सूडान: सुबह आखिर कब होगी?
मानवाधिकारों के हनन और मानवीय त्रासदियों के संदर्भ में यूक्रेन-रूस संघर्ष और हमास-इजरायल संघर्ष की चर्चाएँ लगातार होती हैं। सीरिया, म्यांमार और अफगानिस्तान जैसे देश भी प्रायः खबरों में आते रहते हैं। लेकिन सूडान की चर्चा हमेशा खबरों के हाशिए पर ही रहती है जबकि वहाँ की मानवीय त्रासदी शायद विश्व में सबसे विकट है। लगभग पाँच करोड़ की आबादी वाले इस देश की आम जनता देश में लगातार चल रहे गृहयुद्ध की आग में झुलस रही है। पहली जनवरी 1956 को ब्रिटेन और मिस्र से आजादी मिलने के बाद से ही यहाँ गृह युद्धों और तख्ता पलट का जो दौर चला है वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है।
गृहयुद्ध का मौजूदा दौर 15 अप्रैल 2023 से शुरू हुआ है। इस गृह युद्ध में एक तरफ है सूडान की सशस्त्र सेना, जो सेना के प्रधान और देश के तानाशाह जेनरल अब्दुल फतह अल बुरहान के अधीन है, दूसरी तरफ है रैपिड सपोर्ट फोर्सेज, यानि आर.एस.एफ, जो मोहम्मद हमदान दगालो के नेतृत्व में है। वे बेहेमेती के नाम से भी जाने जाते हैं। 15 अप्रैल 2023 से अब तक कम से कम बारह हजार लोग मारे गये हैं, तैंतीस हजार घायल हुए हैं और 75 लाख लोग घर से बेघर हुए हैं। इन बेघर लोगों में लगभग साठ लाख लोग तो सूडान के दूसरे इलाकों में चले गए हैं और शेष पन्द्रह लाख पड़ोसी देशों जैसे, चाड, मिस्र, लीबिया दक्षिणी सूडान और इथियोपिया जैसे देशों में शरणार्थी का जीवन जीने को मजबूर हैं।
1899 से 1955 तक सूडान, मिस्र और ब्रिटेन के संयुक्त नियंत्रण में था। इस संयुक्त नियंत्रण से सूडान पहली जनवरी 1956 के दिन स्वतंत्र हो गया। अपनी आजादी के समय सूडान अफ्रीका का सबसे बड़ा देश था। मगर देश के उत्तरी और दक्षिणी भागों में स्पष्ट विरोधाभास था। उत्तरी भाग में अरबी मुसलमानों का बाहुल्य था और दक्षिण में ईसाई धर्मावलंबी तथा प्रकृति की उपासना करने वाले लोग निवास करते थे। दक्षिण वालों की शिकायत थी कि उनके साथ उत्तर वाले भेदभाव बरतते हैं क्योंकि देश की राजधानी खार्तूम उत्तर में ही है और देश के शासन पर प्रभुत्व उत्तर वालों का ही था। दक्षिण सूडान का कहना था कि देश की प्राकृतिक संपदा अधकांशत: उनके हिस्से में आई थी मगर उत्तर में खार्तूम से संचालित होने वाली सत्ता संसाधनों के बँटवारे में उनके साथ भेदभाव करती है। धार्मिक आधार पर तो भेदभाव था ही।
पहला गृहयुद्ध 1955 से प्रारंभ होकर 1972 में जाकर खत्म हुआ। युद्ध की समाप्ति अदिस अबाबा समझौते से हुई जिसके अंतर्गत दक्षिण सूडान को आंतरिक स्वायत्तता मिल गई। लेकिन उत्तर और दक्षिण के बीच की यह शांति लंबे समय तक नहीं चल पाई। 