ट्रांसजेण्डर का उच्च शिक्षा द्वारा मुख्यधारा में समावेशन के संदर्भ में अध्ययन
प्रौढ़ सतत् शिक्षा एवं विस्तार विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस (FRP) के तत्वावधान में किए जा रहे शोध के पाइलेट स्टडी में प्राप्त कुछ प्रारंभिक तथ्यों को इस लेख में प्रस्तुत किया जा रहा है…
नालसा जजमेंट और ट्रांसजेण्डर एक्ट, 2019 भारत सरकार द्वारा पारित होने के बावजूद, भारत में उच्च शिक्षा में समावेशन हेतु ट्रांसजेण्डर व्यक्ति को एक लम्बा रास्ता तय करना है। इस संदर्भ में नॉर्थ कैंपस दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रौढ़ सतत शिक्षा एवं विस्तार विभाग के तहत शोधकर्ताओं द्वारा मार्च, 2021 के पहले सप्ताह में अध्ययन की शुरुआत की गयी। इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस (एफआरपी) के तत्वावधान में सूचना और कार्यान्वयन के बीच एक लम्बा अंतराल का सुझाव दिया गया। उच्च शिक्षा में ट्रांसजेंडर लोगों को मुख्यधारा में लाने के संदर्भ में ट्रांसजेण्डर व्यक्ति अधिनियम 2019 और नयी शिक्षा नीति 2020 के कार्यान्वयन के अध्ययन को समझने का प्रयास किया गया।
हाशियाई समूह होने के नाते, ट्रांसजेण्डर छात्रों के साथ उत्पीड़न और भेदभाव के अधिक मामले सामने आते रहे हैं। कक्षाओं, परिसरों और उच्च शिक्षण संस्थानों में नकारात्मक वातावरण के बारे में उनकी अपनी धारणा है। वे सामाजिक जीवन में अन्य लोगों की तुलना में कम स्वीकार किये जाते हैं।
दोनों लिंगों के 150 नमूनों में से लगभग 90 प्रतिशत व्यक्ति जानते थे की ट्रांसजेण्डर व्यक्ति भीख मांगने, टोली-बधई, नाचने और सेक्स के पेशे में है। शायद ही उन्होंने शिक्षा और उच्च शिक्षा में ट्रांस विद्यार्थियों के बारे में सुना था। 92 से 95 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं को सरकार द्वारा संसद में लाये गए ट्रांसजेण्डर अधिनियम 2019 के कानूनी प्रावधानों बारे में जानकारी नहीं थी।
कॉलेज या विश्वविद्यालय के औपचारिक माध्यमों के उत्तरदाताओं ने परिसर में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को नहीं देखा गया था। हालांकि, स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग (एसओएल) के 2 प्रतिशत लोग ओपन लर्निंग के छात्रों के रूप में जानते थे।
यह भी पढ़ें – किन्नर का सामाजिक यथार्थ
यह भी देखा गया कि ट्रांसजेण्डर वयस्क सहपाठियों के साथ काफी कम बातचीत कर रहे हैं। वे शारीरिक स्वास्थ्य, आत्मविश्वास, नेतृत्व की गुणवत्ता, आत्मसम्मान और कई अन्य क्षेत्रों में अपने साथियों के मुकाबले में पीछे हैं। इस अध्ययन से पता चलता है कि ट्रांस छात्रों ने अपनी “पहचान” खो दी है और वे अपना प्रतिनिधित्व नहीं कर पा रहे हैं कि वे क्या हैं। वे शर्म महसूस करते हैं और समाज में अपने लिंग और स्वीकृति के बारे में काफी संवेदनशील हैं जो उन्हें काफी असहज बनाता है। यह 21वीं सदी में भी एक चुनौतीपूर्ण मुद्दा है। इस प्रकार वे अपमान और भेदभाव का सामना करते हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय में बड़े नमूने पर भी अनुसंधान किया जा रहा है और मार्च में विश्वविद्यालय अधिकारियों और कॉलेज प्राचार्यों को शामिल करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर