किसी बंगाली से जब आप पूछेंग कि आपको कौन सी मछली पसन्द है? जवाब मिलेगा— इलिश माछ। इसे उत्तर प्रदेश और बिहार में हिलसा मछली कहते हैं। हिलसा बहुत महंगी मछली है। यही वजह है कि इसे मध्य वर्गीय व्यक्ति पूरे जीवन में दो-चार बार या साल में एक या दो बार ही खा सकता है। गंगा के कैचमेंट एरिया में खेती से माइक्रोफाइट्स की कमी हो गयी और हिलसा के इन इलाकों में प्रजनन की मुश्किलें बढ़ती गयी और वे अंडे देने के लिए नए ठौर की खोज में गंगा को छोड़कर दूसरी जगह निकल पड़ीं। अब यह बांग्लादेश में मुख्य रूप से पाई जाने लगी। मानसून में यह अभी भी पश्चिम बंगाल तक आ जाती है। हालांकि अच्छी बात यह है कि लॉकडाउन के दौरान यह गंगा में लौट आई है।
हिलसा मछली का स्वाद इतना शानदार होता है कि लोग इसके दीवाने हैं और यह महंगी होने की वजह से फेयरीटेल की तरह लोगों के सपने में आती है। इस मछली के बारे में यह कहा जाता है कि लोग इसके सामने पड़ जाने पर अपने शाकाहारी का संकल्प भी तोड़ सकते हैं। पूर्व प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने भी एक बार कहा था कि हिलसा मछली के लिए वे अपना शाकाहार व्रत भी तोड़ सकते हैं।
हिलसा ताजे जल में रहने वाली मछली रानी है। इसका रंग बिल्कुल चांदी सा होता है। हिलसा बिहार के पटना, बक्सर और यूपी तक गंगा में मिलती थी। अपनी खासियत के कारण माछाहारियों की यह पहली पसन्द है। बंगाल में सबसे ज्यादा पसन्द की जाने वाली इस मछली का गंगा में वजूद लगभग खत्म हो चुका है।
बिहार की राजधानी पटना में अब ये एक-दो चुनिंदा जगहों पर कभी-कभार मिल पाती है। खरीदने वाले हिलसा का इंतजार करते रहते हैं और जब यह बाजार में मिलती है तो बेचने वाला इसकी मनमानी कीमत वसूलता है। इनदिनों लॉकडाउन में कल—कारखाने बंद होने से गंगा का प्रदूषण कम हुआ और नदी के पानी आक्सीजन की मात्रा बढ़ी तो यह फिर से वापस लौट आई है।
हिलसा मुख्य रूप से ब्रैकिस वॉटर (मीठा और खारे पानी का मिश्रण) की मछली है। यह ब्रीडिंग के लिए बंगाल की खाड़ी के खारे पानी से निकल कर मीठे पानी में आ जाती है। इसकी खासियत यह है कि यह धारा के विपरीत तैरती है। प्रकृति ने इसे धारा के विपरीत तैरने की ताकत भी भरपूर दी है। जाहिर सी बात है कि मछली की ताकत उसके कांटे ही होते हैं। पश्चिम बंगाल में गंगा समुद्र से मिलती है। इसी जगह ये मछली नदी में प्रवेश करती है। पहले ब्रीडिंग के लिए यह इलाहाबाद तक का सफर करती थी। इसके चलते पूरे गंगा बेसिन में हिलसा बहुतायत में पाई जाती थी।
मीठे और खारे दोनों तरह के पानी में इसका रहवास होने से इसका स्वाद अलहदा, उम्दा और बेमिसाल होता है। गंगा में यह जब तक बहुतायत से पाई जाती थी तब तक इसकी कीमत भी आम लोगों की पहुँच में थी। अभी इसकी कीमत इसके आकार के हिसाब से 1200 से लेकर 2000 रुपये तक रहती है। इसका आकार जितना बड़ा होगा यह उतनी ही महंगी होगी। यह अधिकतम 2.5—3 किलो की होती है।
गंगा से इसके गायब होने की एक वजह फरक्का बराज का निर्माण भी है। इस बराज के बनने से गंगा के बड़े क्षेत्र का संपर्क ब्रैकिस वाटर से कट गया जिसके कारण समुद्र से गंगा में इनका प्रवेश लगभग बंद हो गया। फरक्का बराज के बनने के बाद फिश लैडर में कुछ टेक्निकल फॉल्ट और अपस्ट्रीम-डाउनस्ट्रीम वाटर लेवल में बड़ा अंतर होने के कारण हिलसा मछलियों को बराज क्रॉस करने में दिक्कत होने लगी।
बंगाली समाज यह दावा करता है कि वे ईलिश को 50 तरीकों से पकाकर खाते हैं। भाप के सहारे पकाई गयी ईलिश भापा व सरसों के पेस्ट से बनाई गयी ईलिश सरसों बाटा भी बेहद लोकप्रिय है। पश्चिम बंगाल में कोई भी पर्व त्योहार हो चाहे वो पोएला बोइशाख हो, दुर्गापूजा हो या फिर जमाई षष्टी हो, हिल्सा के बगैर पूरे नहीं होते हैं।