अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने शपथ ग्रहण के बाद राष्ट्र को अपने सम्बोधन में यह कहा है कि दुनिया के सामने हमें अपनी ताकत का उदाहरण नहीं, बल्कि उदाहरणों की ताकत पेश करनी है। लोकतान्त्रिक देशों की सरकारें यह नही समझ पाती कि उनकी और राज्यसत्ता की ताकत से कहीं बड़ी ताकत उस अवाम की है, जो केवल चुनाव के समय ही अपनी ताकत का इज़हार न कर कर जनान्दोलनों के जरिये भी अपनी ताकत का प्रदर्शन करती है। वह सर्वोपरि ताकत है। अमरीका और भारत दुनिया के दो बड़े लोकतान्त्रिक देश हैं। हमारे देश के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने अमरीका जाकर ‘अबकी बार ट्रम्प सरकार’ भले ही कहा हो, पर अमरीकी नागरिकों ने उनकी बात न सुनकर अपने विवेक का इस्तेमाल कर जो बाइडेन को जीत दिलायी। अब डोनाल्ड ट्रम्प का युग बीत गया है।
कृषि-कानून की वापसी की माँग पर अडिग किसान संगठनों के नेताओं और सरकार के बीच हुई सारी बातचीत का कोई नतीजा नही निकला है। किसानों का नारा है – कानून वापसी नही तो घर वापसी नही। कृषि कानूनों को रद्द किये जाने की मांग पर किसान क्यों अड़े हुए हैं? किसान यह समझ चुके हैं कि यह कृषि कानून उनके हित में न होकर अडानी-अम्बानी के हित में है। एक और सरकार अड़ी है, दूसरी और किसान। सरकार कृषि कानूनों को वापस क्यों नही ले रही है? पिछले छह वर्ष में यह सरकार किसके हित में कार्य कर रही है, उससे किसान अवगत है। कनाडा के प्रधानमन्त्री जस्टिस त्रुदो और संयुक्त राष्ट्र संघ के अध्यक्ष अंतोनियो गुटेरेस ने किसानो के प्रदर्शनी का समर्थन किया।
स्कौट जॉनसन ने जनवरी 2021 के अपने एक लेख में यह संभावना प्रकट की है कि अमरीका अम्बानी-अडानी पर दण्ड लगा सकता है। स्कौट जॉनसन के अनुसार यह आश्चर्य की बात है कि अडानी और अम्बानी को कैसे इन कृषि-कानूनों की जानकारी संसद में इसे रखे जाने के पहले थी।जब राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े कुछ मामलों की जानकारी किसी चैनल के मालिक और एंकर को हो सकती है, तो कृषि कानून की जानकारी संसद से पहले किसी अडानी-अम्बानी को क्यों नही हो सकती? पाकिस्तान में बालाकोट के हमले से तीन दिन पहले रिपब्लिक टीवी के मालिक और एंकर अर्नव गोस्वामी को इस मामले की जानकारी कैसे थी? अडानी ग्रुप के अडानी लोजिस्टिक्स के सम्बन्ध में कई अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों और विश्वसनीय श्रोतों द्वारा किये गये इस रहस्योद्घाटन का उल्लेख स्कोट जॉनसन ने किया है कि अडानी लोजिस्टिक्स लिमिटेड ने 2019 के बाद कई कृषि-उन्मुख कम्पनियों को शामिल किया।