वेबिनार की योजना भी बनाई गयी है। शोधकर्ताओं में से किसी ने भी शिक्षण संस्थानों में ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए विश्राम कक्ष की सुविधा नहीं देखी है। अध्ययन से यह भी पता चलता है कि ट्रांस छात्र लाइब्रेरी, कंप्यूटर लैब या कैंटीन में अधिकांश समय व्यतीत करते है, जहाँ फिर से भेदभाव और असमानता का सामना उनको करना पड़ता है। यह न केवल उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है बल्कि कभी-कभी आत्मघाती प्रयासों का भी परिणाम होता है।
यह भी पढ़ें – वैदिक साहित्य और तृतीयलिंगी
अधिकांश उत्तरदाताओं ने दृढ़ता से सिफारिश की है कि उच्च शिक्षण महाविद्यालयों / विश्वविद्यालयों में प्रमुख संकाय सदस्यों और प्रशासनिक कर्मचारियों के लिए संवेदीकरण कार्यशाला शुरू करनी चाहिए। उन्होंने यह भी दृढ़ता से महसूस किया कि जेण्डर ‘न्यूट्रल वॉशरूम’, ‘सामान्य कमरा’ एवं ‘लाइब्रेरी की सुविधा’ विश्वविद्यालयों / कॉलेजों के स्तर पर शुरू किये जाने चाहिए। समितियों और इस तरह की पहलों, आईईसी या आईसीटी सुविधाएं पहले ही उपलब्ध करायीं जानी चाहिए, जो केवल इस उद्देश्य को लागू करने के लिए आत्मविश्वास विकसित करेगा।
यह अध्ययन उच्च शैक्षणिक संस्थानों में ट्रांसजेण्डर फ्रेंडली वातावरण के निर्माण की दृढ़ता से अनुशंसा करता है। ट्रांसजेण्डर स्टूडेंट्स के लिए हेल्थ इंश्योरेंस कवरेज, काउंसलिंग सेशन और जागरूकता के लिए कैंपेन होने चाहिए, ताकि दूसरे लोगों को भी जागरूक किया जा सके। ट्रांस समावेशी और ट्रांस प्रथाओं पर विभिन्न प्रशिक्षण और कार्यशालाएं होनी चाहिए। ज्ञानवर्धक वातावरण प्रदान करने और बनाने में पाठ्यक्रम महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कॉलेजों को लिंग पहचान को सम्बोधित करना चाहिए और ट्रांस समावेशी पाठ्यसामग्री ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए सुलभ होनी चाहिए। अनुशासन को विनियमित किया जाना चाहिए और कॉलेजों को अपने संकाय सदस्यों को ट्रांसजेंडर सामग्री पर अधिक पाठ्यक्रम शामिल करने की सलाह देनी चाहिए।
यह भी पढ़ें – किन्नरों के जीवन का सच
भेदभाव के बावजूद, ट्रांसजेण्डर लोगों ने बड़ी-बड़ी सफलताएँ अर्जित कि हैं, लेकिन अभी भी समाज में स्थान और जगह पाने के लिए एक लम्बा रास्ता उनकों तय करना है। उदाहरण के लिए जब हम महिलाओं के बारे में बात करते हैं तो उनकी सुरक्षा और संरक्षण के लिए कई नीतियाँ और कानून होते हैं। यहां तक कि सर्वेक्षणों में हमें पता चलता है कि महिलाएं जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता कैसे प्राप्त कर रही हैं। लेकिन फिर भी, हम बाहर ही नहीं, अपने परिवारों में भी महिलाओं के खिलाफ भेदभाव देखते हैं। इसी तरह ट्रांसजेंडर के लिए, कई कानून और अधिनियम हैं, लेकिन भेदभाव और असमानता अभी भी हर जगह देखी जा सकती है। इसलिए हमारे आस-पास के लोगों को जागरूक करना न केवल एक तरीका है बल्कि यह एक शिक्षा क्रांति भी है।
प्रोफेसर राजेश (पीआई) एवं डॉ. गीता मिश्रा (सह-पीआई) की देखरेख में शिवा सिंह, सिया बिहारी द्वारा किया गया शोध।
प्रौढ़ सतत शिक्षा एवं विस्तार विभाग इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस (एफआरपी) के तत्वावधान में