हरियाणा

डंकी रूट की कड़वी हकीकत

 

हरियाणा के कई युवा विदेश जाने का सपना देखते हैं। अमेरिका और यूरोप में ‘सुनहरे अवसर’ की तलाश उन्हें मजबूर करती है कि वे अपने घर-परिवार को छोड़कर अनजान सफर पर निकल जायं। लेकिन जब यह सफर वैध तरीके से संभव नहीं हो पाता, तो कई युवा ‘डंकी रूट’ जैसे खतरनाक और अवैध रास्तों का सहारा लेते हैं। बेरोज़गारी और आर्थिक तंगी उन्हें खतरनाक और अवैध मार्गों पर चलने के लिए मजबूर करती है। राज्य में उच्च शिक्षित युवा भी अच्छी नौकरियों की कमी के कारण विदेश जाने की कोशिश कर रहे हैं। अमेरिका की चमक-धमक और वहाँ की जीवनशैली की कल्पना उन्हें किसी भी जोखिम को उठाने के लिए प्रेरित करती है।

डंकी रूट: खतरनाक सफर

डंकी रूट एक अवैध प्रवासन मार्ग है, जिससे होकर भारतीय युवा दक्षिण अमेरिकी देशों जैसे इक्वाडोर, वेनेजुएला, कोलंबिया से होते हुए मैक्सिको पहुँचते हैं और वहाँ से अमेरिका में घुसने का प्रयास करते हैं। यह सफर अत्यंत कठिन और जोखिम भरा होता है। घने जंगलों, ऊबड़-खाबड़ पहाड़ों, विषैले जानवरों और हिंसक समूहों से भरा यह मार्ग प्रवासियों के लिए ‘मौत का सफर’ बन जाता है। कई लोग रास्ते में दम तोड़ देते हैं, तो कई अमेरिकी सीमा पर पहुँचने के बाद पकड़े जाते हैं और उन्हें शर्मनाक तरीके से वापस भेज दिया जाता है। डंकी रूट को आसान दिखाने के लिए दलालों और एजेंटों का एक संगठित नेटवर्क काम करता है। वे लोगों को भ्रमित करने के लिए झूठी कहानियाँ गढ़ते हैं कि ‘अमेरिका में पहुँचते ही आसानी से नौकरी मिल जाएगी,’ ‘ग्रीन कार्ड जल्दी मिल जाएगा,’ या ‘कोई खतरा नहीं होगा।’ इसके बदले वे 40-50 लाख रुपये तक वसूलते हैं।

कई परिवार अपनी जमीन बेचकर या कर्ज लेकर यह रकम जुटाते हैं, लेकिन जब उनका बेटा या भाई बीच रास्ते में लापता हो जाता है, तो उनके पास पछतावे के सिवा कुछ नहीं बचता। डंकी रूट पर सबसे खतरनाक हिस्सा पनामा का डेरियन गैप है, जो घना जंगल और दलदली इलाका है। यह क्षेत्र लगभग 160 किलोमीटर लम्बा है और यहाँ कोई पक्की सड़क नहीं है। बारिश के कारण लोग कीचड़ में फँस जाते हैं और कुछ की तो मृत्यु भी हो जाती है। जहरीले साँपों और जंगली जानवरों का खतरा हमेशा बना रहता है। यहाँ से प्रवासी गुजरते रहते हैं, इस वजह से वहाँ लुटेरे और अपराधियों की संख्या बढ़ गई है, जो मौका मिलते ही प्रवासियों को लूट लेते हैं, कई बार महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएँ भी सामने आई हैं। इतने लम्बे सफर में बीमार होने पर न कोई इलाज मिलता है और न ही कोई सुविधाजनक दवाइयाँ। इसलिए कई बार बीमारियों से भी प्रवासी व्यक्ति अपने प्राण त्याग देता है। बीमारी से मरने वालों की संख्या भी काफी अधिक बताई जाती रही है। एक बचकर निकले युवक ने बताया, ‘हमने चार दिन तक सिर्फ नमकीन पानी पिया, कई लोगों की मौत हो गई। कुछ लाशें तो जंगल में ही पड़ी रहीं, क्योंकि कोई उन्हें उठाने वाला नहीं था।’

केवल डंकी प्रवासी को ही पीड़ा का सामना नहीं करना होता है, पीड़ा का सामना प्रवासी के परिजन भी करते हैं। प्रवासी के परिजन हर दिन मानसिक पीड़ा का सामना करते हैं। क्योंकि जब कोई युवक इस खतरनाक सफर पर निकलता है, तो उसके परिवार के लिए हर दिन चिंता और डर से भरा होता है। कई बार हफ्तों तक किसी का फोन नहीं आता, जिससे माता-पिता की हालत खराब हो जाती है। किसी-किसी का फोन आखिरी बार इक्वाडोर से आता है और फिर महीनों तक कोई खबर नहीं मिलती। कई बार दलालों द्वारा बंधक बनाए जाने की खबरें भी आती हैं, जिनमें फिरौती माँगी जाती है। कई बार जब प्रवासी घर बात करने या वापस जाने की बात करता है, तो एजेंट के द्वारा उन्हें या तो गोली मार दी जाती है या लाठी डंडों से पीट-पीट कर मार दिया जाता है। यदि कोई प्रवासी अमेरिका की सीमा पार करने की कोशिश करता है और पकड़ा जाता है, तो उसे हिरासत में डाल दिया जाता है। हाल ही में, अमेरिका से सैकड़ों भारतीयों को डिपोर्ट किया गया।