1983 में देश के राष्ट्रपति गफार निमेरी ने अदिस अबाबा समझौते को रद्ध करते हुए दक्षिण सूडान की स्वायत्तता समाप्त कर दी और पूरे देश में इस्लामी शरिया कानून लागू कर दिया। परिणामतः दक्षिण सूडान में विद्रोह भड़क उठा और दूसरा गृह युद्ध प्रारंभ हो गया, जो दो दशकों से भी अधिक समय तक चला तथा 2005 में समाप्त हुआ। दक्षिण सूडान के विद्रोह का नेतृत्व सूडान पीपुल्स लिबरेशन आर्मी / मूवमेंट (एस.पी.एल.ए./एम.) द्वारा किया जा रहा था, जिसके प्रधान जॉन गरांग थे। 2005 में इस संगठन और सूडान की सरकार के बीच एक विस्तृत शांति समझौता हुआ जिसमें यह तय किया गया कि अगले छः वर्षों तक दक्षिण सूडान स्वायत्त रहेगा और इस अवधि की समाप्ति के बाद एक जनमत संग्रह कराया जाएगा जिसमें दक्षिण सूडान के भविष्य पर अंतिम फैसला होगा। छः वर्षों बाद, 2011 में कराए गए जनमत संग्रह में दक्षिण सूडान की जनता ने भारी मतों से अपने क्षेत्र को एक स्वतंत्र देश बनाए जाने के पक्ष में निर्णय दिया। परिणामतः अफ्रीका का सबसे बड़ा देश दो हिस्सों में बंट गया और 2011 में दक्षिण सूडान गणराज्य नाम से एक नया देश अस्तित्व में आ गया। इस विभाजन के बाद शेष बचे सूडान का नाम तो सूडान ही रहा मगर अब यह अफ्रीका में क्षेत्रफल की दृष्टि से पहले स्थान से तीसरे स्थान पर आ गया।
इस विभाजन के बाद सूडान का जितना कुछ शेष बचा उसमें भी संकटों और समस्याओं का दौर निरंतर जारी रहा। इनकी तह तक पहुँचने के लिए हमें एक बार फिर पीछे यानि बीसवीं सदी में जाना पड़ेगा। 1989 में देश में सैनिक विद्रोह हुआ और कर्नल उमर अल बशीर सत्तासीन हो गए। 1993 में उन्होंने स्वयं को देश का राष्ट्रपति घोषित कर दिया।बशीर 1989 से 2019 तक, कुल तीस वर्षों तक सत्ता पर काबिज रहे। उन्होंने सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए दमन का सहारा लिया। विरोधियों तथा अनेक स्वतंत्र पत्रकारों को उनका कोपभाजन बनना पड़ा। उन्होंने अत्यन्त सख्ती से देश में इस्लामिक शरिया कानून लागू करने का प्रयत्न किया जिसकी परिणति दक्षिण सूडान में और भी अधिक असंतोष और उससे उत्पन्न स्वतंत्रता संघर्ष में हुई। अंततः दक्षिण सूडान 2011 में अलग होकर एक स्वतंत्र राज्य बना।
2011 में दक्षिण सूडान के अलग होने के बाद तेल भंडार का 75 प्रतिशत हिस्सा दक्षिण सूडान के पास चला गया। उधर अमरीका द्वारा लगाई गई आर्थिक पाबंदियों के कारण सूडान की अर्थव्यवस्था पहले से ही बिगड़ी हुई थी। तेल भंडार के एक बड़े भाग से हाथ धो देने के बाद तो अर्थव्यवस्था चरमराने ही लग गयी। बशीर की सरकार ने स्थिति पर काबू पाने के लिए अपने खर्चों में कटौती की और इस क्रम में विभिन्न लाभान्वितों को दी जा रही आर्थिक सहायता बंद करनी पड़ी। फलत: आम जरूरत की चीजों की कीमतें तेजी से बढ़ी। इस पर लोगों के अंदर पहले से ही सुलगता गुस्सा फूट पड़ा और देश भर में सरकार के विरुद्ध आन्दोलन चलने लगे। सरकार ने विरोध को सख्ती से दबाने की कोशिश