अडानी एग्री लोजिस्टिक्स लिमिटेड (ए.ए.एल.एल.) की स्थापना 2005 से पहले भले हुई हो, पर सच तो यह है कि इसकी दस कम्पनियों का संस्थापन (इनकारपोरेशन) नरेन्द्र मोदी के प्रधानमन्त्री बनने के बाद का है। इन दस कम्पनियों में से केवल एक ‘अडानी लोजिस्टिक्स सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड’ का संस्थापन 6 जून 2006 का है।2016 में चार, 2017 में दो और 2018 में चार कम्पनियों का संस्थापन हुआ। अडानी एग्री लोजिस्टिक्स की पूरी जानकारी अभी बहुतों को नही है, पर अधिसंख्य लोग यह जानते हैं कि जिस प्रकार नरेन्द्र मोदी और अमित शाह गुजरात के हैं उसी प्रकार अम्बानी-अडानी भी गुजराती हैं। कृषि-कानून किसानों के लिए न होकर इन उद्योगपतियों और कारपोरेटों के लिए है, यह मानने में किसानों को अब तनिक भी संदेह नही है।
रिलायंस रिटेल 2006 में स्थापित हुआ। यह भारत का सबसे बड़ा खुदरा विक्रेता है, जिसके लगभग 11 हजार स्टोर देश भर में हैं। मुकेश अम्बानी ने कृषि क्षेत्र में अपनी उपस्थिति अथवा संलग्नता का खण्डन किया है, पर उनके इस खण्डन के बाद रिलायंस रिटेल लिमिटेड ने कर्नाटक के रायचूर जिला के सिंघनूर तालुक के किसानों से एक हज़ार क्विंटल सोना मसूरी धान की खरीद की ‘डील’ की। सोना मसूरी चावल एक हल्का सुगन्धित मध्यम चावल है, जो आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में पैदा होता है।रिलायंस रिटेल लिमिटेड ने सोना मसूरी के लिए प्रति क्विंटल 1950 रुपये का मूल्य तय किया, जो सरकारी खरीद 1868 रुपये प्रति क्विंटल से 88 रुपये अधिक है। जो कम्पनी पहले तेल का व्यापार करती थी वह अब धान की खरीद-बिक्री कर रही है।
कर्नाटक में ए पी एम सी एक्ट में सुधार होने के बाद बड़ी कॉरपोरेट कम्पनी और किसानों के बीच ‘डील’ हुई है। इस मूल्य (एमएमसी) से अधिक मूल्य का लालच देकर एपीएमसी कम्पनियों का नुकसान करेंगी और उसके बाद किसान बुरी तरह प्रभावित होंगे।कर्नाटक राज्य रैयत संघ के अध्यक्ष चमरासा मालि पाटिल ने किसानों को कॉरपोरेट कम्पनियों की चालों से सावधान रहने हो कहा है। बेंगलुरु से 420 किलोमीटर दूर दक्षिणी हिस्से में रायचूर जिला के सिंघनूर में लगभग 1 हजार किसानों ने 6 जनवरी 2021 को रिलायंस रिटेल को धान बेचने के समझौते पर हस्ताक्षर किया। रिलायंस रिटेल ने राज्य द्वारा संचालित गोदाम लिया है।
वामपन्थी छात्र संगठन आइसा ने सितम्बर 2020 में मोदी सरकार के तीन कृषि-बिलों को अडानी-अम्बानी के लिए लाभ और करोड़ों किसानों के जीवन और जीविका का विनाश, ध्वंस माना था।कृषि क्षेत्र का व्यापार लगभग 62 लाख करोड़ का है, जिस पर कॉरपोरेट की बहुत पहले से नजर थी।नोटबन्दी और लॉकडाउन के समय कॉरपोरेट घरानों ने काफी लाभ कमाया है। अध्यादेश लाने से पहले केन्द्र सरकार ने किसी भी राज्य से कोई बातचीत नही की, जबकि कृषि राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है, न कि केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में। कोरोना समय में मुकेश अम्बानी की सम्पत्ति प्रति घंटे 90 करोड़ रुपये बढती रही है। कृषि उपज का खुदरा बाजार बहुत बड़ा है, जिस पार अम्बानी-अडानी की नजर है।