इसमें प्रमुख रूप से हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश व गुजरात के व्यक्ति शामिल है। हाल ही में अमेरिका से डिपोर्ट किए गए 332 भारतीयों में से 112 हरियाणा से थे, जो इस प्रवृत्ति की गंभीरता को दर्शाता है। अमेरिका द्वारा अलग-अलग समय पर भेजी गई तीन उड़ानों में हरियाणा के प्रवासियों की संख्या उल्लेखनीय रही। पहली उड़ान में 104 में से 35, दूसरी में 116 में से 33 और तीसरी उड़ान में 112 में से 44 लोग हरियाणा के निवासी थे। यह आँकड़े बताते हैं कि हरियाणा में भी बेरोजगारी और विदेश जाने की लालसा युवाओं को अवैध रास्तों की ओर धकेल रही है। जब ये लोग भारत लौटे, तो उनके हाथों में हथकड़ियाँ और पैरों में बेड़ियाँ थीं। सोशल मीडिया पर तस्वीरें वायरल हुईं, और लोगों ने सवाल उठाया: ‘क्या इनके साथ आतंकवादियों जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए? ये तो सिर्फ़ रोज़गार की तलाश में गए थे!’

यदि मामला अंतरराष्ट्रीय हो जाए तो राजनीतिक बहस होना स्वाभाविक है, इस मुद्दे में भी यही हुआ। जैसे ही युवाओं को डिपोर्ट किया गया इस मामले ने तूल पकड़ लिया और राजनीतिक मतभेद शुरू हो गए। इस मुद्दे पर अब भी निरन्तर राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का खेल चल रहा है। विपक्ष (काँग्रेस) का कहना है कि ‘भाजपा सरकार की नीतियों ने युवाओं को विदेश भागने के लिए मजबूर कर दिया।’ वहीं सत्ताधारी भाजपा का कहना है कि ‘अवैध प्रवासन रोकने के लिए सरकार ने कड़े कानून बनाए हैं और रोजगार बढ़ाने के लिए नई योजनाएँ शुरू की हैं।’ लेकिन सच यह है कि जब तक देश में पर्याप्त नौकरियाँ और सम्मानजनक जीवन जीने के अवसर नहीं होंगे, तब तक युवा ऐसे खतरनाक रास्ते अपनाने के लिए मजबूर होते रहेंगे। आखिर क्यों चुनते हैं युवा डंकी रूट?

बेरोजगारी और आर्थिक तंगी:

भारत में बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में नौकरी के अवसर बेहद कम हैं। हरियाणा राज्य बेरोजगारी दर में शीर्ष पर है। इसके साथ-साथ वर्तमान समय में सोशल स्टेटस का दबाव भी डंकी रास्ता चुनने को युवाओं को मजबूर करता है। कई गाँवों में ‘विदेश गया लड़का’ परिवार का सम्मान बढ़ाता है, जिससे युवा विदेश जाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। अक्सर यह देखने को मिलता है जब किसी गांव का कोई व्यक्ति अमेरिका पहुंच जाता है तब उस रात व्यक्ति के परिजन पटाखे व डीजे पार्टी कर जश्न मनाते हैं। लेकिन डंकी रास्ते युवा इसलिए भी चुनते हैं क्योंकि आज सरल कानूनी प्रवासन मार्गों की कमी है। अमेरिका, कनाडा और यूरोप में कानूनी तौर पर जाना बेहद कठिन और काफी महँगा हो गया है।

अब गहरा विषय यह है कि इस संकट को कैसे रोका जाए? सरकार और समाज को इस समस्या को गंभीरता से लेना होगा। इसके लिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में नई नौकरियाँ पैदा करनी होंगी, ताकि युवाओं को विदेश जाने की मजबूरी न हो। सरकार को विशेष रूप से टेक्नोलॉजी, कृषि और स्टार्टअप सेक्टर में अवसर बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। साथ साथ अवैध प्रवासन को बढ़ावा देने वाले दलालों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। सरकार को साइबर प्लेटफॉर्म और लोकल एजेंटों की गतिविधियों पर नजर रखनी होगी। सरकार की मुख्य भूमिका होनी चाहिए कि वह अमेरिका और अन्य देशों से बातचीत कर-कर भारतीयों के लिए वैध वीजा और रोजगार के अवसर बढ़ाए। साथ ही, उच्च शिक्षित भारतीय युवाओं को विदेशों में रोजगार प्राप्त करने के लिए विशेष योजनाएँ बनाई जानी चाहिए। आज छोटे छोटे बच्चे व विद्यार्थी विदेश पलायन का ख्वाब देखते हैं, इसके लिए स्कूलों और कॉलेजों में सेमिनार आयोजित कर बताया जाना चाहिए कि डंकी रूट कितना खतरनाक है। सोशल मीडिया, टीवी और समाचार पत्रों के माध्यम से लोगों को इसके खतरों के बारे में सूचित किया जाना चाहिए। इन सब के अलावा, सबसे प्रमुख ‘लोकतन्त्र के चौथे स्तंभ-मीडिया’ को इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाना चाहिए, ताकि लोग हकीकत जान सकें। प्रवासियों की असली कहानियाँ सामने लाकर जागरूकता फैलाई जानी चाहिए। डंकी रूट सिर्फ एक अवैध प्रवासन मार्ग नहीं, बल्कि हमारे देश की युवा शक्ति की हताशा और निराशा को दर्शाता है। जब तक हम अपने देश में अवसर पैदा नहीं करेंगे, तब तक लोग खतरनाक रास्तों को अपनाते रहेंगे। सरकार, समाज और परिवारों को मिलकर इस समस्या का समाधान निकालना होगा

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अजय सिंह

लेखक हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में पीएचडी कर रहे हैं और साहित्य में गहरी रुचि रखते हैं। सम्पर्क +916280385104, ajeymalik01@gmail.com
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