भारत में कोरोना महामारी के फैलने में तबलीगी जमात की भूमिका पर अभी तक बहस थम नहीं सकी है। पूरी संभावना है कि कोरोना के जाने के बाद भी यह बहस जारी रहेगी। बहस कोई समस्या नहीं है, लोकतन्त्र में तो बहस बेहद जरूरी है। यह अलग बात है कि टेलीविजन पर हो रही बहस देश की सेहत के लिए खतरनाक है। लेकिन देश के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है लोगों की धर्मांधता और धार्मिक रूढ़िवादिता, जिसका नमूना हाल के दिनों में पहले इंदौर और अब मुरादाबाद में देखने को मिला।
इसी तरह देश के कई हिस्सों से ऐसी ही खबर आई जिसमें समुदाय विशेष द्वारा डॉक्टरों का विरोध अथवा उनके साथ बदसुलुकी की गयी। इन सभी प्रकरण की सही तस्वीर को जानने के लिए इन्हें निजामउद्दीन के मरकज से जोड़कर देखा जाना जरूरी है।
कोरोना के फैलने में जमात की भूमिका पर दो तरह के तर्क दिए जा रहे हैं। स्वभाविक तौर पर एक जमात के समर्थन में है और दूसरा विरोध में। इस बीच एक तर्क यह भी है कि दिल्ली के निजामउद्दीन मरकज में ‘तब्लीग-ए-जमात’ के आयोजन के बाद जब जमात के लोग पॉजिटिव पाए जाने लगे, तब सरकार का पूरा ध्यान जमातियों पर केन्द्रित हो गया और उनकी जाँच होने लगी। यह होना भी चाहिए, लेकिन इस बीच अन्य लोगों की जाँच न के बराबर हुई।
कोरोना के समय प्लेग वाली गलती दोहराना कितना खतरनाक
इस वजह से जो पॉजिटिव रिपोर्ट आए उनमें से ज्यादातर लोग तब्लीगी जमात के पाए गये। जिससे यह लगने लगा कि भारत में तब्लीगी जमात के लोगों से ही कोरोना फैल रहा है। जबकि भारत में जाँच का स्तर पहले से ही कम है, जमात का मामला आने पर आम लोगों की जाँच और भी कम हो गयी।
खैर, मरकज में आयोजन की जाँच की जिम्मेवारी क्राइम ब्राँच को सौंपी गयी है, जमात के चीफ मौलाना साद सहित छह अन्य लोगों पर एफआईआर भी हुआ है। जाँच की रिपोर्ट जो भी आए, लेकिन मौलाना साद के ऑडियो ने उन्हें कठघरे में खड़ा कर दिया है। कोरोना जैसी गम्भीर समस्या को मुसलमानों के खिलाफ महज एक साजिश बताकर उन्होने अपने ही कौम और जमात के लोगों को बरगलाने का काम किया है।
गम्भीर संकट में वैश्विक अर्थव्यवस्था
जाँच में ‘तब्लीग-ए-जमात’ के आयोजन को क्लीन चिट मिल भी जाए, लेकिन जमात की लापरवाही और मौलाना साद की बातें कई गम्भीर आरोपों पर खुद ही मुहर लगाती है। मरकज के चीफ जब खुद ही यह कहते हैं कि मरने के लिए मस्जिद से अच्छी जगह कोई नहीं है, तो वे कोरोना के प्रति अपनी जिम्मेवारी और जहालत दोनों प्रस्तुत कर देते हैं। इसके बाद कोरोना को लेकर उनके तमाम बयानों का कोई अर्थ नहीं रह जाता।
निजामउद्दीन के मरकज से भारत के मुस्लिम समाज को कई महत्वपूर्ण संदेश मिलते हैं। सबसे पहले तो भारतीय मुसलमानों को यह समझने की जरूरत है कि जो लोग या संगठन उनकी रहनुमाई करते हैं, क्या वे सच में उनके विकास अथवा उन्नति के बारे में सोचते हैं? वे कौन लोग हैं, जो धर्म के नाम पर उन्हें सच्चाई से दूर रख रहे हैं और उनमें धार्मिक रूढ़िवाद को बढ़ावा दे रहे हैं? ऐसा करने में उनका क्या स्वार्थ है? यह सच है कि ऐसा सिर्फ मुस्लिम समाज में ही नहीं है, अन्य धर्मों में भी रूढ़िवादिता है और उनका भी इस्तेमाल किया जा रहा है। लेकिन इस वक्त कोरोना जैसी खतरनाक महामारी के बीच मरकज के प्रकरण के बाद मुस्लिम समाज बड़ी जिम्मेवारी तय करने की स्थिति में है।
कोरोना, कट्टरता और पूर्वाग्रह का कॉकटेल
भारतीय मुस्लिम समाज को तबलीगी जमात और उसके मुखिया के विरोध में खड़ा होना चाहिए था, जिससे देश को यह संदेश जाता कि तबलीगी जमात देश के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करता, जो कि नहीं ही करता है। लेकिन जिस प्रकार मुरादाबाद, इंदौर और अन्य शहरों से डॉक्टरों के साथ मारपीट के वीडियो आए, इलाज के दौरान डॉक्टरों के साथ जिस प्रकार का बर्ताव हुआ और जिस प्रकार मस्जिदों में विदेशियों को छुपाया गया, ऐसा लगता है कि मुस्लिम समाज का एक बड़ा वर्ग जमात और मौलाना साद के साथ खड़ा है। इसकी जड़ में धार्मिक रूढ़िवादिता ही है। वरना ऐसी कोई वजह नहीं है कि मुरादाबाद की महिलाएँ हिंसा में संलिप्त पाई जा रही हैं।
दूसरा सवाल मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवी वर्ग और उन नेताओं को घेरे में लेता है, जिनका जमात से कोई ताल्लुक नहीं है। देश पर कोरोना को संकट मंडरा रहा है, सभी नेता, फिल्म अभिनेता, पब्लिक फिगर आदि लोगों से घरों में रहने की अपील कर रहे हैं। ऐसे समय में जब मौलाना साद जैसे लोग लोगों को मस्जिद जाने को कह रहे हैं, तब यह जिम्मेवारी मुस्लिम नेताओं की थी कि लोगों के भ्रम को तोड़कर उन्हें सच्चाई से वाकिफ कराएँ और मस्जिदों में जाने से रोकें।
कोरोना महामारी क्या प्रकृति की चेतावनी है?