नरेन्द्र मोदी प्रधानमन्त्री के शपथ ग्रहण के समय अडानी के ‘प्लेन’ से दिल्ली पहुंचे थे और प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के साथ मुकेश अम्बानी और नीतू अम्बानी का वह चित्र विश्व भर में फैला था, जब उद्योगपति और कॉरपोरेट का हाथ प्रधानमन्त्री की पीठ पर था। कृषि-क्षेत्र के व्यापार को किसानों से अधिक और कौन समझ सकता है? अगर केवल पैकेज्ड चावल के बाजार को ही देखें, तो यह 22 हजार करोड़ रुपये का है, जिसमे प्रति वर्ष 10 पातिशत से कम वृद्धि नही होगी।
पतंजलि ने 70 करोड़ रुपये में हरियाणा में सोनीपत के आर एच एग्रो राइस मिल को खरीद लिया है, देश में अन्य चार राइस मीलों को विशिष्ट लीज पर लिया है और चावल के 18 पैकेज्ड ब्राण्ड बाजार में उतारे हैं। नये मिलों में पतंजलि वर्ष भर में 3.2 लाख टन चावल तैयार करेगी। उसकी योजना में चावल का निर्यात भी है।वह सोनीपत वाली मिल में बासमती चावल, मध्यप्रदेश में ‘लीज’ पर ली गयी दो मिलों में पूसा वेरायटी, तेलंगाना की एक मिल में हल्का सुगन्धित सोना मसूरी चावल और पंजाब के कजिल्का स्थित मिल में उत्तरी भारत में तैयार चावल की प्रोसेसिंग करेगी। देश में लगभग 150 प्रकार के चावल की उपज होती है।पैकेज्ड चावल बाजार फिलहाल इंडिया गेट, कोहिनूर, बेस्ट बासमती और दावत जैसे ब्रांड्स के हवाले है। अम्बानी और अडानी को कृषि बिल से कब कितना लाभ पहुंचेगा, इसका केवल अभी अनुमान किया जा सकता है। किसान-संगठन इस सबसे अच्छी तरह वाकिफ हैं, इसलिए वे तीनो कृषि बिल की वापसी चाहते हैं।
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का अवदान/योगदान मात्र 14 प्रतिशत है पर देश की 60 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। तीन कृषि बिलों से भविष्य में होने वाले सभी नुकसानों को समझने के बाद ही किसान संगठन कृषि-बिल की वापसी की मांग कर रहे हैं। लगभग 70 किसानों का बॉर्डर पर ही निधन हो चुका है, पर उनकी मांग कायम है। किसानों का मुख्य आरोप यह है कि यह कानून अडानी-अम्बानी को लाभ पहुँचाने के लिए है। इस कानून को ‘अडानी-अम्बानी कृषि-कानून’ भी कहा जा रहा है। इन कृषि कानूनों से मंडी प्रणाली समाप्त होगी और कृषि-उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी समाप्त होगा। इन कानूनों में न्यायपालिका के स्थान पर कार्यपालिका को विवाद निपटाने की शक्ति दी गयी है। अपराध की प्रकृति अपराधी तय करेगा। संवैधानिक अधिकारों का सवाल भी प्रमुख है।
प्रोफ़ेसर अमित भादुड़ी ने अपने एक लेख में कृषि के निगमीकरण को ‘दरअसल हमारे संवैधानिक अधिकारों और भारतीय लोकतन्त्र के निगमीकरण की शुरुआत’ कहा है।उन्होंने सत्ता-प्रतिष्ठान के अर्थशास्त्रियों के शब्दजाल में लिपटे उनके अप्रासंगिक अर्धसत्य की बात कही है।जिनके तर्क की आधारशिला मिल्टन फ्रीडमैन (31.7.1912-16.11.2006) का यह सुप्रसिद्ध कथन है कि ‘एक मुक्त लोकतन्त्र को एक मुक्त बाजार की जरूरत होती है’। अडानी-अम्बानी ने कृषि बाजार में काफी पूँजी निवेश किया है। नये कृषि कानून उनके हित में लाये गये हैं। यह जानना जरूरी है कि कॉरपोरेट का रिश्ता सरकार से है या सामान्य जनता से, किसानों से?
