श्रद्धांजलि

रूह तराना गाएगी लता लता दोहराएगी

 

   गीतों के झरोखे से झांकती स्वर कोकिला के सुर सदियों तक संगीत की शान बन सुरों को सिखाते रहेंगे। तन खाक हो गया तो क्या? रुह गाती रहेगी तब तक जब तक संगीत को सुनने समझने जानने वालों की जमात जिंदा रहेगी। वक्त के हर पहर पर अपना स्वर अंकित कर स्वर्ग जा विराजी लता अमरत्व की देवी बन हवा में रमती बहती गाती गुनगुनाती युगों को आनंदित करती रहेंगी। जो मौत के माथे पर जीत जाने की इबारत लिख दी उस शख्सियत का नाम लता है, जो मौत के माथे पर अमिट छाप छोड़ दे उस अमृत्व का नाम लता है, जो अमिट पहचान बन दिलों में उतर जाए उस सुरीले स्वर का नाम लता है। लता धरा को धन्य, संगीत को जीत, मृत्यु से पार एक ऐसा संसार बना कूच कर गई जिसमें उनके गीत उनकी स्वर पूंजी को सदा सर्वदा जन मन से जोड़ एहसास दिलाते रहेंगे मैं अभी हूँ।

    सरलता का स्वरूप स्वर की देवी का जीवन संघर्ष की वह गाथा है जिस गीत को लिखने का साहस कोई कलम कभी कर ही नहीं पाई। हर खुशी, हर हसरत, घर परिवार पर वार अवतार बनने की कहानी को सच मायने में दुनिया लता नाम से जानती है। साधारण परिवार में जन्मी असाधारण लता एक चमत्कार का नाम बन नभ के आनन में चमकती रहेंगी एक ऐसी चमक बन जो “न भूतो न भविष्यते” न आज न कल न कभी। जिस कद को कभी कोई छू न पायेगा वह अमिट जीवन दर्शन लता नाम कहलाएगा।

    देश दुनिया की 36 भाषाओं के शब्दों को सुरों की कसौटी पर परख गीत के रूप में पिरो वरदान बनाने का हुनर सिर्फ उनके नाम आता है। सम्मान को सम्मानित, समय को गौरवान्वित, मंच की महिमा बन मुस्कान में सर्वस्व समेटने की कला उस देवी से बेहतर किसी और ने कभी समझ ही नहीं पाई, विभिन्न भाषाओं में हजारों गीतों की श्रृंखला विरासत के रूप में धरोहर की तरह छोड़ विदा हुई भारत की स्वर कोकिला।

    सन 1969 में पद्मश्री, 1999 में पदम विभूषण और 2001 में भारत रत्न अपने नाम अर्जित कर विश्व में संगीत की मशाल बन अग्नि में लिपटने सिमटने की दास्तां लता की गाथा नहीं हो सकती, लता का तन बेशक विलीन हो जाये पर रूह सदा यही तराना गायेगी लता लता दोहराएगी।

    कोई कुछ दिन, कोई कुछ पल, कोई कुछ माह जिंदगी जीता है लता ने जिंदगी को बन्दगी बना जीत लिया। यह लता नाम से परिचित कोई भी शख्स सरलता से ही कह देगा। इसी खासियत का नाम मौत से ऊपर हो माना जाता है। मौत जिसे मिटा न पाए, जिस्म जिसे कैद न कर पाए, वक्त जिसे भुला न पाए, युग जिसे दोहरा न पाए, सदियां जिसके साथ को तरसे, स्वर जिसकी आराधना में तड़पे उस युग का तिरंगा ओढ़ गुजर जाना संभव ही नहीं है। अब रूबरू नहीं रहेंगी लता सच है पर वो गीत जो हर पल हर क्षण कहीं ना कहीं अनावरण गाया ही जाता रहेगा उस गीत के रूप में लता दीदी हम सबके मन मंदिर में सदा बनी बसी रहेंगी। जिस्म से जान जुदा हो सकती है पर संगीत से लता कभी जुदा हो ही नहीं सकती। सन् 2019 में “सौगंध मुझे इस मिट्टी की” अपना आखिरी गीत गा लता उसी महान माटी में मिल गई जिसकी उन्होंने सौगंध खाई थी। लता वरदान है, चमत्कार है, लता साधना है, लता सरगम है, अमर है, लता सदा है

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पंडित संदीप

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। सम्पर्क +919911688689, drsandeepphd@gmail.com
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