की। प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग किया गया, विपक्ष के नेताओं को गिरफ्तार किया गया और मीडिया पर कठोर पाबंदियाँ लगा दी गईं। जब बात और बिगड़ी तो फरवरी 2019 में देश में आपातकाल लागू कर दिया गया, सरकार को बर्खास्त कर दिया गया और राज्यों के गर्वनरों को हटा कर उनके स्थान पर सैन्य अधिकारियों को तैनात कर दिया गया। बशीर ने यह पेशकश भी की कि 2020 में वे स्वयं ही अपना पद छोड़ देंगे मगर किसी को भी उनपर यकीन नहीं हुआ। 6 अप्रैल 2019 के दिन हजारों प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति निवास के पास स्थित सेना मुख्यालय को घेर लिया। ऐसा देश में पहली बार हो रहा था। सेना में भी दरार आ गई और एक धड़ा प्रदर्शनकारियों से मिल गया। 11 अप्रैल 2019 को बशीर को गिरफ्तार कर उन पर भ्रष्टाचार के आरोप में मुकदमा चलाया गया और उन्हें दो वर्ष की सजा हो गई। इस प्रकार तीस वर्षों के उनके दमनकारी शासन का अंत हो गया।
सत्ता पर अधिकार करने के लिए सूडान की सशस्त्र सेना के प्रधान जनरल अब्दुल फतह अल बुरहान और रैपिड सपोर्ट फोर्सेज के कमान्डर मोहम्मद हमदान दगालो ने आपस में मिलकर एक षड्यंत्र किया और सैन्य विद्रोह द्वारा अक्टूबर 2021 में सत्ता हथिया ली। अंतरिम संप्रभुता परिषद का पुनर्गठन किया गया और अल बुरहान के हाथ में देश की कमान आ गई। दगालो उनते अधीन उप प्रधान बने। सेना के वर्चस्व वाली परिषद की छाया में असैनिक प्रधानमंत्री अब्दुल्ला हमदौक की सरकार के लिए काम करता कठिन हो गया। उन्होंने जनवरी 2022 में पद से त्यागपत्र दे दिया।
सत्ता संघर्ष यहीं नहीं रुका। अल बुरहान और दगालो सत्ता हथियाने में तो साथ-साथ थे लेकिन सत्ता हासिल होने के बाद दोनों के बीच अंदर ही अंदर सत्ता संघर्ष शुरु हो गया। दोनों में से किसी को भी एक दूसरे पर विश्वास नहीं था और एक दूसरे के पर कुतरने में लग गए। अल बुरहान का कहना था कि दगालो के नेतृत्व वाली आर.एस.एफ. का देश की सशस्त्र सेना के साथ दो वर्षों के भीतर विलय कर दिया जाना चाहिए। दगालो को लगा कि यह उनकी ताकत और प्रभाव को कम करने की साजिश है और इसका पुरजोर विरोध किया। दोनों नेताओं के बीच वैमनस्य की खाई चौड़ी ही होती गयी और 15 अप्रैल 2023 से दोनों नेताओं के बीच सशस्त्र संघर्ष शुरु हो गया। सूडान की सशस्त्र सेना और आर.एस.एफ. आमने-सामने आ गए।
सूडान का मौजूदा संघर्ष किसी समाधान की तलाश में किसी ऐसी लंबी अंधेरी सुरंग के भीतर से गुजरता हुआ भाग रहा है जो अभी अंतहीन लगती है क्योंकि उसके अंत के बाद का प्रकाश दिखाई नहीं दे रहा है।
फिलहाल यह संघर्ष अनेक अनुत्तरित प्रश्न छोड़ रहा है। क्या है इस समस्या का समाधान? इसे हासिल कैसे किया जा सकता है? देश और उसके नागरिकों की किस्मत कब पलटेगी? इन सभी प्रश्नों पर चर्चा अगली बार।