इसी तरह यह जानना जरूरी है कि सरकार का सम्बन्ध कॉरपोरेट जगत से है या सामान्य किसान से? इंग्लैंड की संसद में एक ब्रिटिश पंजाबी सांसद तानमजीत सिंह घेवरी ने सौ अन्य सांसदों के हस्ताक्षर से ब्रिटिश प्रधानमन्त्री बोरिश जॉनसन को इस सम्बन्ध में लिखे अपने पत्र में भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी से होने वाली अगली मुलाकात में, इस मुद्दे को उठाने को कहा है। भारत में गोदी मीडिया से अलग है अमरीकी मीडिया। वहां वाल स्ट्रीट जर्नल से लेकर वाशिंगटन पोस्ट और सी एन एन तथा पश्चिमी यूरोप औए ऑस्ट्रेलिया में इस किसान-आन्दोलन को महत्त्व दिया गया है।
किसानों पर हरियाणा के मुख्यमन्त्री मनोहर लाल खट्टर ने आरम्भ में हरियाणा पुलिस को वाटर कैनन और आंसू गैस का इस्तेमाल करने को कहा था। किसानों को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रवेश करने से रोका गया, कई प्रकार की बाधाएँ खड़ी की गयीं, जो मानवाधिकार घोषणा पत्र के अनुच्छेद 3 में जीने का अधिकार, स्वतन्त्रता और व्यक्ति की सुरक्षा तथा अनुच्छेद 13 में आन्दोलन की स्वतन्त्रता के अधिकार का उल्लंघन है। मीडिया ने किसानों को ‘आतंकवादी’ घोषित कर भी मानवाधिकार के घोषणापत्र का उल्लंघन किया है।
अमित भादुड़ी ने इन तीन कानूनों को मुक्त बाजार बनाने के लिए किया गया डिजाईन माना है ‘यह एक नि:शुल्क बाजार होगा, जिसमे श्री अम्बानी की टीम कृषि उत्पादों के अपने खुदरा दुकानों का विस्तार करने के लिए उत्सुक है या श्री अडानी के पुरुष अनाज के साथ पहले से ही निर्मित फाइलों को भरने के लिए बेताब हैं, जो किसानों के साथ कीमत पर मोल-भाव करेंगे, जिनमे से अधिकांश अपने स्वयं के एक एकड़ जमीन से पंजाब के क्रन्तिकारी किसान संगठन के वरिष्ठ नेता दर्शन पाल के अनुसार अम्बानी-अडानी घराना पूंजीवाद (क्रोनी कैपिटलिज्म) के प्रतीक बन चुके हैं। किसानों ने रिलायंस और जिओ प्रोडक्टस के बायकाट निर्णय यों ही नही लिया। गुस्से और आक्रोश में उसने लगभग डेढ़ हजार जिओ टावर्स को क्षतिग्रस्त किया। उन्हें यह याद है कि जिओ में ब्राण्ड अम्बैसडर प्रधानमन्त्री की तस्वीर लगी थी।
किसान संगठन बार-बार की बातचीत के बाद भी यह मानने को तैयार नही है कि कृषि बिल उनके लिए उनके लिए लाभकारी है अडानी ग्रुप ने 2 लाख मेट्रिक टन की क्षमता वाले एक ‘साइलो’ का निर्माण पंजाब के मोगा जिला में किया, जो वर्तमान में एफ सी आई को अन्न भण्डारण सुविधा प्रदान कर रहा है।दुसरे उच्च क्षमता वाले ‘साइलो’ के लिए अडानी ने फरीदकोट जिला में जमीन खरीदी है। अडानी-अम्बानी ने कृषि बिल से अपने को जोड़े जाने का खण्डन किया है, पर सच्चाई दूसरी है। अमरीका में मैगनीतस्की एक्ट के तहत इन दो कारपोरेटों पर प्रतिबन्ध लगाये जाने की संभावना है। सरकार और किसान-संगठनों के बीच वार्ता और अधिक क्यों न हो, पर किसान यह समझ चुके हैं कि तीन नये कृषि कानूनों से उनका नुकसान और अडानी-अम्बानी को फायदा होगा।
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