी भरनी। उन्होंने भ्रष्टचार का रिकार्ड बनाया है। अभी तो उनके और उनके परिवार के खिलाफ आईआरसीटीसी घोटाला लम्बित है। उम्र के इस पड़ाव पर जेल जाना बहुत दुख देने वाला है लेकिन अदालत ने एक संदेश फिर से दिया है कि कानून के आगे कोई बड़ा-छोटा नहीं। कानून तो अपना काम करेगा ही।
बिहार के गोपालगंज में एक गरीब परिवार में जन्मे लालू ने राजनीति की शुरूआत जयप्रकाश आंदोलन से की। तब वे एक छात्र नेता थे। 1970 में आपातकाल के बाद लोकसभा चुनावों में जीत कर लालू यादव पहली बार लोकसभा पहुंचे तब उनकी उम्र केवल 29 साल थी। 1980 से 1989 तक वह दो बार विधानसभा के सदस्य रहे और विपक्ष के नेता भी रहे। उन्होंने सामाजिक न्याय और समाज के दबे-कुचले वर्ग के हितों के लिए आवाज बुलंद की और 1990 में वह बिहार के मुख्यमन्त्री बन गए।
90 के दशक में वह बिहार की राजनीति में लगभग अजेय बन गए थे। 90 से 97 तक वह लगातार बिहार के मुख्यमन्त्री बने। लालकृष्ण अडवानी के नेतृत्व वाली राम रथयात्रा को रोक कर वह काफी चर्चित हो गए थे। राजनीति में लालू यादव का सिक्का 2004 तक चलता रहा। 2004 के लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी ने बिहार में 24 सीटें जीतकर अपनी धमक दिखाई थी और इन्हीं 24 सीटों के समर्थन के बल पर वह मनमोहन सिंह सरकार में रेलमन्त्री बने।
रेलमन्त्री रहते हुए उन्होंने गजब की मैनेजमैंट दिखाई और घाटे में चल रही रेलवे को लाभ में बदल दिया तब लालू को मैनजमेंट गुरु करार दिया गया और कई देशों ने उन्हें व्याख्यान देने के लिए भी बुलाया। लालू प्रसाद यादव के सफेद कुर्ते पर दाग 1997 में लगना शुरू हुआ था जब उनके खिलाफ चारा घोटाले में आरोप पत्र दाखिल किया गया। तब उन्हें मुख्यमन्त्री पद छोड़ना पड़ा था। उन्होंने सत्ता पर काबिज रहने के लिए एक नया तरीका अपनाया और अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता सौंप कर वह खुद राजद के अध्यक्ष बने रहे, अर्थात वह अपरोक्ष रूप से सत्ता की कमान भी अपने हाथ में थामे रहे।
लालू यादव के शासन काल को जंगल राज की संज्ञा दी गई तब बिहार में कानून व्यवस्था की हालत बहुत खराब रही। राह चलते लोगों और युवतियों का अपहरण एक उद्योग बन गया था। लालू शासन में ही बिहार में बाहुबली पनपे और बाहुबलियों को सत्ता का पूरा संरक्षण रहा। 2004 के बाद लालू की राजनीति का ढलान शुरू हुआ। सियासत में लालू के अपने अंदाज भी रहे। संसद हो या कोई टीवी इंटरव्यू या फिर जनसभा खास भदेस शैली और चुटीले अन्दाज की वजह से लालू बिहार और हिन्दी बेल्ट ही नहीं पूरे देश में लोकप्रिय रहे। उनकी हाजिरजवाबी पर क्या पक्ष और क्या विपक्ष सब ठहाके लगाते दिखते थे।
लालू संसद में जब बोलना शुरू करते थे तो तेज-तर्रार बहस और तीखे आरोपों और प्रत्यारोपों के बीच उनकी लाजवाब शैली पर सांसद हँसते नजर आते थे लेकिन उन्होंने सत्ता को न केवल अपनी गरीबी को दूर करने का हथियार बनाया बल्कि बेशुमार सम्पत्ति भी हासिल की। उन्होंने अपनी सियासती चमक के बल पर सम्पत्ति अर्जित करने के लिए क्या-क्या हथकण्डे अपनाए यह किसी से छिपा नहीं है। लालू यादव खुद तो फँसे ही , पत्नी राबड़ी देवी, बेटी मीसा भारती भी आरोपों के घेरे में आ गईं।
स्वास्थ्य कारणों से वह जमानत पर बाहर आए थे लेकिन अब उन्हें एक बार फिर जेल जाना पड़ा है। उनके बेटे भी राजद की पुरानी धमक वापिस नहीं ला सके। सियासत की सरहद को तलाश करना आज के दौर में बेमानी हो चुका है। किसी भी दौर में सियासत का चेहरा बिल्कुल बेदाग कभी नहीं रहा। लालू यादव का हश्र सभी के लिए एक नजीर बनना चाहिए।