‘अँधेरे में’ का पुनर्पाठ
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साहित्य
फन्तासी का विराट सागर ‘अँधेरे में’
जिन्दगी के…/ कमरों में अँधेरे/ लगाता है चक्कर/ कोई एक लगातार ‘कोई एक’, है कौन? उसकी पहचान कैसे हो पाए, क्योंकि, आवाज पैरों की देती है सुनाई/ बार-बार —-बार-बार/ वह नहीं दीखता… नहीं ही दीखता/ किन्तु, वह रहा घूम….’…
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