लेकिन तमाम मुस्लिम नेता जो मुसलमानों के हित का दम्भ भरते हैं, उनकी ओर से किसी भी ऐसे संदेश का नहीं आना मुसलमानो को तबलीगी जमात से ज्यादा गुमराह करने जैसा है। जिनके कहने भर से लाखों युवा सड़कों पर उतर जाते हैं, क्या उनकी अपील लोगों में कोरोना के प्रति जागरुकता नहीं फैलाती?
मौलाना साद की धर्मान्धता और उपजे सवाल
मुस्लिम समाज में बुद्धिजीवियों की कमी नहीं है, कई राजनैतिक और सामाजिक विषयों पर वे खुलकर अपनी बात रखते भी हैं। लेकिन मुस्लिम समुदाय में व्याप्त रूढ़िवादिता पर वे कभी कुछ नहीं बोलते, जिसका नतीजा है कि मुरादाबाद जैसी घटनाएँ समाज को कमजोर करती हैं। मुस्लिम बुद्धिजीवियों द्वारा धार्मिक विषयों पर नहीं बोलने की वजह की पड़ताल की आवश्यकता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्हें समाज से बहिष्कृत किए जाने का डर है? कोरोना के बीच मुरादाबाद जैसी घटनाएँ और मुस्लिम बुद्धिजीवियों का मौन इस धर्मांधता और धार्मिक रूढ़िवादिता को स्थापित करता है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में धर्म के नाम पर लोगों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। मुस्लिम समाज के साथ यह ज्यादा होता है। आजादी के सात दशकों बाद भी मुसलमानों की आर्थिक, सामाजिक स्थिति कमजोर क्यों है, क्यों उनमें शिक्षा का स्तर कम है और रूढ़िवादिता ज्यादा है? इन सवालों का जवाब भी मरकज से निकले संदेश में छुपा है।
कोरोना के ज़ख्म और विद्यार्थियों की आपबीती
देशभर में जितने कोरोना मरीजों की सूचना है, उनमें से ज्यादातर का सम्पर्क तबलीगी जमात से था। आज वे ही कोरोना के शिकार हो रहे हैं। यह सच है कि मीडिया चैनलों ने जमात पर अपना निशाना साधकर उसके विरोध में हवा बनाई है। लेकिन क्या इसमें सबसे बड़ा योगदान खुद जमातियों का नहीं है? केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने जमात का खुलकर विरोध किया और मजबूती से अपनी बात रखी। ऐसी और भी आवाजें उठनी चाहिए थीं। जिससे मीडिया चैनलों के जुबान पर भी ताला लगता और भारतीय मुस्लिम कोरोना से जंग में बराबर का योगदान देते हुए नजर आते।
कोरोना का विश्वव्यापी प्रभाव
मुरादाबाद की धटना के बाद योगी सरकर द्वारा एनएसए के तहत कार्रवाई सरकार के पक्षपाती रवैये की द्योतक है। लोगों की अज्ञानता, उनकी रूढ़िवादिता को अलग रंग दिया जा रहा है। निश्चित तौर पर संदेह के दायरे में आने वाले कई निर्दोष परेशान होंगे। उनके दिलों में बैठे डर को निकालने के बजाय सरकार उसे स्थापित कर रही है। यूपी सरकार का गुस्सैल रवैया हमेशा ही विवादों में रहा है। सीएए विरोध के दौरान भी सरकार द्वारा प्रदर्शलकारियों की फोटो वाली होर्डिंग पर उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा था।
लेखक पत्रकारिता के छात्र और दैनिक जागरण के संवाददाता रहे हैं|
सम्पर्क- +919162455346, aryan.vivek97@gmail.com
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